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सितम्बर - 2018

एसी

अनवर सुहैल

कहानी

 

 

 

 

 

दोनों मेकेनिक कार का बिगड़ा एसी रिपेयर करने में मशगूल हैं।

कम से कम संसाधन और ज़ब की हुनरमंदी की मिसाल है यह गैरेज! कोलकाता गैरेज। पहले कलकत्ता गैरेज कहलाता था और समय के साथ इसका नाम बदलकर कोलकाता हो गया, जैसे बम्बई जो है सो मुम्बई हो गया है। जिला सरगुजा का मुख्यालय अंबिकापुर है ये जहां बनारस स्वीट्स है, जयपुर होटल है, मद्रासी कैफे है, गोरखपुर वस्त्रालय है, बाम्बे हेयर कटिंग सैलून है। ऐसे ही भारत देश के कोने-कोने से आकर बसे लोगों ने अपने इलाके के नाम को जिन्दा रखने का प्रयत्न किया हुआ है।

कोलकाता गैरेज में कार का एसी बनाते दोनों मेकेनिक लड़के हैं जो पतले-दुबले लेकिन बला के फुरतीले। कितनी कम उम्र है और कैसा पक्का हुनर!

वैसे जाहिरी तौर पर दोनों लड़के आम किशोरों की तरह ही हैं। फटी-पुरानी जीन्स की पैंट और टी-शर्ट। पैरों पर चप्पलें।

सैयद मजीद साहब उन दोनों भाईयों को तल्लीनता से काम करते देख रहे हैं।

लम्बी नाक और छोटे माथे वाला गोरा लड़का अपने साथी से कहता है - 'सल्लू, जरा सिलेंडर लाना।

सल्लू सांवला है और चाल-ढाल से छत्तीसगढिय़ा लगता है।

सैयद मजीद साहब ने लम्बी नाक वाले लड़के से पूछा - 'तुम कोलकाता के रहने वाले हो न?’

- 'हां साब।

सैयद मजीद साहब ने बातचीत आगे बढ़ाई - 'कोलकाता माने।

- 'अरे साब, कोलकाता बोले तो मालदा का रहने वाला है हम लोग। छोटा था तब से उधर ही काम सीखा था।

सैयद मजीद साहब को हंसी आ गई - 'छोटा था माने तुम अब बड़े हो गए हो क्या?’

- 'नईं साब, हम लोग बचपन से ही किसी गैरेज में काम सीखने चले जाते हैं। कोई बच्चा अगर थोड़ा कमज़ोर रहा तो सिलाई-कढ़ाई करने लग जाता है। वैसे हमारे बहुत सारे दोस्त-भाई वेल्डिंग, मशीनिंग, मोटर-साइकिल मैकेनिक जैसे काम करते हैं। हमारे यहां कोई बच्चा खाली बैठता नईं हैं साब। कोई न कोई काम करना ही पड़ता है सबको।

- 'और ये सल्लू?’

- 'ये सल्लू तो इधर बिलासपुर का है। हमारा बड़े पापा का एक गैरेज बिलासपुर में है। सबसे पहले कोलकाता से हमरा बड़े पापा इधर आया था।

सैयद मजीद साहब उन्हें काम करते देख रहे थे। उन्हें शक था कि ये अनपढ़-गंवार लड़के कार की एसी का फाल्ट पकड़ भी पाएंगे या फिर उन्हें बिलासपुर में कार ले जाकर एजेंसी में ही दिखलाना होगा।

लम्बी नाक वाले लड़के का नाम हनीफ था।

सैयद मजीद साहब ने जेब से गुटखा पाऊच के साथ जरदा निकाला और फांकने लगे तो अचानक खयाल आया कि मैकेनिक हनीफ से भी पूछ लिया जाए।

इशारा करके पूछा - 'गुटखा चलेगा!

उसने कहा - 'अरे नईं साब, रमजान के समय दिन में कुछ नहीं लेता। काम के कारण रोजा तो रख नहीं पाता लेकिन दिन भर चाय-गुटका नहीं लेता। शाम को अफ्तार के बाद ही चलता है। क्या है कि रमजान में दिन में खाने से गुनाह पड़ता है न साब।

सैयद मजीद साहब को खुद पर शर्म आई।

उन्हें जब से डायबिटीज़ हुआ तो जैसे उन्हें रोज़ा रखने के फर्ज से मुक्ति ही मिल गई थी। उनकी बेगम अक्सर टोका करतीं कि मियां, रोजा से तो निजात मिल गई है लेकिन आपको रोज़ेदारों का एहतराम करना चाहिए। कोशिश करना चाहिए कि दिन के समय पब्लिकली कुछ न खाए-पिएं। ये जो दिन भर गुटका चुगलते रहते हैं इससे भी रमज़ान भर बचे रहें। यह मुसलमान को रमज़ान के पाक महीने का एहतराम करना चाहिए। इतना भी मार्डन न हो जाएं कि हश्र के मैदान में जवाब न सूझे।

पद-प्रतिष्ठा के मद में डूबे सैयद मजीद साहब पर इन समझाईसों का कोई असर नहीं हुआ था। आज जब उन्होंने एक साधारण से मैकेनिक के विचार जाने तो जैसे उन्हें अपने आप पर शर्म आई। उन्होंने झटके से सारा गुटका गैरेज के पीछे की नाली पर जाकर थूक दिया और फिर कार के पास आकर खड़े हो गए। कार से पानी की बोतल निकाली और कुल्ली करके मुंह साफ कर लिया।

हनीफ उनकी इस हरकत को देख रहा था।

सैयद मजीद साहब ने उसकी तरफ देखा तो वह मुस्कुरा दिया - 'ये ठीक किया साब। रमज़ान के मंथ में ध्यान देना चाहिए।

इस बीच उन दोनों ने कार की एसी का फाल्ट खोज लिया था।

हनीफ बोला - 'देखिए साब, आप सल्लू के साथ जाकर एक सामान ले आईये। फाल्ट मिल गाय है। एसी का मैगनेट खराब हो गया है।

सैयद मजीद साहब ने पूछा - 'कितने का आएगा?’

हनीफ- 'क्या बताएं साब जितना होगा पेमेंट कर दीजिएगा। इसका मैगनेट प्ले नहीं कर रहा है। इसे बदलना होगा। इस माडल की कार का सामान बिंद्रा आटो में ही मिलेगा। आप सल्लू के साथ चले जाइए।

सल्लू ने गैरेज से मोटर-साईकिल निकाली और सैयद साहब पीछे बैठकर सामान लाने चले गए।

 

अपनी कार के एसी को ठीक करने के लिए कई दिनों से सैयद मजीद साहब परेशान थे। जब से ग्लोबल वार्मिंग का खुमार दुनिया के सर चढ़ा है, हर सुविधाभोगी इंसानों  को अचानक से असहनीय गर्मी लगने लगी है। आम आदमी को तो रोज़मर्रा की उलझनें इस तरह घेरे रहती हैं कि उन्हें खून-पसीना का अंतर बुझाता नहीं है। कितना भी मशक्कत कर लो स्थिति वही बनी रहती है कि पांव ढको तो सिर उधड़ जाए। लेकिन अमीर आदमी को गरमी लगती है। पसीना चुहचुआ जाए तो बेचैनी हो जाती है। घबराहट बढ़ जाती है। फिर वे सोचने लगते हैं कि पसीने से बैक्टेरिया का आक्रमण होने लगता है। त्वचा-रोग होने की सम्भावना उन्हें जीने नहीं देती। ऐसे लोगों को बिना एसी की कार में चैन कहां? घर में एसी, दफ्तर में एसी और यात्रा में एसी। वैज्ञानिक और बाजार यदि कह रहा है तो यह सच है कि दुनिया पहले इतनी गर्म नहीं हुआ करती थी। आजकल ज्यादा गर्म होने लगी है।

लोग कहते हैं कि सरगुजा जिले का मुख्यालय अम्बिकापुर एक ज़माने में गर्मियों में भी ठण्डा रहा करता था। महामाया देवी की कृपा से जेठ की रातों में खटिया सड़क पर निकल आती थीं। थोड़ा हैसियत हो तो बांस की पतली खपच्चियों के सहारे मच्छरदानियां भी तन जाती थीं। कहते हैं कि आधी रात के बाद ठण्ड लगने लग जाती थी। तन पर एक चादर डालना पड़ता था। तब शहर में एसी क्या कूलर भी नहीं आया था। सेठ-साहूकारों के घरों में और सरकारी दफ्तरों, कोर्ट-कचहरियों में खस की टट्टी टंग जाती थी। जेठ-आषाढ़ इसी में कट जाया करता था। अब तो छोटे-मोटे दुकानदार भी एसी शोरूम खोलकर बैठे हैं। कहते हैं कि जनका-मनका न हो तो ग्राहक दुकान की सीढ़ी नहीं चढ़ता। छोटे-छोटे खूबसूरत कूलरों की और एक से बढ़कर एक एसी की नई रेंज आज बाजार में है कि देखते ही बनता है।

ऐसे ही एक दिन सैयद मजीद साहब की कार का एसी खराब हो गया। बस ब्लोअर भर चलता। यहाँ उनका सारा मूवमेंट तो सूरज के साथ चलता है। सूरज चढऩे लगा और उनकी कार दौडऩे लगी। सूरज डूबने लगा और कार घर की तरफ मुड़ी। ऐसे में इस प्रचंड गर्मी में बिना एसी के कार में चलना जैसे नरक-यात्रा हो।

उन्हें कम्पनी में चार-चक्का मुहैया नहीं की थी, लेकिन कम्पनी से उन्हें हर माह वाहन-भत्ता मिल जाता है। पहले उनके पास नान-एसी कार थी। तब वह बाल-बच्चों के साथ कभी बिलासपुर जाते तो खिड़कियों पर गमछे टांग दिया करते थे कि गर्म हवा और धूप से परेशानी कम से कम हो। वैसे तब संसार में इतनी फुटानी भी न थी। अच्छे खाते-पीते लोग भी बिना एसी की गाडिय़ों में लम्बा सर तय किया करते थे। फिर जैसे-जैसे उनका ओहदा बढ़ा एसी कार की ज़रूरत आन पड़ी। बेगम ने नई कार तजवीज की और बैंक से लोन लेकर सैयद मजीद साहब ने एसी कार ले ली।

अब ऐन गर्मियों के उरूज़ में एसी का खराब होना उन्हें बेचैन किए हुए था।

उनकी कार को अपने नगर के कई मैकेनिकों को उन्होंने दिखलाया था लेकिन वे उसे बना नहीं पाए। जिला मुख्यालय में उन्हें आना ही पड़ता है सो आफिस का काम जल्द निपट गया तो सोचे के लगे हाथ कार का एसी बनवा लिया जाए। वैसे बैकुण्ठपुर कोई छोटी जगह नहीं है। कई गैरेज हैं जहां कार-जीप आदि की फुल सर्विसिंग और रिपेयर होती है। ऐसे ही एक माने-जाने गैरेज में जब उन्होंने कार दिखलाई तो उस दिन उनका चार घण्टा गैरेज में ही बीता। गैरेज के मालिक शर्मा जी उन्हें जानता-मानता है सो सैयद मजीद साहब शर्मा जी के चैम्बर में आराम से बैठे इधर-उधर की बातें करने लगे। इस चैंबर के पीछे शर्मा जी का खूब बड़ा वर्कशॉप है। उनकी कार के एसी को कई मैकेनिकों ने अलग-अलग एंगल से ठीक करने का प्रयास किया और अंतत: थक-हार गए। उस वर्कशॉप में एसी की गैस निकालकर महफूज़ रखने का यंत्र था और अन्य चेकअप के लिए भी नाना प्रकार की तकनीक थी। शर्मा जी का बड़ा लड़का जो स्वयं एसी का अच्छा जानकार है, उसने भी कड़ी मशक्कत की, लेकिन सफलता हाथ न आई। एसी ऐसा रूठा था कि उनकी कोशिशों से मान ही नहीं रहा था।

सैयद मजीद साहब ने सोचा नहीं था कि इतना समय लग जाएगा और सफलता भी न मिलगी। समय लगता हो तो लगता यदि काम बन जाता तो कोई मलाल न रहता। मैकेनिक भी बिना चाय-पानी के समस्या का निदान खोजते-खोजते थक गए थे। शर्मा जी का लड़का दीपू स्टूल पर चिंतित बैठ गया। सैयद मजीद साहब और शर्मा जी दोनों दीपू के पास पहुंचे।

वे लोग कुछ पूछें उसके पहले दीपू बोल उठा - ''फाल्ट पकड़ में नहीं आ रहा है। आज कार ले जाइए और कल सुबह से इसे गैरेज में छोड़ जाइएगा।’’

सैयद मजीद साहब ने तब गैरेज मालिक शर्मा जी की तरफ देखा और कहा - ''कल तो मैं अंबिकापुर जा रहा हूँ शर्मा जी। वहां किसे दिखला दूँ?’’

शर्मा जी ने बताया - ''अम्बिकापुर में बनारस रोड पर कोलकाता गैरेज है। वे लोग स्पेशली कार एसी का काम ही करते हैं। वहीं दिखला दें कार वर्ना कुछ दिन रुकें। इस कार सर्विस इंजीनियर विजिट पर आने वाला है। जिस दिन वह आएगा मैं आपको फोन कर बुलवा लूँगा।’’

अंबिकापुर में शहर की सीमा पर है बनारस रोड और उस रोड पर कुछ दूर चलने पर मिल जाता है कोलकाता गैरेज। वैसे कहा जाए तो ऐसे गैरेज कोई जमा-जमाया प्रतिष्ठान नहीं होते। हर तरह के मौसम के लिए एक तरह की व्यवस्था। बारिश के समय ज़रूर इन गैरेज और काम करने वालों मैकेनिकों की दशा बदहाल रहती है। वैसे आजकल साल भर में बारिश होती भी कितने कम ही दिन है। सबसे ज्यादा टिकाऊ है गर्मीं, फिर सर्दी और अंत में बारिश, तो थोड़े दिनों की बारिश की कीचड़-कांदो झेल ली जाती है आसानी से।

बनारस रोड पर किंग-फर्नीचर नामक आलीशान शो-रूम की साईड वाली दीवाल और बड़े से नाले के बीच की खाली जगह पर जो जोड़-तोड़ कर एक गैरेजनुमा आकृति बनी हुई है वही 'कोलकाता गैरेजहै। आजकल फ्लेक्सी का जमाना है सो एक खुबसूरत सा साईन बोर्ड दो बांस के सहारे खड़ा कर दिया गया है। 'कोलकाता गैरेज

इस गैरेज के तीन हिस्से हैं। एक में इंजिन, एसी और अन्य रिपेयर का काम होता है। दूजे सेक्शन में डेंटर खान चाचा का अड्डा है। आखिर में सलमान पेंटर ने एक गुमटी पर पेंटिंग का सामान रख लिया है, यानी डेंटिंग-पेंटिंग और रिपेयरिंग की सम्पूर्ण व्यवस्था है वहां पर।

गैरेज है तो यहां-वहां टूटी-फूटी गाडिय़ां बिखरी हुई हैं।

सैयद मजीद साहब ने मैकेनिक हनीफ से पूछा - 'इन गाडिय़ों को छोड़ गए लोग क्या कभी आते हैं काम कराने?’

हनीफ हंस पड़ा- 'आते रहते हैं। जब पइसा-रुपिया का जुगाड़ हो जाता है तो आते हैं। बहुत से मामले तो बीमा वालों के पास अटके पड़े हैं। हमें क्या है जब जितना पैसा मिला उतना काम आगे सरका देते हैं।

मजीद साहब भी हंसने लगे - 'अच्छा ही है, ये कबाड़ न रहें तो गैरेज की शोभा भी न रहे। है कि नहीं।

तभी एक लम्बी सी काली शानदार कार गैरेज में आकर रुकी।

युवक बड़ी सज्जनता से मजीद साहब की तरफ बढ़ा।

- ''नमस्ते अंकल! नहीं पहचाना क्या?’’

- ''ओह, संजू बेटा...!’’ मजीद साहब ने पहचान लिया उसे।

ये तो सक्सेना साहब का बेटा है। एनआईटी रायपुर से मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है। सक्सेना साहब उनके कलीग थे। उनकी पोस्टिंग जबलपुर डिवीज़न में हो गई थी।

- ''क्या हुआ?’’

- ''एसी काम नहीं कर रहा अंकल, सोचा लगे हाथ दिखलाता चलूं। कल जबलपुर निकलना है मम्मी को लेकर। बिना एसी के दिक्कत हो जायेगी।’’

मजीद साहब ने संजू बेटे के चेहरे को गौर से देखा। कितना सयाना हो गया है चिरकुट अपना। उन्हें खुद-ब-खुद हंसी आ गई। यही तो कहा करते थे वह संजू को बचपन में - ''चिरकुट!’’

संजू ने जैसे उनकी मन की आवाज़ सुन ली हो, वह भी मुस्कुराने लगा।

मजीद साहब ने पूछा- ''प्लेटसमेंट ली?’’

संजू ने बताया - ''टाटा स्टील्स में काम पकड़ा है अंकल और पब्लिक सेक्टर के लिए ट्राई कर रहा हूँ। आप तो जानते हैं आजकल जॉब की कितनी किल्लत है।’’

हनीफ तब तक संजू की कार के पास आया।

संजू ने उसे बताया - ''एसी काम नहीं कर रहा यार!’’

हनीफ ने ड्राइवर से कहा कि कार को बोलेरो के बगल में लगा कर बैठें दो मिनट। इन साहब का काम हो जाए तो इसे भी देख लिए जाएगा।

संजू ने ड्राइवर से काम को किनारे लगाने को कहा और खुद बाहर की तरफ निकल गया।

मजीद साहब सोच रहे थे कि बताओ कहाँ इंजीनियरिंग ग्रेजुएट संजू और कहां अनपढ़ मेकेनिक हनीफ। बिना पढ़ाई-लिखाई के कितनी खूबसूरती से ये लड़के गाडिय़ों के असाध्य रोगों का इलाज कर लेते हैं और कम से कम खर्चे में। यही काम एजेंसी में कराया जाए तो दुनिया भर की अंग्रेजी के बाद कम्प्यूटर से निकले बिल को देख के ठण्ड में भी पसीना छूट जाए।

 

सैयद मजीद साहब पास ही ऑटो पार्ट्स की दूकान से सल्लू के साथ जाकर स्पेयर ले आए थे। हनीफ और सल्लू बड़ी तन्मयता से कार के एसी को रिपेयर करने में भिड़ गए।

सैयद मजीद साहब ने घड़ी देखी। शाम के चार बज रहे थे। उन्हें वापस भी लौटना है।

हनीफ ने उन्हें घड़ी देखते देखा तो बोल उठा - 'आधा घण्टा में रेडी हो जाता है काम साब। थोड़ा देर उधर स्टूल पर बैठ लीजिए न। सल्लू पंखा चालू कर दे जाकर।

सैयद मजीद साहब पंखे के नीचे रखे स्टूल पर बैठ गए और मोबाईल पर फेसबुक चलाने लगे।

किसी ने खबर शेयर की थी - 'गौमांस के शक में भीड़ ने एक मुसलमान युवक को इतना मारा कि उसकी मौत हो गई।

इधर ऐसी खबरें बढ़ी हैं और इस खबर को पढ़कर सैयद मजीद साहब को टेंशन हो गया। उन्हें ऐसा लगा कि ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ पृथ्वी पर नरतों की झुलसन भी बढ़ी हैं। सामने खान चाचा डेंटर बड़ी तन्मयता से एक कार के बोनट को ठोंक-ठका कर शेप दे रहे हैं। साठ पार के हैं खान चाचा डेंटर। टकला सिर और बिना दाढ़ी-मूंछ का चेहरा। बदन पर एक पुरानी टी-शर्ट और बरमूडा पैंट। खान चाचा ने दूसरी गाड़ी के दरवाज़ें की घिसाई करते लड़के को आवाज़ दी - 'का बे बजरंगी... कित्ता टाईम लगाएगा घिसने में। अबे, उस गाड़ी को पेंटिंग कराकर आजई देना है न। तू तो रात कर देगा।

सलमान पेंटर के सहायक का नाम है डेविड। रेलवे इंजिन ड्राइवर का बेटा डेविड। स्प्रे गन का महीन कलाकार। रंगों की अच्छी समझ है उसे। इसीलिए सलमान और डेविड मिलकर बड़े-बड़े काम पकड़ लिया करते हैं।

सैयद मजीद साहब को उस गैरेज में पूरा हिन्दुस्तान नज़र आ रहा था।

मेहनतकश हुनरमंद मज़दूर हैं ये लोग। इन्हें हिन्दू-मुसलमान के चश्मे से देखना कितना बड़ा अपराध है। सब मिल-जुलकर रोजी-रोटी कमाने के लिए पसीना बहाते रहते है।

सैयद साहब ने देखा कि डेंटर खान चाचा जिधर अपना टूल्स रखते हैं उस लोहे के बक्से के ऊपर दीवार पर काली मां की फोटो टंगी है। उधर हनीफ के पाना पेंचिस स्टेंड के बगल से दीवाल पर अजमेर शरीफ और मक्का-मदीना की फोटो लटकी हुई है। यही तो हिन्दुस्तान है। यही हिन्दुस्तान की खूबसूरती है। फेसबुक की पोस्ट से तनाव में आए मजीद साहब ने आनलाईन टीवी चालू किया।

ब्रेकिंग न्यूज पर वही खबर एक पट्टी के रूप में दौड़ रही थी - 'गौमांस के शक पर एक समुदाय विशेष के युवक की हत्या, दूजा गंभीर हालत में अस्पताल में।

धार्मिक अल्पसंख्यक कितना असुरक्षित हो गये हैं देश में। ऐसा नहीं है कि इस तरह के हालात पहले नहीं हुआ करते थे लेकिन इक्का-दुक्का ही ऐसी घटनाएं कभी-कभार हुआ करती थीं। अब तो आये दिन ऐसे हालात बन जा रहे हैं।

सैयद मजीद साहब का दिमाग खराब हो गया।

तभी हनीफ ने उन्हें आवाज़ दी - 'आइए साब। गाड़ी में बैठिए।

वह कार का दरवाज़ा खोल कर ड्राइवर सीट पर बैठ गए।

अभी कार का बोनट उठा ही हुआ था।

हनीफ ने सल्लू को साइड करके कहा - 'न्यूट्रल करके कार को स्टार्ट करें साब।

सैयदा मजीद साहब ने गियर को न्यूट्रल किया और पूछा - 'स्टार्ट करूं क्या?’

- 'हां।

चाभी घुमाई तो कार स्टार्ट हो गई।

हनीफ ने कहा - 'एसी आन करिए न साब।

उन्होंने एसी आन किया और किसी चमत्कार की तरह ठण्डी हवा कार में प्रवाहित होने लगी।

वह खुश हो गए - 'अरे वाह हनीफ... ये तो कमाल हो गया।

हनीफ बोनट को बंद करते हुए दूसरी तरफ से कार के अंदर बैठ गया।

उसने एसी रेगुलेटर को बढ़ाया।

कार के अंदर जैसे हिमालय से बर्फीली हवा की बौंछार आने लगी।

सैयद हनीफ साहब ने इत्मीनान की सांस ली।

हनीफ कार से बाहर निकला और आस-पास बिखरे कल-पुर्जों को उठा-उठाकर पाना-पेंचिस स्टेंड पर रखने लगा।

सल्लू भी उसकी मदद करने लगा।

हनीफ ने सल्लू से कहा - 'उस कार का बोनट खोल के रख, मैं आ रहा हूं।

सल्लू संजू की कार की तरफ बढ़ गया।

सैयद हनीफ साहब ने उन्हें मुंहमांगा मेहनताना पेमेंट किया और अपने घर की तरफ चल निकले। कितना वाजिब मेहनताना लिया था उन लड़कों ने, यही सोचकर उन्हें बेहद खुशी हो रही थी। कार के एसी की ठंडक ने उनके तनाव-ग्रस्त मिजाज़ को सामान्य कर दिया था।

सैयद मजीद साहब सोच रहे थे जैसे कार के एसी से ठंडक भरी हवा मिजाज़ खुश कर रही है वैसे ही क्या कभी समाज को नरतों की लू से निजात मिलेगी?

 

 

 

अनवर सुहैल पहल में पूर्व प्रकाशित हैं। एक पत्रिका संकेत भी निकालते हैं। कोल इंडयिा में इनकी सेवाएं हैं और मध्यप्रदेश के बिजुरी इलाके (अनूपपुर) में रहते हैं।

संपर्क - मो. 9907978108

 


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