लाल्टू की कविताएं
लाल्टू
कविता
चिडिय़ाघर
किसका घर और किसका क़ैदखाना सोचता खड़ा है भीड़ में क़ैद शख्स ज़हन का कमाल है या हैवानियत इस तरह के सवाल अपने अंदर बसा देते हैं चिडिय़ाघर गिरियाता है जिस्म के तिलिस्म में मरियल अफ्रीकी बब्बर शेर नसों में दौड़ती है साइबेरिया के सारस की चीख देर रात जगा हुआ ढूँढता है घासफूस या कि गोश्त यही सच है कायनात के इस कोने में पिंजड़ों में चकराते हैं हम सूरज तारे हमें देखने आते हैं अपने पुच्छल बच्चों के साथ कौन देखता है कौन देखता है भाषाओं की मौत कौन पढ़ता है
हर मौत कहानी नहीं होती मसलन भाषाओं की मौत कौन पढ़ता है। कोई कहानी मर रही है हर किसी कोने में यह किसी भाषा के मौत की कहानी है। कोई जासूस इन कोनों पर नहीं आता मरती भाषा के सुराग अपने ही अंदर होते हैं भाषा मरती है तो कहानी अपने अंदर मरती है कौन पढ़ता है।
धरती मेरे अश्क पी जाएगी
मैंने दरख्तों से खूब बातें की हैं हवा के साथ बहता मैं छू आया हूँ पत्तों को बार-बार यह धरती मुझे प्यारी है; बार-बार इस पर लोटता हूँ जो कुछ जानना ढूँढना है, इसी के सीने पर मुझे मिला है ज़हन के हर तिलिस्म में समाई हुई है मेरी धरती यही जानो-तन मेरी, वतन मेरी, मेरी धरती।
किसी भी दिन मैं चला जाऊँगा तो जा कर भी यही रहूँगा कायनात के अंजान कोनों से चल कर खुदा मिलने आएगा मुझसे मर्सिया पढऩे मैं उसे कहूँगा कि मेरे माँ-बाप पुरखे सारे इसी धरती की गोद में भी चले गए
उनसे विरासत में मिली मुझे मेरी धरती पंछी नहीं कोई पास तो क्या सारे पंछी मेरे साथ ही चले गए दरख्तों को मेरी हर बात याद है वे झूमते रहेंगे अनंत काल तक कि मैं उनसे बातें करने आया था अब मैं जरा रो लूँ सपनों में रोऊँ या जागकर धरती मेरे अश्क पी जाएगी अकेला नहीं रहूँगा अपने सुख में रोएगी धरती साथ-साथ एक धुन जमीं से उठेगी साँसों की, धड़कनों की, प्यार की, मेरा जाना धरती में समाना।
सब मेरे हो सकते थे
वह गाँव मेरा हो सकता था घर जो बिक गया उसके पास खड़ा मैं रो सकता था कहीं तो दर्ज होगा कि हजार साल पहले उस घर में किसके वीर्य में रचा गया मेरे गुणसूत्रों का इतिहास
अंबो को मैंने ज़िंदा देखा (*अंबो=दादी) उसकी मौत की खबर सुनी थी और बापू को रोते देखा था अकेले में चली गई वह छोड़कर हफ्ते भर का अखंड पाठ जो उसकी मौत के कुछ पहले भी एक बार हो चुका था
वह गाँव अक्सर मेरे पास आ खड़ा होता है किसी को कहता हूँ तो मुझे पता चलता है कि मेरी कविताओं में संस्मरण बढऩे लगे हैं क्या मैं वक्त से ज्यादा जी चुका हूँ
ऐसे सवाल अंबो के ज़हन में नहीं आते थे गाँव की ज़िंदगी की खासियत थी यह बिक गया वह घर जो अकेला कभी नहीं हो सकता था इसलिए लुका-छिपी खेलते हुए हमें वह छिपा लेता था पड़ोस के घरों में वे सब मेरे हो सकते थे
आँगन में आम और बबूल के परस्पर हमेशा नाराज़ खड़े पेड़ उपलों की महक पिछवाड़े कबूतरबाज मुकुंदा सब मेरे हो सकते थे
शहर-दर-शहर भटकता हूँ सुनता अँधेरी रातों में साँसों का चढऩा-उतरना गुनगुनाना मच्छरों के साथ कि सब मेरे हो सकते थे।
मिट जाएँ लफ्ज़
ऐसा लिखो कि लोग लड़ें तो बच्चों की तरह लड़ें आज लड़ें तो कल फिर दोस्त बन जाएँ लिखो कि फ़र्क देश धर्म के नहीं रहे खत्म है जंगों का कारोबार और सिपाहियों की भर्ती हो रही विभाग में जिसका नाम है प्यार
क्यों लिखते हो कि कोई किसी को प्यार करने से रोकता है लिखो ताज़ा खबर की खाप पंचों ने कह दिया है खुले आम प्यार करेंगे नौजवान
कि स्त्रियों का अपमान करने वालों को कानूनी सजा के अलावा कठिनतम संस्कृत श्लोक रटने पड़ेंगे एक दर्जन
मत लिखो कि बजरंगियों से हो गए दुखी लिखो कि दंगाई हुक्काम ने रोती माँओं से है माफी माँग ली और कि अवाम ने उन्हें तीन जन्मों तक सियासत न करने की सजा दे दी ऐसी बातें लिखा करो कि निकल आए हर कट्टरपंथी के अंदर छिपा माइकेल जैक्सन और पेश करे भँगड़ा नाचन कि सियासी पार्टियों के मुंडे ताज़ा कविताएँ पढ़ते हुए रोने लगें पकड़कर कान और एकजुट होकर गाएँ अजान
ऐसा ही लिखो कि प्यार जो उमड़ता है ज़हन में बना डाले एक नई दुनिया मिट जाएँ सरहदें और स्कूलों में मास्टर लग जाएँ फौज के सिपाही मिट जाएँ लफ्ज़ हत्या और हत्यारा तुम्हारी कविता से।
रोशनी मिली अपने ही अँधेरे में
ताज़िंदगी इंतज़ार रहा कि कभी रोशनी होगी कारवां गुजरता रहा बीहड़ों से लहरें कभी स्थिर कभी उमड़ती रहीं धरती के हर छोर पर घूमा कि रोशनी होगी
रोशनी मिली अपने ही अँधेरे में देर बहुत हुई यह जानने में कि यही रोशनी है कि वक्त का तीर वाकई इकतरफा है बहता है आब-ए-हयात हमेशा नीचे की ओर
क्या कुछ होना था कौन जानता है जो हुआ वही है यही रोशनी है कि अँदेरे में रहे अब तक कि जहाँ भी सुकून था उसे छोड़ बेकरारी में जिए
रोशनी की लहरें आती है कि जो है वह सब अँधेरे में है।
संपर्क - हैदराबाद
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