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पहल - 114

जुम्मा टैंक का आदमजात

प्रकाश चंद्रायन

लंबी कविता/चार

 

 

 

जुम्मा टैंक1 की घुमावदार सीढिय़ों पर चक्कर काटता है,

एक अकेला आदमजात अधरात।

दिन जैसी कदकाठी रात जैसी रंगत,

हरदम भीतरी पार्टनर से करता है संगत।

कभी देखता है गोधुलि से खुरदुरे पाँव,

कभी ताकता है प्रात सा ललाट।

कभी टटोलता है पृथ्वी की नाभि,

कभी थाहता है आकाश।

 

कभी पीछे लौटता है कभी बढ़ता है आगे,

कभी ठिठकता है कभी बैठता है फिर उठ जाता है।

गोल-गोल घूमता है चढ़ती रात,

और लौट आता है अपने अक्ष पर ढलती रात

अपनी धुरी पर ही होती है रचना,

जैसे अपने-अपने अक्ष पर घूमते रचते हैं-

ग्रह, उपग्रह, तारे, नक्षत्र और ब्रह्मांड।

 

कौन है यह?

खगोल का अंश भूगोल का कण,

जीवन का प्रतिनिधि समय का जन।

शहर की नींव में चिना गोंडवाना2 का आदिम नग्न।

कोई तो है असंभव संभव?

बताओ! जुम्मा टैंक बताओ!!

अपने प्राचीन जल से पूछो।

 

लहरों में बुदबुदाता है

अतल जल की सतह से उठता एक आदमकद,

सुलगती बीडिय़ों की चमक में बुदबुदाता चला जाता है।

जैसे बुदबुद करते थे ऋत्विक घटक3 - ब्रह्मांड पूरछे आदिम पूरछि,

मैं जल रहा हूँ ब्रह्मांड जल रहा है।

राख हो रही है रात,

धूल हो रहा है दिन।

संलाप करती हैं दिशाएं,

एकालाप करती हैं, सांसे और तिथियाँ।

बताओ जुम्मा टैंक! बताओ!!

अपने सजल उर तल से पूछो,

कौन है यह निरंतर बुदबुद का मुख?

 

किससे संवाद किससे प्रतिवाद?

एक छोर से गूँजती आती है,

एम्प्रेस-मॉडल मिलों4 भूखे पोंगों की चीख।

दूसरे छोर से उठती जाती है,

गाजी गेट5 के नौ बागियों की अदम्य आवाज़।

दाएँ हाथ से पकड़ता है अक्षांश,

बाएँ हाथ से देशांतर-

और लिखता है समय की डायरी।

बताओ जुम्मा टैंक! बताओ!!

अपनी आत्मा के गुप्तचर से पूछो -

कौन है यह बुदबुदों में कलम डुबोना हम्माल6?

 

सुनो, जुम्मा टैंक!

मिल जाए पानी में पाँव हिलाता,

सीढिय़ों पर हवा खाता ब्रह्मराक्षस7

उससे वह रहस्य पूछना-

कि जो है उससे बेहतर तो चाहिए

पर पूरी दुनिया साफ करने के लिए मेहतर ही क्यों चाहिए8?

आँखों में आँखे डालकर पूछना-

किसका धतकरम है सडऩ-सड़ाई,

और किसका धरमकरम बनाया गया सफाई?

 

हर दिमागी तहखाने में स्थापित ब्रह्मराक्षस,

कुछ बोले न बोले मुँह तो डुलाएगा।

शायद उसकी गिरती नजरों में गिरावट सच कह जाएगा

कहीं भी दफन हो सच, वह दब नहीं पाता,

अंधी बावडिय़ों से निकले कंकाल भी बता देते हैं-

सभ्यताओं के कालातीत दारूण सच!

सनातनी मैनहोलों का आदमखोर वृत्तांत।

 

ऐसा करो जुम्मा टैंक!

अपने डार्करूम में तमाम नेगेटिव धो लो,

और फंतासी के अंधेरे से बाहर ले आओ-

एक साफ-सुथरी सच्ची तस्वीर।

जैसे समय की गुफाओं से ले आते थे राहुल सांकृत्यायन

सत्य का द्वन्द्व, द्वन्द्व का सत्व

न फंतासी न रूपक,

खोल देते थे गुत्थियाँ।

देख लेते थे बाइसवीं सदी,

तभी तो हो गए सभ्यताओं के लोकसमीक्षक।

 

प्यारे जुम्मा टैंक!

तुम्हें ही खोलना है,

रचना का नीमउजाला नीमअंधेरा।

तुम्हीं हो पार्टनर,

तुम्हारे संग ही सारा गुन्ताड़ा।

 

आलाप-प्रलाप से जन-गण हलाकान,

अभी तो एक राग एक तान यह महान वह महान।

प्रवाचकों की फौज कर रही है मार्च,

समाज देख-लख रहा है चुपचाप।

जब छँटेगा कोलाहल,

तब जनता जानेगी रचना का बल।

 

1.       जुम्मा टैंक : इसके आसपास नागपुर की सामंती-महाजनी-पुरोहिती-औद्योगिक गतिविधियाँ विकसित हुईं। कवि

     मुक्तिबोध का भी प्रियस्थल, जिसे शुक्रवारी तालाब और गांधीसागर भी कहते हैं।

2.       गोंडवाना : मध्यभारत का भूतालिक नाम

3.       ऋत्विक घटक : बांग्ला फिल्मकार और विचारक

4.       एम्प्रेस-माडल मिल : जुम्मा टैंक के समीप दो कपड़ा मिलें, जो अब अतीत हैं।

5.       गाजी गेट : जुम्मा टैंक के निकट एक दरवाजा, जहाँ 1857 में नौ बागियों (गाजियों) को फांसी दी गई। इसे

     जुम्मा दरवाजा और गांधी गेट भी कहते हैं।

6.       हम्माल : कुली, दिहाड़ी मजदूर (मुक्तिबोध की नजरों में लेखक-पत्रकार कलम से हम्माल हैं)

7.       ब्रह्मराक्षस : मुक्तिबोध की कविता-कहानी का पात्र

8.       'मैं तुम लोगों से दूर हूँशीर्षक कविता की पंक्ति

 

प्रकाश चंद्रायन अध्येता, विचारक, पत्रकार और कवि। नागपुर में साहित्यक पत्रकारिता के लंबे वर्ष बिताकर वहीं बस गए है। इसके पहले पहल में कविताएं और आलेख छप चुके है।

संपर्क - मो. 9273090402

 


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