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अप्रैल - 2019

गांधी की तलाश में हत्यारे

प्रदीप पंत

कहानी

 

 

दिल्ली में यमुना किनारे राजघाट पर गांधी समाधि। चारों ओर हरियाली। समाधि-स्थल के गेट पर बड़े से ताले। गेट के अंदर ताला, गेट के बाहर ताला।

गेट के सामने चौड़ी सड़क। दिल्ली को घेरे हुए इधर से उधर जाती गोलाकार सड़क। गांधी समाधि के प्रवेश-द्वार के लगभग सामने, सड़क के उस पार मैदान। मैदान में शामियाना है। शामियाने के अंतिम छोर पर बने भव्य मंच से भाषण चल रहे हैं। एक के बाद दूसरा भाषण। दूसरे के बाद तीसरा, चौथा, पांचवां भाषण। हर भाषण का निष्कर्ष यह कि गांधी ने अहिंसा के रास्ते पर चल कर देश को कमजोर बनाया, कि देश के बटवारें के लिए गांधी जिम्मेदार है, कि गांधी अंग्रेज़ों के हाथ की कठपुतली था, कि अच्छा ही हुआ कि हमारे कुछ लोगों ने आज़ादी के दिखावटी संघर्ष में भाग नहीं लिया, कि बहुत अच्छा हुआ जो नाथूराम गोडसे ने...

सामने कुर्सियों पर बैठे लोगों के ऊंची आवाज़ में नारे - ''नाथूराम गोड़से ज़िंदाबाद! नाथूराम गोडसे अमर रहें।’’

मंच से ललकार कि ''उठो, भारत माता के सपूतों उठो! बढ़ो, कर्तव्य-पथ पर बढ़ो! बढ़े चलो! अभी नहीं तो कभी नहीं।’’

भीड़ में जोश आ गया है। वह कर्तव्य-पथ पर बढऩे के लिए उठ खड़ी हुई है। वह 'गांधी मुर्दाबाद’ और 'गोडसे ज़िंदाबाद’ के नारे लगा रही है।

चैनल यह सब लाइव दिखा रहे हैं। चैनल देखने वाले फेसबुक पर सक्रिय हो गए हैं।

एक की टिप्पणी - ''लो जी, बापू भी ताले में। हे राम!’’

दूसरे की पोस्ट - ''कहां तो देश-विदेश के सैकड़ों लोग रोजाना यहाँ आते हैं, राष्ट्रपिता को श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं, राजघाट कभी बंद नहीं होता, कहां इन शोहदों की वजह से राजघाट को बंद कर देना पड़ा है।’’

''खबरदार, अगर इन्हें शोहदा कहा। साले, शोहदा होगा तू, तेरा बाप। ये देशभक्त हैं, सच्चे देशभक्त। और वो गांधी? महा डरपोक, इसीलिए गेट पर ताला ठुकवा दिया। गांधी मुर्दाबाद! गोडसे ज़िंदाबाद!’’ - चौथे की सबको काटते हुए धमकी भरी टिप्पणी।

''गांधी, अहिंसक गांधी से डरने वाले ही गांधी मुर्दाबाद, गोडसे जिंदाबाद के नारे लगाते हैं।’’ - एक और पोस्ट।

फेसबुक पर पोस्ट ही पोस्ट, टिप्पणियां ही टिप्पणियां।

इस बीच भीड़ ने सड़क पार कर ली है। सड़क के दोनों ओर रुकी हुई कारें, ट्रक, ऑटो, बसें आदि आगे बढ़ गई हैं। भीड़ में ज्यादातर के हाथों में लट्ठ हैं। चार-छ: लट्ठ ट्रकों, बसों और कारों पर भी पड़ जाते हैं। कुछ शीशे टूटते हैं। टूटकर ज़मीन पर गिरते हैं, लेकिन लट्ठधारी देशभक्तों के सामने कोई किसी तरह का विरोध प्रकट करने का साहस नहीं दिखा पाता।

भीड़ गांधी को ललकार रही है। उन्मत्त होकर उनके खिलाफ़ नारे लगा रही है। नारों के साथ-साथ गालियां भी।

भीड़ ने अब गांधी समाधि के गेट के बाहर खड़े पुलिस वालों को दौड़ा दिया है। पुलिस वाले इधर-उधर भागे चले जा रहे हैं। लट्ठधारी खिलखिला रहे हैं, ठहाके लगा रहे हैं। उन्होंने ताले तोड़ कर गेट खोल दिया है। आठ-दस लट्ठ गेट पर भी पड़ गए हैं। गेट के अंदर खड़े पुलिस कर्मी भी भाग चुके हैं। अब चारों तरफ भीड़ का साम्राज्य है।

चैनल सब कुछ 'लाइव’ दिखा रहे हैं, एकदम साक्षात।

फेसबुक पर दनादन पोस्ट जाती हैं।

भीड़ आगे बढ़ती हुई अब समाधि स्थल पर पहुंच गई है। वह उत्तेजित और आंदोलित है। भीड़ को लगता है, गांधी अपनी ही समाधि पर अपना पतली डंडियों वाला चिर-परिचित चश्मा लगाए और लंगोटीनुमा धवल-उज्जवल धोती पहने खड़े हैं।

तभी एक अपने साथी से कहता है, ''देखो तो कैसा देहाती लग रहा है।’’

''सुना है, इसी पोशाक में यह अंग्रेज़ों के साथ कोई बैठक करने लंदन भी चला गया था।’’

''और अंग्रेज इसे देख कर हंसे होंगे।’’

''हां, हंसे तो होंगे ही।’’

पहला वाला अब सामने की ओर इशारा करते हुए कहता, ''इस छोटे से आदमी का कद आज इतना बड़ा कैसे हो गया?’’

''हमें डराने के लिए।’’

''किसकी हिम्मत है जो हमें डरा सके। बस, कुछ ही देर की बात है इसका काम तमाम होने में।’’

''देख-देख, गौर से देख, गांधी खड़ा किस बेशर्मी से मुस्करा रहा है।’’

''मुस्करा नहीं रहा, मुंह चिढ़ा रहा है।’’

तभी भीड़ में से कई लोग लट्ठ भांजते हुए आगे दौड़ पड़ते हैं। कुछ के हाथों में ईंट-पत्थर हैं। जिनके हाथों में लट्ठ या ईंट-पत्थर नहीं हैं, उनकी मुट्ठियां तनी हुई है। सभी गांधी को ललकार रहे हैं। ललकारते हुए गालियां दे रहे हैं।

''मारो छोडऩा नहीं इसे।’’ चीखती हुई कई आवाज़ें एक साथ।

तभी उन्हें लगता है, गांधी पाल्थीमार कर जमीन पर बैठ गए हैं।

आश्चर्य से वे एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं। मन ही मन सोचते हैं कि हम तो इसकी ज़िंदगी का खेल ख़त्म करने के लिए यहां आए हैं, लेकिन ये है कि हमारे ही सामने पाल्थी मार कर इत्मीनान से बैठ गया है। हिम्मत तो देखो इसकी। लेकिन कब तक ऐसी हिम्मत दिखाएगा? आज मरना तो होगा ही इसे।

''ढोंगी, पक्का ढोंगी है ये गंजी खोपड़ी वाला।’’ भीड़ में से बीच-पच्चीस लोग एक साथ चिल्लाते हैं।

गांधी पर गालियों की बौछार होने लगती है। हरेक के होठों पर गाली। हाथों पर उठे हुए लट्ठ और ईंट-पत्थर और तनी हुई मुट्ठियां और चेहरों पर आक्रोश।

ज़मीन पर बैठे हुए गांधी अब अपना प्रिय भजन गाने लगे हैं - ''वैष्णव जन तो तेने कहिये, पीर पराई जाणे रे...’’

भीड़ आश्चर्य में है कि लो, इसने भजन भी शुरू कर दिया। भीड़ में शामिल लोग गांधी का मुंह बंद कर देना चाहते हैं, लेकिन तभी भजन को दुहराते हुए एक साथ कई स्वर उठने लगते हैं, स्त्रियों और पुरुषों के समवेत स्वर, लेकिन दिखाई कोई नहीं देता। कहां से उठ रहे हैं ये समवेत स्वर? भीड़ का है यह प्रश्न, लेकिन उत्तर किसी के पास नहीं है।

भीड़ अब उत्तेजित हो गई है। उत्तेजित और उन्मत्त। उन्मत्त और उग्र। लट्ठ और ईंट-पत्थर वाले हाथ फिर ऊपर उठ गए हैं। मुट्ठियां फिर तन गई हैं। भीड़ में कुछ की आँखों में खून उतर आया है, यह सोचकर कि पहले समाधि से निकल गांधी सामने आ खड़ा हुआ, फिर पाल्थी मारकर इत्मीनान से बैठा, बैठ कर भजन गाने लगा, फिर और भी कई अदृश्य स्त्री-पुरुष समवेत स्वर में भजन दुहराने लगे।

''हमारे आगे इतनी हिम्मत गांधी और इन लोगों की। क्या समझता है ये गांधी अपने को और क्या समझते हैं इसके ये लोग? दम हो तो सामने आएं’’

तभी भीड़ का नेतृत्व कर रहा और हाथ में सबसे बड़ा लट्ठ लिए लंबा-चौड़ा आदमी सभी को आदेश देता है - ''घेर लो, अच्छी तरह घेर लो, गांधी भाग कर जाने न पाए। छिपे हुए इसके कीर्तनिये भाग कर निकल न पाएं। एक-एक को ढूंढ कर कूट डालो। इतना कूटो कि इनके होठों से भजन-कीर्तन तो क्या एक शब्द निकल न पाए और एक-एक हड्डी के चार-चार टुकड़े हो जाएं।’’

भीड़ लट्ठ और ईंट-पत्थर हाथों में लिए चारों ओर फैल जाती है। गांधी समाधि पूरी तरह घेर ली गई है।

पाल्थीमार कर ज़मीन पर बैठे गांधी अब अपना एक और प्रिय भजन गाने लगे, ''ईश्वर-अल्ला तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान।’’ साथ ही स्त्री-पुरुषों का समवेत स्वर।

''कहां छिपे हैं ये सब।’’ लंबा-चौड़ा आदमी चीखते हुए अपने साथियों से कहता है, ''सुन रहे हो इस धूत्र्त को? ईश्वर के साथ खड़ा कर रहा है अल्लाह को।’’

''और भगवान से कह रहा है कि वह हमें सन्मति दे। अरे सन्मति तो इसे आनी चाहिए।’’ एक अन्य लट्ठधारी की गुस्साई हुई आवाज़।

भीड़ एक के बाद एक गांधी विरोधी नारे लगाने लगती है। बीच-बीच में सुनाई देता है - ''नाथूराम गोडसे ज़िंदाबाद! मोहनदास करमचंद गांधी मुर्दाबाद! नाथूराम गोडसे अमर रहें।’’

गेट के बाहर सड़क किनारे चैनलों की गाडिय़ां खड़ी हैं। भीड़ के आसपास चैनलों  के संवाददाता हाथ में माइक लिए धाराप्रवाह बोलते चले जा रहे हैं। बीच-बीच में लठैतों से इंटरव्यू। कैमरामैन अपने काम में सक्रिय। लाइव प्रसारण जारी है।

चैनलों में एक-दूसरे से अधिक टी.आर.पी. बटोरने की स्पर्धा चल रही है, मानो चैनल नहीं खेल का मैदान हो जहां हर दौडऩे वाला दूसरे को पछाड़ कर खुद आगे निकल जाना चाहता है, लेकिन मैदान में बेईमानी से किसी को पछाडऩे की संभावना बहुत कम होती है, जबकि चैनलों में खेल ही बेईमानी और उठापटक का चलता है। खेल चल रहा है, लगातार चल रहा है। चैनलों को कई दिन बाद एक रोमांचक खबर मिली है, जो चौबीसों घंटे चलेगी। शायद दो-तीन दिन लगातार चलती रहे, जिसकी वजह से शेयर मार्केट की भांति टी.आर.पी. भी उछालें मारता चला जाए। अपने-अपने न्यूज रुम में एंकर वीर रस में टिप्पणियां करते हुए इस खेल को उत्तेजक बनाने में जुटे हैं। एकाध एंकर ने तो नाथूराम को राम का अवतार ही घोषित कर डाला है। बीच-बीच में एक छोटे से ब्रेक में मिर्च-मसालों, डिटरजैंट, आर.ओ.; फ्रिज, ए.सी., हर्बल टुथपेस्ट, हर्बल साबुन वगैरह के बड़े-बड़े विज्ञापन चले आ रहे हैं। इन्हें बनाने वाली कम्पनियों के मालिक चैनलों के माई-बाप हैं।

और मोबाइलों पर फेस-बुक वाले सक्रिय हैं। फिर नई पोस्ट, फिर नई टिप्पणियां। और बीच-बीच में गालियों का आदान-प्रदान।

भीड़ अब समाधि-स्थल पर लट्ठ चलाने लगी है। एक के बाद एक दनादन, कुछ लट्ठ और ईंट-पत्थर चलाने के साथ ही चीख रहे हैं, ''मारो साले को।’’

''छोड़ो मत तब तक, जब तक ये गांधी का बच्चा चित्त न हो जाए।’’

''और इसके भजन-कीर्तनियों की भी दौड़ा-दौड़ कर धुनाई कर दो, तब पता चलेगा इन्हें कि 'सब को सन्मति दे भगवान’ का मतलब क्या होता है।’’

भीड़ को लट्ठ चलाने और ईंट-पत्थर में मजा आ रहा है लेकिन कुछ देर में ये मजा थकान में बदल जाता है। अब लट्ठ उन्हें दे दिए जाते हैं जो मुट्ठियां ताने हुए चीख-चिल्ला रहे थे। अब उनकी बारी है गांधी और उनके भजन-कीर्तनियों पर लट्ठ बरसाने की। वे पूरी ताकत से लट्ठ बरसाने लगते हैं। इस क्रम में आठ-दस लट्ठ टूट भी जाते हैं। कुछ देर में लोग भी थक जाते हैं। थके हुए लोग समाधि-स्थल से गेट की ओर लौटते हैं। लौटते हुए वे गेट पर भी दो-चार लट्ठ जड़ देते हैं। अब वे सड़क पार करके उधर ही लौटने लगते हैं जिधर शामियाना तना है। एक बार फिर ट्रैफिक कुछ देर के लिए रुक गया है। इन थके हुए लोगों को लगता है कि वे जांबाज़ हैं, कि उनसे बड़ा शूरवीर कोई नहीं है। उनका तो प्रेरणा स्रोत है नाथूराम गोडसे, जिसके उन्होंने कुछ जगह मंदिर भी बनवाए हैं और इन मंदिरों में गोडसे की मूर्ति स्थापित की है।

भीड़ में शामिल इन लोगों के सीने तन जाते हैं। तने हुए सीनों के साथ वे शामियाने में पहुंचते हैं, जहां शौर्य-प्रदर्शन के बाद उनके लिए चाय-पानी का इंतजाम है।

चाय पीते हुए कोई कहता है, ''हमने इतने लट्ठ चलाए, पर लगे समाधि के फर्श पर ही। हाथ झुन्ना उठे, लेकिन न गांधी को लगे, न उनके भजन-कीर्तनियों को।’’

''ऐन मौके पर वह भजन-कीर्तनियों को लेकर गायब जो हो गया।’’

''गायब नहीं हुआ, भाग निकला।’’

''हां, वही। पक्का भगोड़ा समझो।’’

''आखिर भाग कर गया कहां होगा?’’

''ये तो नहीं पता, लेकिन जब हम लट्ठ बरसा रहे थे, तब भी हमारे कानों को 'वैष्णव जन’ सुनाई दे रहा था।’’

''और इसके बाद हमें 'ईश्वर-अल्ला’ सुनाई पड़ा।’’

''तुम लोगों को भ्रम हुआ होगा।’’ किसी अन्य का मत।

''नहीं -नहीं भाई जी, कोई भ्रम नहीं, हम तो सोच रहे हैं कि गांधी और उसकी भजन-कीर्तन मंडली एकाएक लोप कहां हो गई?’’

''समझ लो कि अजब मायावी प्राणी है वह, किसी पहुंचे हुए जादूगर जैसा।’’

''लेकिन वह भले ही मायावी हो, उसे छोडऩा नहीं है। खोजना होगा, किसी भी कीमत पर।’’

उन्मत्त भीड़ अब नए जोश के साथ अलग-अलग समूहों में शहर भर में फैल गई। शहर-शहर, कस्बे-कस्बे, गांव-गांव में फैल गई है। वह गांधी को ढूंढ रही है। गांधी उसके सामने हैं, पर गांधी उसे नहीं मिल रहे हैं। भीड़ की तलाश जारी है। भीड़ खीझ रही है। खीझ कर वह 'नाथूराम गोडसे ज़िंदाबाद’ का नारा लगाते हुए किसी की भी हत्या कर देती है। वह हत्या का उत्सव मनाती है। उसे ऐसा उत्सव मनाने में आनन्द आता है। उसे खून से लथपथ छटपटाते-तड़पते लोगों को देखने में आनन्द आता है। वह उन इश्तहारों को फाड़ देती है जिन पर गांधी की तस्वीरें हैं। वह उन पुस्तकों को जला डालती है जो गांधी ने लिखी हैं। लेकिन उसे गांधी नहीं मिलते। वह एक बार फिर गांधी की हत्या करना चाहती है। उसे आश्चर्य होता है गांधी मर कर भी ज़िंदा है।

लाइव टेलिकास्ट अपने पूरे क्लाइमैक्स के साथ जारी है। विभिन्न शहरों, कस्बों से चैनलों के संवाददाता अपनी-अपनी रिपोर्ट दे रहे हैं।

किसी चैनल के संवाददाता को अचानक सद्बुद्धि आ जाती है। वह कहता हुआ सुनाई देता है - ''गांधी की जितनी बार हत्या होगी, वह उतनी बार जी उठेंगे। गांधी एक विचार का नाम है और विचार की कभी हत्या नहीं हो सकती।’’

चैनलों ने लाइव प्रसारण की पूरी रिकॉर्डिंग कर ली है। रिकॉर्डिंग चौबीसों घंटे जारी है। मिर्च-मसालों, डिटरजैंट, आर.ओ., फ्रिज, ए.सी., हर्बल टुथपेस्ट, हर्बल साबुन के साथ ही अब वस्त्रों, जूतों, कारों, दुपहियों आदि के विज्ञापन भी आ गए हैं। एंकर खुश हैं, संवाददाता खुश हैं। सबसे अधिक चैनल मालिक खुश हैं। टी.आर.पी. बढ़ रही है, आमदनी बढ़ रही है। वे चाहते हैं कि हर चार-छ: महीने में इसी तरह गांधी-हत्या की कोशिश होती रहे।

कोशिश करने वाले, करते हैं, लेकिन गांधी है कि उनकी मौत ही नहीं होती।

 

 

 

वरिष्ठ कथाकार और लेखक प्रदीप पंत पहल में दूसरी बार। एक पहल के पुराने जमाने में अपनी तीखी टिप्पणी के साथ छपे थे जिसमें उन्होंने राही मासूम रज़ा के महाभारत सीरियल लिखने पर गंभीर सवाल उठाए थे। यह कि उससे धार्मिक उन्माद का एक नया दरवाज़ा खुलता है। प्रकाशित कहानी आज के नए उन्माद को चित्रित करती है।

संपर्क : मो. 9968204810, नई दिल्ली

 


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