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पहल - 114

अल्बर्ट आइंस्टाइन और मिलेवा मेरिक

यूनुस ख़ान

वैज्ञानिक जीवन/प्रेमकथा

 

 

 

विलक्षण वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टाइन चौदह मार्च 1879 को उल्म जर्मनी में पैदा हुए थे। हालांकि उनके पिता का कारोबार म्यूनिख में रहा। दिलचस्प बात ये है कि आइंस्टाइन पैदाइश से तो यहूदी थे—लेकिन उनकी आस्था अपने धर्म के प्रति नहीं थी। ये बात अलग है कि पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने यहूदी तरीके से संस्कार किए थे। सन 1921 में अलबर्ट आइंस्टाइन ने सापेक्षता के सिद्धांत पर सोरबॉन यूनिवर्सिटी में एक आरंभिक शोध-पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा था—'अगर मेरा सिद्धांत सही साबित हो गया तो जर्मन मुझे 'जर्मनकहेंगे, स्विस मुझे 'स्विसनागरिक कहेंगे, फ्रेंच मुझे एक 'महान वैज्ञानिककहेंगे, लेकिन अगर 'सापेक्षता का सिद्धांतलत साबित हो गया तो फ्रेंच मुझे 'स्विस नागरिककहेंगे, स्विस मुझे 'जर्मनकहेंगे और जर्मन मुझे 'यहूदीकहेंगे। आज अपने देश में हम जिस भीषण दौर में जी रहे हैं, 97 साल पहले कही गयी आइंस्टाइन की बात बहुत मार्मिक और प्रासंगिक है।

सन 1895 में सोलह वर्ष की आयु में आइंस्टाइन ने स्विस फेडेरल पॉलीटेक्निक की प्रवेश परीक्षा दी, लेकिन भौतिकी और गणित को छोड़कर बाकी विषयों में उनके अंक निराशाजनक रहे। आखिरकार मन मारकर उन्हें  आराओस्विटज़रलैंड के अरगोवियन कैन्टोनल स्कूल में पढऩा पड़ा। अगले ही बरस उन्होंने स्विस मैच्युरा अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की और उन्हें ज्यूरिख पॉलीटेक्निक में गणित और भौतिकी में टीचिंग-डिप्लोमा के लिए प्रवेश मिल गया।

यहां उनकी मुलाकात हुई बीस वर्षीय सर्बियाई युवती मिलेवा मेरिक से। बचपन में मिलेवा को घुटनों का टी.बी. हुआ था, जिसकी वजह से उनका बायां पैर छोटा रह गया था और उन्हें  अपने ऑर्थोपेडिक शू पहनने पड़ते थे। दिलचस्प बात ये है कि गणित और भौतिकी का जो टीचिंग-डिप्लोमा का कोर्स था उसमें जो छह छात्र चुने गये थे—उनमें मिलेवा इकलौती महिला थीं। दोनों की मुलाकातें लाइब्रेरी, लेक्चर और बाद के ख़ाली वक्त  में होने लगीं। संभवत: दोनों साथ-साथ हाइकिंग पर भी गए। सत्र समाप्त  होने के बाद मिलेवा गर्मियां बिताने के लिए अपने परिवार के पास वोज्वो दिना सर्बिया लौट गयी और अल्बर्ट छुट्टियों में अपने परिवार के पास इटली चले गए। ज्यूरिख में पहले साल के पाठ्यक्रम से मिलेवा कोई ख़ास खुश नहीं थीं—क्योंकि भौतिकी और मैकेनिक्स के ज्यादा सेमिस्टर नहीं थे। इसलिए मिलेवा ने फैसला किया कि वो यूरोप की सबसे पुरानी और बहुत प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी हाइडेलबर्ग में एक सेमिस्टर पढ़ेंगी, जहां मशहूर प्रोफेसर और वैज्ञानिक फिलिप लेनार्ड पढ़ा रहे थे, जिन्हें आगे चलकर भौतिकी का नोबेल पुरस्कारर भी मिला। अलबर्ट जब ज्यूरिख वापस लौटे तो मिलेवा वहां से जा चुकी थी। उसकी सहेलियों के ज़रिए अलबर्ट ने मिलेवा का पता लगाया और सबसे पहले सन 1897 में चार पन्नों का अपना पहला पत्र मिलेवा के नाम लिखा। ये पहला पत्र अब उपलब्ध नहीं है लेकिन इसके बाद से मिलेवा और आइंस्टाइन के बीच लगातार पत्र व्यवहार होता रहा। सन 1897 से 1903 के दौरान दोनों के बीच करीब साढ़े चार दर्जन पत्रों का आदान-प्रदान हुआ।

ये पत्र अद्भुत हैं। इन पत्रों में दोनों के बीच नोंक-झोंक, प्रेम का पनपना और बहुलता में वैज्ञानिक विमर्श भी मौजूद हैं। दिलचस्प बात ये है कि आइंस्टाइन का मिलेवा से प्रेम उनके अपने माता-पिता को स्वीकार नहीं था और घर के इस विरोध ने आइंस्टाइन को ना केवल असुविधाजनक स्थिति में ला दिया था बल्कि मिलेवा से विवाह के इरादे को और भी पक्का कर दिया था।

20 अक्टूबर 1897 को जर्मनी के शहर हाइडेलबर्ग से मिलेवा मैरिक आइंस्टाइन के पहले पत्र का जवाब देते हुए लिखती हैं—'तुमने कहा था कि जब मैं ऊब जाऊं, तब पत्र लिखूं। मैंने तुम्हारी आज्ञा मानी और आज तक ऊबने का इंतज़ार किया। हो सकता था कि मैं 'समय के अंततक इंतज़ार ही करती रह जाती, पर तब तुम सोचते कि मैं कितनी निर्मम हूं।इस पत्र में आगे वो लिखती हैं—'कल प्रोफेसर लेनार्ड का लेक्चर बहुत ही शानदार था। वो गैसों की kinetic energy की बात कर रहे थे। उन्होंने बताया कि ऐसा लगता है, ऑक्सीजन के अणु चार सौ मीटर प्रति सेकेन्ड की गति से चलते हैं। इसके बाद प्रोफेसर गणनाएं करते रहे, करते रहे, उलझते रहे और आखिरकार साबित कर दिया कि वे अणु वाकई इस गति से चलते हैं। लेकिन वो इस गति से हमारे बालों के दसवें हिस्से जितनी दूरी ही तय करते हैं

कमाल की बात ये है कि अक्टूबर में लिखे इस पत्र का उत्तर आइंस्टाइन फरवरी में देते हैं। इतनी देर से। वे लिखते हैं (यहां मैं पत्र के अंश प्रस्तुत कर रहा हूं) —'आखिरकार तुम्हें  पत्र ना लिखने का जो अपराध-बोध था, उसे जीतकर मैं ये पत्र लिखने बैठ ही गया हूं। तुम्हें यहां ज्यूरिख लौट आना चाहिए। जल्दी से आ जाओ। जानती हो, हरविट्ज़ ने भिन्नों के अलग-अलग समीकरणों के बारे में लेक्चर दिया, उन्होंने फूरियर सीरीज़ और डिफरेन्शीयल इक्वेशन और कुछ डबल इंटीग्रल की भी बात की। हरज़ोग ने पदार्थ की शक्ति के बारे में बढिय़ा बातें बतायीं पर डायनेमिक्स के बारे में वो इतने स्पष्ट नहीं थे। वेबर ने उष्मा के बारे में बताया। तापमान, थर्मल मोशन, हीट क्वांटिटी, गैसों की डायनेमिक थ्योरी की बातें उन्होंने कीं। जबकि फीडलर प्रोजेक्टि व ज्योमेट्री पढ़ा रहे हैं। इसलिए मुझे लगता है कि तुम्हें जल्दी से जल्दीं यहाँ लौट जाना चाहिए। मैंने सारे नोट्स तैयार किए हैं और उनसे तुम्हें मदद मिलेगी

इस तरह के ब्यौंरों के साथ ये प्रेम-पत्र अद्भुत बनते चले जाते हैं। इन प्रेम-पत्रों में वो आइंस्टाइन की मिलेवा से मजबूरी में दूर रहने की बेचैनी नज़र आती है। प्रेम की वो विकलता, मिलने की प्रतीक्षा, भौतिकी के शोध के लिए जुनून, बदलते हुए ज़माने की चिंताएं... एक साथ बहुत कुछ है इन पत्रों में। यहां ये भी बता दें कि अप्रैल 1898 में मिलेवा समर-सेमिस्टनर के लिए ज्यूरिख वापस आ गयी थी। और इस बीच दोनों अकसर मिलेवा के कमरे में एक साथ अपनी पढ़ाई भी करने लगे थे। मिलेवा के गहन ज्ञान से आइंस्टाइन खासे प्रभावित थे। यहां ये जानना रोचक होगा कि दोनों के बीच अकसर लुडविग बोल्ट्ज़ मैन, पॉल ड्रूड, हर्मन हेल्म, होल्ट्ज़ , हेनरी कहर्टज़, गुस्ताव किरचॉफ, अन्स्र्टमाक और विलहेमओस्टवॉल्ड जैसे विद्वानों के काम पर विमर्श भी होता रहता था। सन 1899 की शुरूआत तक मिलेवा और अल्बर्ट की ये दोस्ती  रोमांस में बदल चुकी थी। मार्च 1899 में अल्बर्ट छुट्टियों में अपने घर चले गये थे और मिलेवा की तस्वीर लेकर गए थे ताकि परिवार को दिखा सकें।

आइंस्टइन जिन दिनों में ये पत्र व्यवहार कर रहे हैं तब उनकी उम्र 19 बरस है जबकि मिलेवा की उम्र है 23 बरस। उनकी दोस्ती? के बीच अब प्रेम पनप रहा है। पहले ही पत्र में मिलेवा लिखती हैं कि मैंने तुम्हारे बारे में अपने पिता को बताया और उन्होंने तुम्हारे लिए तंबाकू भेजा है। बीस मार्च 1899 को मिलान से लिखी चिठ्ठीमें आइंस्टाइन लिखते हैं कि मां को तुम्हारी तस्वीर दिखायी है। वो बहुत ध्यान से तुम्हें देख रही थीं। दोनों के बीच की दोस्ती के प्रेम में बदलने का संकेत है अगस्त 1899 का वो पत्र....जो आइंस्टाइन ने मिलेवा को मैटमेन्स्टेेटन ज्यूरिख से लिखा। उसमें उन्हों ने उन्हें  'डॉलीकहकर संबोधित किया है। इससे पहले के मिलान से ही लिखे पत्र में उन्हों ने लिखा—'इन दिनों जब-जब मुझे डांट पड़ी, मुझे तुम्हारी बहुत याद आयी। ये बहुत ही रोचक बात है। छुट्टियों में मिलान लौटने पर आइंस्टाइन को भीषण लापरवाही और अपनी ही दुनिया में खोए रखने की वजह से मां से बार-बार डांट पड़ती थी और यह डांट उन्हें मिलेवा की याद दिलाती थी। मिलेवा हमेशा ज्यूरिख में आइंस्टाइन को उनकी लापरवाही, भुलक्कड़ी, खोया-खोया रहने और असमंजस में रहने के कारण डांटा करती थीं। वो छोटे-छोटे मुद्दों पर फैसला नहीं लेते थे या जब कुछ तय करने की घड़ी आ ही जाती, तो जो आखिरी सलाह जिस किसी से भी मिलती, उसे ही अपना लेते। आइंस्टाइन भौतिकी के बारे में इतना ज्यादा सोचते थे कि अकसर ही घर की चाभी कहीं भूल जाते। ऐसे में कभी वो मिलेवा के पास चले जाते। एक बार तो ऐसे ही हालात में मिलेवा के कमरे पर भी ताला लगा मिला था। दूसरी तरफ मिलेवा दृढ़ विचारों वाली थीं, उनकी पसंद-नापसंद स्पष्ट थी, व्यक्तियों को भांप लेना उन्हें  आता था और वो आइंस्टाइन को भी ये सब सिखाती थीं। यहां तक कि समय और यूनिवर्सिटी से मिले पैसों का सही प्रबंधन भी।

आइंस्टाइन किस तरह मिलेवा की ओर झुके जा रहे थे, इसका संकेत मार्च 1899 का एक पत्र है, जिसमें उन्होंने जिक्र किया है कि किस तरह पॉलीटेक्नीक के प्रोफेसर एल्फ्रेडस्टर्न के घर डिनर के दौरान जब उन्हें मिलेवा के बगल में बैठने का मौका मिला था तो वो कितने खुश थे। वो लिखते हैं—'तब मुझे महसूस हुआ कि हमारे मानसिक और मनोवैज्ञानिक जीवन किस तरह आपस में जुड़े हुए हैं। ज्यूरिख में पढ़ाई के दौरान किस तरह आइंस्टाइन का सारा फोकस अपने शोध पर रहता था, इसका पता चलता है मिलेवा की सहेली मिलाना बोटा के दिये ब्यौरे से। वो लिखती हैं—'अल्बर्ट कभी ध्यान ही नहीं देते थे कि वो कैसे दिख रहे हैं। कभी नेक-टाइ नहीं लगाते थे, उनकी पतलून में कभी इस्त्री तक नहीं होती थी, कोट के बटन नहीं लगे होते थे। उनके बाल कवियों की तरह बड़े-बड़े होते थे। अकसर अल्बर्ट वायलिन बजाते थे और मैं पियानो पर उनका साथ देती थी

अगस्त 1899 के अपने पत्र में आइंस्टाइन मिलेवा को संबोधित करते हुए लिखते हैं—डीयर डॉली, इस बीच खाली समय में मैंने atmospheric moments पर हेल्महोल्ट्ज़  के सिद्धांत पढ़े। जब मैंने उन्हें पहली बार पढ़ा तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ, अब भी नहीं होता कि मैं तुम्हें बिना ये सब पढ़ रहा हूं। इसे तुम्हारे साथ भी पढऩा चाहूंगा। इसके कुछ ही दिन बाद लिखे अपने पत्र में आइंस्टाइन विज्ञान पर फिर विमर्श करते दिखते हैं—'डॉली, मैंने हेल्म़होल्ट्ज  की पुस्तक लौटा दी है और अब electrical force के बारे में हर्टज़ की पुस्तक पढ़ रहा हूं। क्योंकि मुझे लगता है कि गतिज वस्तुओं की electrodynamics यथार्थ के धरातल पर सही नहीं बतायी है। इसे आसानी से समझाया जा सकता है। जब से विद्युत के सिद्धांतों में हमने 'ईथरको शामिल किया है, तो हमें एक 'मीडियममिल गया है जिसकी गति को समझाया जा सकता है। मुझे लगता है कि विद्युतीय बल को केवल empty space में ही परिभाषित किया जा सकता है। इस तरह electrodynamics खाली स्पेस में गतिज electricity और magnetism की गतियों का सिद्धांत बन जाएगी

इसी पत्र में आइंस्टाइन अपनी एक असुविधा का भी जिक्र करते हैं। वो बताते हैं कि किस तरह से मैटमेन्स्टेटन में साथ रही रही उनकी मां और बहन की मौजूदगी परेशानी का सबब बन रही है। वो कहते हैं कि अब मुझे उनके विचार संकीर्णता भरे लगने लगे हैं। कैसे जीवन हमारी आत्मा को बड़े सूक्ष्म तरीके से बदल देता है और कैसे पारिवारिक संबंध केवल एक आदत में बदल जाते हैं। अंदर ही अंदर हम एक दूसरे को समझ नहीं पाते। एक दूसरे के जज्बात नहीं समझते, सहानुभूति समाप्त हो जाती है। दूरी बढ़ती जाती है। यहां आइंस्टाइन मिलेवा के खुले विचारों, उनकी विद्ववत्ता और उनके साथ को बुरी तरह 'मिसकरते नज़र आते हैं।

ये वो समय है जब आइंस्टाइन लगातार काम कर रहे हैं। रिलेटिविटी की थ्योरी आने में अभी भी तकरीबन छह साल का समय है।

10 अक्टूबर 1899 को मिलान से लिखे अपने पत्र में वो लिखते हैं—'इन दिनों मैं लगातार पढ़ रहा हूं और मैंने thermoelectricity के fundamental laws पर अपना पर्चा तैयार कर लिया है। मैंने एक आसान-सा तरीका खोजा है, ये पता लगाने का कि क्या  धातुओं की latent heat को ponderable matter या electricity की गति के मुताबिक कम किया जा सकता है। यानी क्या एक आवेशित पदार्थ की specific heat अनावेशित पदार्थ से अलग होगी।

17 अप्रैल 1900 को समर सेमिस्टर शुरू हुआ। ये पॉलीटेक्निक में मिलेवा और अल्बर्ट का आखिरी सेमिस्टर था। इस बार दोनों ने प्रोफेसर वेबर के साथ काम करना चुना। इसके अलावा प्रोफेसर मिन्कोवस्की  के साथ दोनों ने analytical mechanics और heat conduction पर काम करने का फैसला किया। ये वो दिन थे जब दोनों एक साथ काम करते थे और पढ़ाई भी साथ ही चलती रहती थी। दोनों के बीच प्रेम बहुत गहन हो रहा था। अल्बर्ट के दिल का एक हिस्सा वो था जो भौतिकी के लिए था। भौतिकी अल्बर्ट आइंस्टाइन के जीवन का एक ज़रूरी हिस्सा थी। और दूसरा हिस्सा मिलेवा के लिए था। ये वो दिन थे जब आइंस्टाइन ने भौतिकी में जो भी काम किया, मिलेवा उसका हिस्सा रहीं। दरअसल आइंस्टाइन का जो भुलक्कड़पन और शून्य-चित्त हो जाना था, या फैसला ना ले पाने वाली वृत्ति—उसके निपटने के लिए मिलेवा का उनके निकट होना जरूरी था। विज्ञान में गहन शोध के बीच आइंस्टाइन वायलिन बजाते और मिलेवा गाती थीं।

इसके बाद सन 1900 के किसी समय लिखे बहुत संक्षिप्त  पत्र में मिलेवा आइंस्टाइन को 'डीयर जॉनीकहकर संबोधित करती हैं, वो कहती हैं कि वो उन्हें बहुत पसंद करती हैं, क्या 'आइंस्टाइन भी उन्हें उतना ही प्यार करते हैं। वो आइंस्टाइन से फौरन जवाब भेजने को कहती हैं।

इस पत्र के जवाब में आइंस्टाइन का जो पत्र है वो जुलाई 1900 के अंत में लिखा गया है। 27 या 29 तारीख को। इसमें उन्होंने एक बड़ी दिलचस्प और महत्वपूर्ण घटना का जिक्र किया है। वो लिखते हैं कि मम्मा ने मुझसे पूछा, डॉली और तुम्हारा क्या नाता होने वाला है। मैंने जवाब दिया, वो मेरी पत्नी बनेगी। इसके बाद जिसकी उम्मीद थी वही हुआ। मम्मा ने तकिए में अपना सिर गड़ा लिया और एक बच्चे की तरह रोईं। फिर उन्होंने कहा कि तुम अपना भविष्य बर्बाद कर रहे हो। कोई भी सम्मानित परिवार उसे नहीं अपना सकता। वो लड़की एक किताब की तरह है, वो पत्नी की तरह नहीं हो सकती। जब तक तुम तीस साल को होगे, वो एक बुढिय़ा बन चुकी होगी। (ये उन दिनों की बात है जब मिलेवा की उम्र चौबीस और आइंस्टाइन की 20 बरस थी) इस बीच अगर वो गर्भवती हो गयी तो तुम्हारा जीवन नष्ट  हो जायेगा। असल में आइंस्टाइन की मां की समस्या ये थी कि मिलेवा ना तो यहूदी हैं और ना जर्मन। उनका एक पैर भी राब है, वो लंगड़ाकर चलती हैं और कुछ ज्यादा ही बौद्धिक हैं।

यह पत्र कई अर्थों में बड़ा महत्वपूर्ण हैं। आइंस्टाइन अपने घर में परिवार के बीच कितने बेमन से और कितने त्रस्त रहते थे, इसकी गवाह हैं ये पंक्ति— 'यहां के लोग और इनके जीने का तरी$का इतना फुरसतिया और खाली है कि क्या कहूं। दोनों वक्त खाना खाने में ये लोग एक घंटे से ज्यादा लगा देते हैं, मुझे ये नर्क जैसा लगता है। शायद इसलिए माजा (यानी बहन मारिया आइंस्टाइन) आराओ वापस जाने को बे$करार लग रही है।

जुलाई 1900 में आइंस्टाइन ज्यूरिख पॉलीटेक्निक से डिप्लोमा हासिल करके भौतिकी की अपनी किताबों के साथ घर लौट गये थे। और फिर अपने परिवार मेल्शटाल में छुट्टी मनाने के लिए चले गए थे। ये उत्तरी इटली में स्विस एल्प्स पर झील के किनारे बसा खूबसूरत गांव था।

इसके बाद के 6 अगस्त 1900 को लिखे एक पत्र में आइंस्टाइन मिलेवा को लिखते हैं कि पापा ने मुझे नैतिकता की बहुत सारी बातें अपने खत में लिखीं। मैं अपने माता-पिता को अच्छी तरह जानता हूं। वो पत्नी को पति के उपभोग की वस्तु मानते हैं—जिसे तभी लाना चाहिए जब आप पर्याप्त कमाने लगें। ये नज़रिया तो पत्नी और वेश्या को एक समान बना देता है। फर्क सिर्फ इतना है कि पत्नी को आजीवन सामाजिक सुरक्षा प्राप्त रहती है। यहां आइंस्टाइन कहते हैं कि मेरे माता-पिता और समाज के ज्यादातर लोगों के फैसलों में भावनाओं की बजाय इंद्रियों का प्रभाव ज्यादा रहता है। मानव समाज के विकास में भूख और प्रेम दो प्रमुख प्रेरणाएं रही हैं और तकरीबन हर घटना को इससे समझा जा सकता है। मिलेवा के लिए आइंस्टाइन की विकलता इस पत्र में छलक-छलक पड़ती है।

इस पत्र में मौजूद आइंस्टाइन की प्रेम से भीगी पंक्तियां बड़ी ही प्रसिद्ध हुई हैं।

वो लिखते हैं—'जब तुम साथ नहीं होतीं, तो मुझे लगता है कि मैं अधूरा हूं। जब बैठता हूं तो मन टहलने का करता है, जब टहलता हूं तो घर जाने का मन होता है, जब कोई मनोरंजन करता हूं तो पढऩे का मन करता है, जब पढ़ता हूं तो मन स्थिर नहीं हो पाता, फोकस नहीं होता। जब सोने जाता हूं, तो मन असंतुष्ट रह जाता है कि दिन किस तरह बर्बाद हो गया। आइंस्टाइन के भीतर का भावुक प्रेमी इन दिनों के पत्रों में बार-बार उभरता है। 9 अगस्त के पत्र में उनकी पंक्तियां हैं-

ज्यूरिख घर जैसा है, पर तुम्हारी याद आती है। मैं कहीं भी जा सकता हूं, पर कहीं का नहीं हो पाता। तुम्हारी दो नन्हीं बाहें याद आती हैं। लेकिन इसी पत्र में जिंदगी का यथार्थ भी उजागर होता है। वो अपने मित्र एरहाट का जिक्र करते हुए बताते हैं कि उसने मेरे लिए इंश्योंरेन्स के दफ्तर में असिस्टेन्ट की नौकरी की सिफारिश की है। आठ घंटे ये मूर्खतापूर्ण काम करने के आठ फ्रैंक मिलेंगे। मैंने इसे ठुकरा दिया है ताकि मैं छुट्टियों का बेहतर उपयोग कर सकूं।

चौदह अगस्त 1900 को ज्यूारिख से लिखे पत्र में एक बार फिर आइंस्टाइन एक भावुक प्रेमी हैं। 'सीटी बजाते हुए जब मैं टहल रहा था, मुझे अहसास हुआ कि तुम्हारे बिना मैं पहले कैसे जीता रहा था। अब तो तुम्हारे बिना मेरे भीतर का आत्मविश्वास और काम का जुनून गायब हो जाता है। कुल मिलाकर तुम्हारे बिना मेरा जीवन जीवन नहीं रह जाता

30 अगस्त या 6 सितंबर को मिलान में छुट्टियां बिताने के दौरान लिखे एक पत्र में आइंस्टाइन मिलेवा को बताते हैं कि उनके प्रेम का घर में किस $कदर विरोध हो रहा है। वो लिखते हैं कि—'चिंता मत करो, मेरी चिठ्ठीयां कोई नहीं पढ़ता। जो मन में हैं—वो लिखो। तुम्हारे भेजे पैसे भी मुझे मिल गये हैं। हमारे प्रेम को लेकर मेरे माता-पिता बहुत चिंतित हैं। मां अकसर ही बुरी तरह रोती हैं, मानो मैं मर गया हूं। मुझे यहां एक पल भी सुकून नहीं मिल पाता।आइंस्टाइन के अनेक पत्रों की तरह प्रेम और विज्ञान की अंर्तधारा इस पत्र में भी है। थॉमसन प्रभाव की छानबीन के लिए मैंने फिर से एक अलग तकनीक प्रयोग की है, जो तुम्हारे तरीके जैसी है। इस बार में और काम करना होगा। हां, वेबर के साथ अच्छे रिश्ते रखना क्योंकि उनके पास बेहतरीन लैब है।

13 सितंबर 1900 को एक पत्र आइंस्टाइन ने मिलेवा को लिखा, जिसमें उन्होंने एक स्केच बनाकर भेजा और इसे शीर्षक दिया— 'कैप्टन जॉनी का पैर। ये उनके पैर का स्केच है। असल में मिलेवा चाहती थीं कि अल्बर्ट अपने पैर का नाप भेजें ताकि वो सर्दियों से बचने के लिए उनके लिए ऊनी-मोज़े बुन सकें, पर आइंस्टाइन नहीं चाहते थे कि पढ़ाई का समय मिलेवा बुनाई में बर्बाद करें। अपने पैर के इस अद्भुत विज्ञान स्केच में आइंस्टाइन ने मिलेवा की विज्ञान में दिलचस्पी और बुनाई से प्रेम का अंर्तसंबंध दिखलाया है।

 

 

 

 

इसी पत्र में आइंस्टाइन बोल्ट्ज़ मैन को पढ़कर प्रसन्न नज़र आते हैं और लिखते हैं कि वे बहुत कुशल लेखक हैं। गैसों में निश्चित आकार के discrete mass points होते हैं जो खास स्थितियों के मुताबिक गति करते हैं। बोल्ट्ज़ मैन ने सही कहा है कि अणुओं के बीच काल्पनिक बल इस सिद्धांत का हिस्सा नहीं हैं क्योंकि ये पूरी गतिज ऊर्जा ही है। इसी पत्र में आइंस्टाइन का एक बड़ा महत्वपूर्ण वाक्य है। मिलेवा के शोध के बारे में पूछते हुए वो कहते हैं कि मुझे गर्व होगा जब मेरी प्रिया पी.एच.डी. पूरी कर लेगी और मैं एक सामान्य व्यक्ति बना रहूंगा।

19 सितंबर 1900 को मिलान से आइंस्टाइन ने मिलेवा को जो पत्र लिखा है उसमें नौकरी खोजने की विकलता दिखाई देती है। तब भौतिकी के किसी भी स्कॉलर के लिए दो ही रास्ते  होते थे, किसी स्कूल में टीचर बन जाए या फिर किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का सहायक बन जाए। दरअसल जुलाई में डिप्लोमा हासिल करने के बाद उनके बैच के पाँच में से चार छात्रों को वहीं नौकरी मिल गयी थी। आइंस्टाइन को बड़ी उम्मीद थी कि उन्हें  भी आसानी से नौकरी मिल ही जायेगी। इस पत्र में वो मिलेवा को लिखते हैं कि मैं एक अक्टूबर को खुद प्रोफेसर Hurwitz के पास नौकरी का पता करने खुद जाऊंगा। तुम कहो तो तुम्हारे लिए भी नौकरी खोजूं। मैं सोच रहा हूं कि कुछ ट्यूशन लेना शुरू कर दूं। बाद में ये काम मैं तुम्हें सौंप दूंगा। अपनी राय बताना। चाहे जो हो, हम एक शानदार जीवन जियेंगे। साथ रहेंगे, साथ काम करेंगे। हमें किसी को जवाब नहीं देना होगा, हम अपने पैरों पर खड़े रहेंगे। जब पैसे इकठ्ठे हो जायेंगे तो हम साइकिलें रीदेंगे और हर दो सप्ताह में घूमने जाया करेंगे।

ज्यूरिख में जो प्रोफेसर थे, उनमें से वेबर और पेरनेट से आइंस्टाइन की बिलकुल नहीं जमी। उन्हेें उम्मीद थी कि Hurwitz ज्यादा पसंद ना करने के बावजूद काबलियत के आधार पर उन्हें  अपना सहायक बना लेंगे, पर ऐसा ना हुआ और अपने बैच में आइंस्टाइन अकेले स्कॉलर रहे जो सन 1901 के अंत तक बेरोज़गार रहे। इसी दौरान उन्होंने 'कैपिलरी इफेक्टपर अपना पहला रिसर्च पेपर भी लिखा। इन पत्रों में मिलेवा से अकसर उन्होंने इस पेपर को लिखते समय विमर्श किया है। मार्च 1901 के पत्र में वो ठोस और तरल पदार्थों में उष्मा की latent kinetic energy पर विस्तार से लिखते हैं। और मिलेवा से कहते हैं कि कांच की विशिष्ट उष्मा के बारे में अगर कोई सामग्री मिले तो खोजकर भेजें।

27 मार्च 1931 को आइंस्टाइन ने मिलेवा को जो चिठ्ठी लिखी है, उसमें साफ है कि म्यूनिख में नौकरी मिलने की संभावनाएं क्षीण हो चुकी हैं। वो लिखते हैं कि अब वो इटली में सहायक प्रोफेसर की नौकरी का प्रयास करेंगे। क्योंकि यहां जर्मन भाषी देशों की तरह यहूदी-विरूद्ध माहौल नहीं है। इसी पत्र में विशिष्ट उष्मा पर चल रहे उनके काम पर विस्तार से वैज्ञानिक विमर्श भी है। वो मिलेवा से कहते हैं कि वो कांच के बारे में डूलॉन्ग पेटिट नियम की व्याख्या में मदद करें। अगले कुछ पत्रों में आइंस्टाइन की नौकरी की जद्दोजेहद और भौतिकी में लगातार चल रहे उनके काम का जिक्र है। जर्मनी और इटली में नौकरी मिलने की संभावनाएं लगातार क्षीण होती चली जा रही हैं। आइंस्टाइन को प्रोफसरों को शहर घुमाने जैसा घटिया काम करना पड़ रहा है और वो लगातार परेशान हैं। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 15 अप्रैल 1901 के पत्र में उन्होंने मिलेवा को बताया है कि चूंकि प्रोफेसर रेब्स्टाइन इन 15 मई से 15 जुलाई तक आर्मी सर्विस में जा रहे हैं इसलिए मैं उनकी जगह पढ़ाऊंगा। मैं खुश हूं। यही नहीं मित्र मार्सेल ने उन्हें  आशा बंधाई है कि बर्न में उन्हें स्विस पेटेन्ट ऑफिस में नौकरी मिलने की संभावनाएं बन रही हैं।

अप्रैल 1901 के पत्रों में आइंस्टाइन मिलेवा से लेक कोमो नामक जगह पर आने को कहते हैं, दरअसल वो Winterthur में तीन महीने के लिए बतौर टीचर जा रहे हैं और इस मौके को मुलाकात का मौका बनाना चाहते हैं। वो वादा करते हैं कि ये सफर तुम्हारे लिए यादगार रहेगा। शुरूआत में मिलेवा अपने एक पत्र में परीक्षा की तैयारी का वास्ता देकर आने से मना करती हैं पर फिर 3 मई के पत्र में यात्रा की बारीक योजना पर विमर्श होता है और मिलेवा लेक कोमो में आइंस्टाइन से मिलती हैं। यही मुलाकात मिलेवा को गर्भवती बना देती है। मिलेवा चाहतीं तो इस गर्भ से छुटकारा हासिल कर सकती थीं पर उन्होंने इस बच्चे को जन्म देने का फैसला किया। जब मिलेवा ये खबर देती हैं तो 28 मई 1901 को Winterthu से आइंस्टाइन एक पत्र लिखते हैं। दिलचस्प बात ये है कि आइंस्टाइन इस पत्र में पहले बताते हैं कि उन्होंने लेनार्ड का पराबैंगनी किरणों द्वारा कैथोड रे के निर्माण के बारे में पत्र पढ़ा है। अपने वैज्ञानिक रूझान पर बात करने के बाद ही मिलेवा को भरोसा दिलाते हैं— 'खुश रहो, डरो मत। मैं तुम्हें  छोडऩे वाला नहीं हूं। हम इस स्थिति का एक खुशनुमा अंत करेंगे। बस धीरज रखो, देखना, मेरी बांहों में तुम्हेंं बहुत सुकून मिलेगा। हमारा बच्चा कैसा है। सोचो कि आगे चलकर हम बिना किसी व्यवधान के काम कर पायेंगे। आगे हमारी दुनिया में कोई दखल नहीं दे पायेगा

आइंस्टाइन को लगा था कि बच्चे के जन्म के बाद दोनों के परिवार राज़ी हो जायेंगे। तभी तो उन्होंने 7 जुलाई को जो पत्र मिलेवा को लिखा है उसमें वो कहते हैं—'जब हमारा बच्चा पैदा हो जायेगा तो मेरे और तुम्हारे माता-पिता को लगेगा कि अब क्या किया जा सकता है सिवाय अपनी मंजूरी देने के। इसी पत्र में वो भविष्य  के प्रति जिम्मेदार नज़र आते हैं— 'मैं फौरन ही नौकरी खोज लूंगा, वो चाहे जितनी छोटी क्यों  ना हो। विज्ञान को लेकर मेरा जो लक्ष्य है और मेरी जो निजी विचारधारा नौकरी के बारे में है, वो इसमें अड़चन नहीं बनेगी। छोटी मोटी नौकरी भी मैं कर लूंगा। और इसके बाद मैं शादी करके तुम्हें अपने घर ले आऊंगा। कोई तुम्हें कुछ ना कह पायेगा

मिलेवा इस आश्वासन से बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंनने अगले ही दिन पत्र के उत्तर में लिखा—'तुम फौरन नौकरी खोज लो और मुझे यहां से ले चलो। तुम्हारे इस पत्र को पढ़कर मुझे बहुत खुशी हुई, अब भी हो रही है और आगे भी होती रहेगी। पर कोई ऐसी वैसी नौकरी मत ले लेना, वरना मुझे बहुत बुरा लगेगा। मैं इसे बर्दाश्ती नहीं कर पाऊंगी। इसी पत्र में मिलेवा ने आइंस्टाइन से कहा—'मेरी बहन का सुझाव है कि हम दोनों छुट्टियों में मेरे माता-पिता के पास जाएं। एक साथ होने का आनंद तो होगा ही, मां-पापा जब हमें साथ देखेंगे तो उनका सारा संशय भाप बनकर उड़ जाएगा। लेकिन आइंस्टाइन ने इस आमंत्रण पर चुप्पीे साध ली। वो अपनी मां और बहन के साथ छुट्टियां बिताने मेटमेनस्टे्टन चले गए। उन्होंने वहां से 22 जुलाई के खत में नौकरी ना मिलने की निराशा भरी खबरें दीं और बताया कि वो तरल की सतह के सिद्धांत पर काम कर रहे हैं पर कामयाबी नहीं मिल रही है।

जुलाई 1901 के आखिर में मिलेवा ने एक बार फिर डिप्लोमा की अपनी परीक्षा दी। तब उन्हें  तीन महीने का गर्भ था और उन्होंंने अपने परिवार को बताया तक नहीं था। अनब्याही मां बनने का जो बोझ और अनिश्चितता थी, उसका असर ये पड़ा कि दूसरे प्रयास में भी वो फेल हो गयीं। मिलेवा का सपना था कि वो डॉक्टीरेट करके भौतिकी में ही शोध करें। अब उन्होंने शोध के अपने सपने को छोड़ दिया और बहुत निराश होकर अपने पिता के घर वापस लौट गयीं। इससे पहले उन्होंने आइंस्टाइन को अपने पत्र में लिखा— 'तुम जल्दी से मेरे पिता को भले एक छोटी-सी चिठ्ठी लिखो, जो मेरे पहुंचने से पहले वहां पहुंच जाए ताकि मैं वहां जाकर ज़रूरी बर और बुरी बर एक साथ दे सकूं। आइंस्टाइन ने ऐसी कोई चिठ्ठी नहीं लिखी। 3 अगस्त 1901 को मिलेवा अपने माता-पिता के पास novisad पहुंचीं और फेल होने और गर्भवती होने की बरों के साथ अकेले उनका सामना किया। तमाम भली-बुरी बातें सुनीं। शुक्र है माता-पिता ने उन्हें घर से नहीं निकाला।

जुलाई से नवंबर 1901 के बीच आइंस्टाइन और मिलेवा के बीच अगर कोई पत्राचार हुआ भी होगा तो वो अब उपलब्ध नहीं है। 13 नवंबर के एक पत्र में मिलेवा मीठी शिकायत करती हैं— 'तो तुम कल भी नहीं आ रहे हो। ये भी नहीं कहते कि मैं रविवार को आ जाऊंगा। तुम नहीं आओगे तो मैं आ जाऊंगी। काश तुम्हेें पता होता कि मुझे घर की कितनी याद आ रही है, तो तुम ज़रूर आते। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्होरे पैसे खत्म हो गए हैं। डेढ़ सौ फ्रैंक कमाने वाला व्यक्ति, जिसे रहने की जगह भी दी गयी है—उसके पास महीने के अंत में फूटी कौड़ी ना बचे, ये शर्म की बात है। रविवार को पैसे खत्म होने का बहाना नहीं बनाना। नहीं है तो बता दो, मैं भेज दूंगी

Schaffhausen के बाद आइंस्टाइन बर्न आ गए। जहां एक मित्र के पिता की मदद से उन्हें  पेटेन्ट दफ्तर में एक क्लर्क की नौकरी मिलने की संभावना बन गयी। 19 दिसंबर को उन्होंने मिलेवा को लिखा—'एक अच्छी? खबर है। नौकरी मिलने में अब कोई दिक्कत नहीं रह गयी है। जल्दी ही तुम मेरी पत्नी के तौर पर मेरे पास आ जाओगी। हमारी परेशानियों का अंत हो जायेगा। इसके अगले पत्र में आइंस्टाइन लिखते हैं—'मिशेल ने मुझे ईथर के सिद्धांत पर आधारित 1885 में लिखी पुस्तक दी है। ये धारणाएं अब पुरानी पड़ चुकी हैं। विज्ञान अब कितनी तेजी से प्रगति कर रहा है कि जल्दी ही सिद्धांत अनुपयोगी बनते जा रहे हैं

फरवरी 1902 में मिलेवा ने एक बेटी को जन्म दिया। मिलेवा की हालत ऐसी नहीं थी कि वो पत्र लिखकर आइंस्टाइन को सूचित कर पायें। ससुर Milos ने आइंस्टाइन को पत्र लिखकर सूचना दी। 4 फरवरी 1902 के पत्र में आइंस्टाइन ने मिलेवा को लिखा—'तुम्हारे पिता का पत्र देखकर ही मेरी हालत राब हो गयी थी, मुझे लगा ज़रूर कुछ गड़बड़ है। फिर वो बेटी के बारे में पूछताछ करते हैं—'क्यों वो स्वस्थ है। क्या वो ठीक से रोती है। उसकी आंखें किसके जैसी हैं। वो तुम्हारी तरह दिखती है या मेरी तरह। उसे दूध कौन देता है। मैंने उसे देखा तक नहीं, पर मैं उससे बहुत प्यार करता हूं। जब तुम थोड़ी बेहतर हो जाओ तो उसकी तस्वीर भेजना। पिता बनने के बाद आइंस्टाइन ने एक बड़ा घर किराए पर लिया था और इसी त में उसका एक डाइग्राम मिलेवा को भेजा, जिसमें उन्होंने घर का नक्शा समझाया है।

अगले कुछ पत्रों में प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाकर पैसे जमा करने की आइंस्टाइन की कोशिश नज़र आती है। इस बीच मिलेवा अपनी बच्ची को माता-पिता के पास छोड़कर बर्न के पास आ गयीं और आइंस्टाइन का इंतज़ार करने लगीं। लेकिन आइंस्टाइन तो अपने दोस्तों के साथ मजे कर रहे थे। जून 1902 के एक पत्र में वो लिखते हैं— 'अभी अभी दोस्तों के साथ लौटा हूं और खुश हूं। कल मैं इनके साथ बीटनबर्ग जा रहा हूं। जब तुम साथ नहीं होतीं तो मैं तुम्हें बहुत याद करता हूं। जब साथ होती हो तो परवाह नहीं करता। पर चिंता मत करो, अगले रविवार या उसके अगले रविवार मैं तुम्हें घुमाने ले जाऊंगा। 

तेईस जून 1902 को आइंस्टाइन को बर्न के पेटेन्ट ऑफिस में तीसरे दर्जे के तकनीकी सहायक की नौकरी मिल गयी। तनख्वाह थी पैंतीस सौ स्विस फ्रैंक। इस बीच आइंस्टाइन के पिता बीमार पड़े और 10 अक्टूबर 1902 को वो चल बसे। जाते-जाते उन्होंने आइंस्टाइन को मिलेवा से ब्याह की अनुमति ज़रूर दे दी। छह जनवरी 1903 को आइंस्टाइन ने मिलेवा से शादी कर ली। मित्रों के अलावा परिवार का कोई भी सदस्य शादी में मौजूद नहीं था। शादी के बाद आइंस्टा्इन ने बेटी लिजर्ल को बर्न लाने की इजाज़त नहीं दी। वैज्ञानिक बनने का सपना चूर-चूर हो जाने, इतनी जल्दी मां बनने और बाकी सारे हालात ने आइंस्टाइन और मिलेवा के बीच दरार पैदा करनी शुरू कर दी। जुलाई 1914 में आइंस्टाइन ने मिलेवा के सामने साथ रहने की कुछ शर्तें एक नोट के रूप में लिखीं- एक खूबसूरत रिश्तें की परिणति ये थी--

A तुम ध्यानन रखोगी कि--

1) मेरे कपड़े वक्त पर धुलें, प्रेस हों और वो व्यवस्थित रहें।

2) मुझे रोज़ाना अपने कमरे में ही दिन में तीन बार खाना पहुंचाओगी।

3) मेरे बेडरूम और दफ्तर को पूरी तरह साफ रखोगी। खासतौर पर मेरी मेज़ केवल मेरे इस्तेमाल के लिए तैयार हो।

क्च. तुम्हें मेरे साथ सभी निजी रिश्तों को खत्म करना होगा। सामाजिक कारणों से निभाना जरूरी हो तो अलग बात है। खासतौर पर-- 

1) घर पर मेरे साथ बैठना।

2) बाहर साथ साथ सफर करना।

 

Bमेरे और तुम्हासरे रिश्ते  अब निम्नांकित बिंदुओं के पालन पर आधारित होंगे-

1) हम कभी भी नज़दीक नहीं आयेंगे, ना ही तुम इस तरह की उम्मींद या प्रयास करोगी।

2) अगर मैं मना करूंगा तो तुम मुझे पुकारोगी भी नहीं।

3) मेरे कहने पर तुम्हें मेरे बेडरूम या दफ्तर से फौरन निकल जाना होगा।

C मुझे किसी भी तरह बच्चों के सामने नीचा नहीं दिखाओगी।

सन 1905 में आइंस्टाइन ने 'सापेक्षता का सिद्धांतदिया। माना जाता है कि इस सिद्धांत की गणनाओं में मिलेवा का गहन योगदान रहा था। पर आइंस्टाइन ने कभी उन्हें  क्रेडिट नहीं दिया। सन 1921 में आइंस्टाइन को सैद्धांतिक भौतिकी और फोटो-इलेक्ट्रिक प्रभाव के नियमों की खोज के लिए भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

 

 

 

युनूस खान- विविध भारती सेवा में उद्घोषक। संगीत, सिनेमा और मीडिया पर लगातार लेखन। दस वर्षों तक संगीत पर साप्ताहिक कॉलम-'स्वर पंचमी। फिल्मी हस्तियों के विस्तृत साक्षात्कारों में विशेषज्ञता। कविताएं, ब्लॉगिंग, कहानियों एवं कविताओं के ऑडियो इत्यादि नव-माध्यमों पर लगातार प्रयोग।

 


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