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पहल - 114

अहा! बिजली

संजीव बख्शी

कहानी

 

 

 

झूलनातेंदू एक आदिवासी गाँव है। है तो यह सिर्फ पचास छानी का पर पहाड़ के ऊपर है। घने जंगलों से घिरा हुआ। रेंज आफीसर तिवारी कभी कभी दौरे पर आते रहते हैं ऐसा ही उनका आज दौरा लगा है। मुखिया के घर के सामने झाड़ के छाँव में खटिया लगी है। गाँव के कुछ लोग आ गए हैं, बातें हो रही है।

''क्यों मुखिया जी क्या हाल है?’’

''सब ठीके है साब’’

''सब ठीक हैं?’’

''सब ठीक है तो ठीक है। कैसे जी मैं का गलत कहत हौं?’’ मुखिया ने बैठे हुए लोगों की ओर देखते हुए कहा।

फुसफुसाहट में सबने हामी भरी कि सब ठीक है।

''और पूछोगे तो साब बिजली नई हे का करें भाग में नई हे तो नई हे।’’ मुखिया ने जोड़ा।

''कोशिश क्यों नहीं करते बिजली के लिए?’’

''किए थे साब कोशिश भी किए थे। प्रकरण भी बन गया था और जंगल के बीच से लाईन खींचने के लिए सर्वे भी हो गया था दस साल पहले की बात है। जंगल वाले और बिजली वाले मिल कर झाड़ कटाई कर लाईन खीचने के लिए रास्ता बना दिए थे पर पता नहीं प्रकरण कहाँ अटक गया फिर मंजूरी आज तक नहीं आई। देखते रहे सबके सब रास्ता  कि कब मंजूरी आए तो कब हम लोगों को भी बिजली की रोशनी देखने को मिलें।’’

''एक बार बिजली के प्यास ल बढ़ा दे हे साब फिर मंजूरी नई मिलथे तो यही समस्या है।’’ एक दूसरे किसान ने कहा।

वहाँ से तो लौट आए तिवारी  जी पर दिमाग में यह चलता ही रहा कि बिजली की जरूरत गाँव में कितनी है। दोस्तों के सामने भी उसने बात की कि देखिए हम बिजली के कितने आदी हो गए हैं कि आधे घंटे भी बिजली के बिना नहीं रह सकते। सारी व्यवस्था   हमने अपने लिए कर रखी है। पर बेचारे वे लोग कितने मजबूर है अंधेरे के साथ जीवन बिताने। जिन्हें् एक बार दस साल पहले बिजली की आस लगा दी पर प्रकरण आज तक मंजूर नहीं हुआ।

दोस्तों ने भी दुख जताया और कहा कि यह उनका भाग है। उन्हें उनके भाग पर ही छोडऩे के अलावा हम क्या कर सकते हैं?

पहाड़ उतर कर गाँव वाले हर हफ्ते बाजार जाते दस किलो मीटर चल कर तो लाते माटी तेल हफ्ते भर के लिए। इस तरह वे लाते हफ्ते की रोशनी। अब तो वे लोग भूलने भी लगे हैं कि कभी बिजली के लिए आवेदन भी दिया था। जब आवेदन तैयार किया गया था तो गांव में बैठक कई बार की गई थी और कई कागजों पर सभी ने दस्तखत और अंगूठा निशान लगाए थे। इतना उत्साह था तब बिजली के लिए कोई कल्पना नहीं कर सकता इतना।

झूलनातेंदू केवल नाम का गाँव हैं इसका कोई भू अभिलेख नहीं बना हैं। ताज्जुब की बात यह है कि गाँव न तो राजस्व विभाग में हैं  और न ही वन विभाग में। जब गाँव के लोग राजस्व विभाग में अपना आवेदन लगाते, अपनी फरियाद सुनाते तो कह दिया जाता, वन विभाग में जाओ आपकी सुनवाई वन विभाग में होगी। जब वन विभाग में जाते तो राजस्व  विभाग कह दिया जाता। जाते जाते सब थक गए तो बैठ गए और तय कर लिए कि हमें कहीं नहीं जाना है। सबने देख लिया कि किसी को इसकी परवाह नहीं। परवाह है तो एक नेता जी, पटवारी और राजस्व  निरीक्षक को। वे हर साल गांव आते और यही कह कर कि तुम्हारे पास पट्टा नहीं है मोटी रकम वसूल कर ले जाते। नेता जी चाहते हैं कि कभी इस गाँव में किसी का पट्टा न बने और उनकी उगाही चलती रहे।

मुखिया सबकी तरह ही सामान्य किसान है। उसका घर भी सबसे अलग नहीं है। वैसा ही घर है जैसे और किसानों के हैं। मिट्टी के बने घर सामने छोटी सी परछी। बस फर्क है तो यह कि मुखिया के घर में दो लालटेन  हैं जिसे रोज रात को उसकी कांच को झक साफ कर जलाया जाता है। एक लालटेन की रोशनी तो सड़क तक चली जाती और सामने के छोटे से दुकान को भी रोशन कर देती। इस दुकान को रोशन करना पूरे गांव को रोशन करने जैसा है। वैसे इस दुकान से लोग कम ही खरीदारी करते हैं। अटक फटक में ही कोई सामान पूछने आ जाता है वर्ना सब साप्ताहिक बाजार से पूरा सामान सप्ताह भर के लिए ले आते हैं। सामान न खरीदना हो फिर भी कुछ देर के लिए लोग दुकान के सामने की रोशनी में आ जाते हैं। बीड़ी माखुर गुटका भी हो जाता है और बातचीत कर कुछ देर में अपने अपने घरों में सब चले जाते हैं। मुखिया को छोड़ दें तो और सब घरों में ढिबरी ही जलाते हैं। लोगों ने कभी कभी सोचा भी कि बाजार से लालटेन खरीद कर ले आएं पर यह हुआ नहीं। कभी यह हो गया कि बिजली के लिए आवेदन दिया है देखें कब तक आती है। कभी यह कि लालटेन में माटी तेल का हफ्ते का खर्च बढ़ जाएगा। यह टलता रहा और गाँव में मुखिया का लालटेन ही रोजाना साफ होता और जलाया जाता। सब के सब अंधेरे के इस कदर अभ्यस्त हो गए हैं कि अंधेरी रात को भी उबड़ खाबड़ रास्ते से अपने घर हो या खेत, सीधे पहुँच जाते हैं।

मिट्टी का हुआ तो क्या  हुआ सबका घर चमाचम रहता है। हफ्ता दस दिनों में घर की दीवारों और परछी को गोबर से लीपा जाता है और हरे और पीले रंग का ढीग लगाया जाता है। यह कार्य घर की महिलाएं करतीं और बड़ी कलाकारी के साथ करतीं।

जब गाँव में मुखिया बनाने की बात आई तो उनमें से ही गैंदू को कहा गया कि तुम ही आठवीं पास हो इसलिए तुम्हेें ही मुखिया का काम संभालना होगा। कभी मौका बेमौका सरकारी दफ्तर जाना हो या साहब लोगों से बात करना हो तो तुम ही संभालना। तब से गैंदू ही गाँव का मुखिया बन गया। उसे यह समझ नहीं आता कि सबका पट्टा कैसे बने? उसने इसके बारे में गंभीरता से कभी सोचा भी नहीं। साल के साल नेता पटवारी को खुश रखना होता है यही वह जानता था। यही एक तरह से नियम बन गया था।

गांव में किसी भी अधिकारी कर्मचारी का मुख्यालय नहीं था। कोटवार भी नीचे के गांव सरोना से आता था। पटवारी का भी मुख्यालय सरोना ही था। दो साल पहले प्राथमिक शाला गांव में खुल गई है पर गुरूजी भी सरोना से आना जाना करता है। कभी आता है कभी नहीं आता। सरोना में साप्ताहिक बाजार भरता है गांव के सारे लोग मौसम के हिसाब से जंगल से जो निकल जाता है उसे लेकर बाजार चले जाते हैं। चार चिरौंजी मौहा टोरा तेंदू पत्ता बाड़ी का पपीता कुछ न कुछ तो साल भर लगा रहता है। पहली पहर में इसे बेचने का काम होता है फिर होती है खरीदारी। हफ्ते भर के राशन पानी की खरीदारी। टिकली पाटी कंघी पावडर की खरीदारी। माटी तेल की खरीदारी।

शुरू-शुरू जब भी मुखिया किसी काम से गांव बैठक करता तो सबसे पहले बात निकलती कि बिजली का क्या हुआ। धीरे धीरे लोगों ने सोच लिया कि उनके भाग में ही नहीं है बिजली। और बैठक में चर्चा करना ही छोड़ दिया। 

एक दिन बिजली विभाग का एक लाईन मैन आया कहते हुए मिठाई खिलाओ, मिठाई खिलाओ।

''क्या  हुआ भई?’’ मुखिया ने पूछा और पास बुला कर बैठाया।

गांव में हल्ला हो गया बिजली वाला आया है। बिजली, बिजली, बिजली।

''आपके गांव के लिए बिजली की लाईन मंजूर हो गई। कल ही आदेश हुआ है और आज मैं आप लोगों को खुशखबरी देने भागते हुए आ गया।’’

''अब तो जल्दी ही काम भी शुरू हो जाएगा क्यों भई लाईन मैंन साब’’ मुखिया ने एक दस्सी लाईनमैन की हथेली पर रखते हुए कहा।

''काम तो शुरू हो जाता उसमें कोई दिक्कत नहीं है पर क्या है कि दस साल पहले लाईन खींचने के लिए सर्वे हुआ था और जंगल की सफाई हुई थी, सारे झाड़ों को काटकर रास्ता बनाया गया था, वह दस साल में वैसा का वैसा तो नहीं हैं। आज वहाँ फिर से जंगल हो गया है। नए झाड़ उग आए हैं। बड़े हो गए हैं। मैं तो देखता आ रहा हूँ। वहाँ घना जंगल है। बिना उन झाड़ों को काटे अब बिजली की लाईन कैसे आ सकती है?’’ लाईन मैन ने कहा।

''अच्छा  तो फिर से उस लाईन की सफाई की जाएगी तब फिर बिजली आएगी।’’

''एक बार रास्ते  की सफाई के लिए पैसा मिल गया, सफाई हो गई। अब बार बार उसके लिए पैसा नहीं मिल सकता। यही मुश्किल है कि अब आगे क्या होगा? एक प्रकरण ऐसा ही था उसमें कई साल हो गए आज तक बिजली नहीं लग पाई। लाईन मंजूर होने के बाद भी बेचारे अंधेरे में रह रहे हैं।’’ लाईन मैन ने स्पष्ट किया।

चाय पानी के बाद लाईन मैन अपनी बात बता कर चला गया पर मुखिया के दिमाग में यही चलता रहा कि बिजली मंजूर होने के बाद भी क्या होगा और कब लाईन खींची जाएगी कोई ठिकाना नहीं। दूसरी ओर मन ही मन उसे खुशी हो रही थी कि बिजली मंजूर हो गई। उसे लग रहा है जैसे कल दीवाली है। यह खुशखबरी गांव के सभी लोगों को बताना है। आज ही रात को बैठक बुला ली जाए। उसने खबर करवा दी।

बैठक में सब समय से हाजिर हो गए। मुखिया ने सबको खुशी खुशी यह जानकारी दी कि बिजली मंजूर हो गई है। पर एक दिक्कत है कि जिस रास्ते लाईन खींची जानी है दस साल पहले झाड़ों की कटाई कर वन विभाग से सफाई करवाई गई थी वहां फिर से झाड़ उग आए हैं। सरकारी रिकार्ड अनुसार तो एक बार सफाई हो गई अब बार-बार उसके लिए पैसा मिल नहीं सकता। पर बिना फिर से झाड़ों की कटाई और सफाई के अब आगे कोई कार्यवाही नहीं हो सकती।

''सोचना क्या। है झाड़ों की कटाई करना है तो कल सुबह चार बजे का समय तय किया जाए पूरा गांव इस काम के लिए मौके पर पहुँच जाएगा और रास्तो की सफाई एक पहर में ही पूरी हो जाएगी।’’ एक ने कहा तो सब के सब ने उस पर कहा

''हव।’’  

सुबह चार बजे क्या बच्चे  क्या जवान सब के सब हाथ में कुल्हाड़ी लिए पहुंच गए बिजली लाईन वाली जगह पर और एक नारियल ग्राम देवता के नाम से फोड़ कर सबको प्रसाद बांटा गया फिर काम शुरू हो गया। तीन चार घंटे में सैकड़ों की संख्या में झाड़ों की कटाई हो गई। तय हुआ कि सारे कटे हुए झाड़ों को दूसरे दिन उठाने का कार्य किया जाएगा। सब के सब काम पूरा कर लौट आए।

इधर एक संस्था सक्रिय थी कि कुछ सालों में अंधाधुध जंगल का नाश हुआ है। एक ओर मालिक मकबूजा में अवैध झाड़ कटाई और फिर सरकारी जंगल में भी भारी अवैध कटाई की खबरें आए दिनों मिलती ही रहती थीं। झाड़ कटाई से लोग मालामाल होते जा रहे थे। ऐसा लगता कि ऐसा ही चलता रहा तो पूरा जंगल साफ हो जाएगा। कितने तो दलाल खुलेआम इस काम में लगे हुए थे। इनके पास आदिवासियों की जमीनों पर खड़े झाड़ों की पूरी जानकारी होती। वे आवेदन बना कर उनसे कुछ और कहकर अंगूठा लगवा लेते और फिर पूरे झाड़ों की कटाई के बाद थोड़े पैसे आदिवासियों को दे देते। यह सिलसिला सालों से चलता रहा। लोग यह जरूर सोचते कि कोई इसे रोकता क्यों नहीं।

सुप्रीम कोर्ट में प्रकरण लगाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने गहराई से इसे लिया और सख्त  आदेश कर दिया गया कि अब कोई झाड़ की कटाई नहीं होगी। यहाँ तक कि वन विभाग की ओर से जो कटाई शासकीय भूमि की होती थी वह भी बंद हो गई। दलालों का काम धाम बंद हो गया। सरकारी गलियारा जो आबाद रहा करता दलालों से वह सूनसान हो गया।

संस्था को कोई भी सूचना मिलती कि झाड़ कटाई हुई है तुरंत उसके खिलाफ कार्यवाही के लिए संबंधितों को और खासकर थाने को सूचित कर दिया जाता कि यह तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना है।

झूलनातेंदू में सैकड़ों की संख्या में झाड़ कटाई की सूचना जैसे ही संस्था को हुई तत्काल इसे लेकर वे अभियान में जुट गए और अखबारों में फोटो के साथ समाचार आ गए। थाने में इसकी सूचना दी गई। एफ आई आर हो गया। वन विभाग को सूचना दी गई। अपने अपने क्षेत्र में सभी सक्रिय हो गए। जहाँ एक झाड़ कटने से सनसनी हो जाती थी सैकड़ों झाड़ों का कटना और वह भी जब कि इसमें पूरा गांव शामिल हो यह तो सनसनी फैलाने वाला था ही।

पहला समाचार यह था कि इस क्षेत्र के रेंज आफिसर तिवारी को दोषी मानते हुए निलंबित कर दिया गया है। तिवारी जी को भी यह सूचना अखबार में समाचार पढ़ कर हुई। समाचार में यह भी था कि पुलिस ने कार्यवाही शुरू कर दी है। चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट के आदेश के उल्लंघन का है इसलिए झूलनातेंदू के सारे लोग यानी पूरे गांव के खिलाफ मामला बनाया गया है। तिवारी  रेंज आफिसर को संयुक्त रूप से दोषी मानते हुए उसे भी अभियुक्त बनाया गया है। राजस्व विभाग ने इस प्रकरण में तुरंत कार्यवाही करते हुए झूलनातेंदू के पटवारी और राजस्व निरीक्षक को निलंबित कर दिया।

कोटवार ने जब गांव में जानकारी दी तो सबकी आंखों में बिजली की रोशनी की चमक अंधेरे में बदल गई। लोगों को समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या हो गया। कह रहे थे कि हमने किया ही क्या है। यही काम तो सरकार ने कुछ साल पहले किया था। बिना सरकार के खर्च के हमने इसे कर दिया तो क्या गुनाह किया। हमारा जंगल है हमने काटा है। क्या हमें उजला जीवन जीने का हक नहीं है? क्या बिजली केवल शहरी लोगों के लिए हैकेवल शहरी ही सिनेमा देख सकते हैं अपने ही शहर में और हमें सिनेमा देखना हो तो हम पहाड़ उतरें फिर दस किलोमीटर पैदल जाएं?

तिवारी से पूछा जाता  ''इसमें आपकी गल्ती कैसे हो गई कि आपको निलंबित कर दिया गया?’’

''मेरी गल्ती सिर्फ यह है कि वह क्षेत्र जहां झाड़ कटाई हुई है वह मेरे क्षेत्राधिकार में आता है।’’

''तब तो यह क्षेत्र आपके वन मंडलाधिकारी के क्षेत्र में भी आता है उसे भी निलंबित कर देना चाहिए।’’

''हम छोटे अधिकारियों पर तुरंत कार्यवाही कर दी जाती है बिना यह देखे कि हमारी इसमें कोई गल्ती है। इससे विभाग को जवाब देते बन जाता है कि हमने तो कार्यवाही कर दी है। बड़े अधिकारियों पर कोई कार्यवाही नहीं होती और आनन फानन में तो बिलकुल ही नहीं।’’

तिवारी को जानने वाले इस बात से स्तब्ध थे कि इनके जैसे होशियार और चंट अधिकारी पर भी कार्यवाही हो गई। कोई कहता सारे वरिष्ठ  अधिकारियों को खुश रखने में माहिर हैं तिवारी जी पर किसी ने सोचा तक नहीं कि इन पर बात न आए।

तिवारी के बारे में मंत्री अधिकारी अफसोस करते कि हम आपके लिए कुछ नहीं कर सके और आपको निलंबित होना पड़ा। तिवारी  उनकी इस बात पर कहते कि साब मेरा क्या  बेचारे आदिवासी जो पूरे के पूरे जेल चले गए उनकी क्या गलती थी कि वे गांव में बिजली चाहते थे। गांव के किसी एक कोने को शहर जैसा जगमग बनाना चाहते थे। शायद चाहते भी होंगे गांव में सिनेमा। किसी ने सोचा होगा घर में एक टी वी या फ्रिज का बर्फ। यही न कि वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अनभिज्ञ थे और अज्ञानता में गलती कर बैठे। मेरा नहीं उनका सोचिए साब। यह कहते और तिवारी मुस्करा देते। तिवारी इसके सदा खिलाफत में रहते थे कि जंगल की कटाई की जाए। वे उन राजनेताओं और व्यापारियों को कोसते रहते थे जो अवैध झाड़ कटाई कर के करोड़पति हो गए हैं। सब अपनी जगह प्रतिष्ठित हैं। पर क्या हुआ, फजीहत हुई तो तिवारी की।

तिवारी इसे अपना प्रारब्ध का दोष मानते हुए चुप हैं। जो भाग्य में है वही न होगा। 

दूसरे ही दिन एक डग्गा लेकर पुलिस गांव आ गई सभी ग्रामवासियों के नाम का गिरफ्तारी वारंट लेकर। बताया गया कि सभी को इसी समय साथ चलना है। कोर्ट में पेश किया जाना है।

मुखिया तो समझ ही नहीं पा रहा था कि क्या करें। सबको उसने कहा कि अभी और कोई रास्ता नहीं है सब तैयार हो जाओं जो भी कहना है कोर्ट में कहेंगे। वहीं हाथ पैर जोरेंगे।

एक डग्गा में सभी आ गए।

कोर्ट की परछी पर पूरा गांव और साथ में एक पुलिस का सिपाही। चुपचाप है पूरा गांव चुपचाप सिपाही और चुपचाप कोर्ट। सन्नाटे में बस गूंज रहा है वही जो तो पुकार लगाई गई है।

जज साहब ने पूछा क्यों काट दिया आप लोगों ने ये झाड़?

सब चुप 

सरकारी वकील ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है मी लार्ड कि जंगल में कोई झाड़ किसी भी स्थिति में नहीं काटी जाए। इस आदेश का पूरे गांव ने सरासर उल्लंघन किया है। ये सब दिखने में भोलेभाले हैं पर हैं नहीं। रात में ही गांव बैठक कर तय कर लिया गया था कि सुबह सब एक साथ जाएंगे झाड़ काटने, उसके पालन में सब वहां गए और झाड़ कटाई की। किसी ने इससे इंकार नहीं किया है जज साहेब कि झाड़ कटाई नहीं की है। कारण ये बताते हैं कि बिजली की लाईन के लिए इन्होंने यह कटाई की है पर इस कहानी से ये किसी भी हालत में बच नहीं सकते। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन तो सीधा सीधा हुआ है। इन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।

सफाई में कुछ कहना है, गांव वालों से पूछा गया।

मुखिया ने जैसे तैसे बताने की कोशिश की कि दस साल पहले हमारे गांव में बिजली की लाईन खींची जानी थी। सर्वे हो गया और लाईन की सफाई भी हो गई। उस समय तो सौ सौ साल पुराने झाड़ थे उसे जंगल वालों ने काट दिया। झाड़ कटने का हमें दुख था साहब पर बिजली की लालच भी तो थी, हम देखते रहे और हमारी आंखों के सामने सब कुछ हो गया। पता नहीं उसके बाद क्या हुआ कि यह मामला ही कहीं रूक गया। स्वीकृति नहीं मिल पाई और दस साल हम इंतजार करने लगे। हम लोग तो अब भरोसा भी छोड़ दिए थे साब कि कभी बिजली का चेहरा भी देख पाएंगे कि नहीं। एक दिन अचानक हमें खबर मिली की लाईन की स्वीकृति मिल गई है। पर झाड़ कटाई पर एक बार खर्च कर दिया गया है तो दोबारा फिर से उसके लिए पैसा नहीं मिलेगा। इसलिए मामला फिर से खटाई में ही पड़ा रहेगा। बिजली की चाह थी साहब इसे आप सही कह लें या गलत पर थी तो थी साहब। सब ने रात को ही तय किया और सुबह लाईन की सफाई हो गई।

जज ने कुछ नहीं कहा बस मुस्कराए और आदेश दे दिया कि पूरा गांव इसके लिए दोषी हैं। 

सब भेज दिए गए जेल। भोले भाले आदिवासियों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये क्यों हो रहा है। यह भी समझ नहीं आ रहा था कि हमने न चोरी की है, न डकैती की है, न हत्या किस अपराध के लिए हमें पुलिस जेल ले जा रही है। उन्हें न सरकारी वकील की दलीलें समझ में आईं न ही जज साब का फैसला। सब इसके लिए तैयार थे जैसा कहा जाएगा वैसा ही करना है।

जेल में प्रवेश के पहले सबकी हाजिरी ली गई और एक एक करके सबको जेल के भीतर भेजा गया।

जेल प्रवेश करते ही सबने देखा जेल का नजारा तो देखते ही रह गए।

जेल में बिजली ही बिजली। इतनी कि सबकी आंखें चुंधिया गई। 

अहा! बिजली, अहा! बिजली ।

 

 

 

भूलन कांदा और अनेक मशहूर उपन्यासों के कथाकार पहल में पहली बार।

संपर्क- मो. 9981874114

 


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