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जुलाई 2018

सुनो जोगी सिरीज की प्रेम कविताएं

संध्या नवोदिता

कविता

 

 

 

मेरा मन म्यूजियम है

 

सुनो जोगी,

तुम्हारी इक हँसी मेरे पास रखी है

कि जैसे चाँद हो पूरा

जो छाए तो सभी कुछ नजर आए

जो छुप जाए तो जग हो अँधेरा

भरे से दो नयन भी

झाँकते चश्मे के भीतर से

तुम्हारे साथ चलना

समय रेखा बाँध लेना

निकल पडऩा परिक्रमा पर

सूर्य की, आकाशगंगा की,

अतल ब्रह्माण्ड की,

 

तुम्हारी चाल, जैसे पवन आया हो

कभी मन्थर, कभी तूफान बनके

धरा पे तन के छाया हो

 

सुनो जोगी

अधूरे वक्त के ये सफर आधे हैं

कि इनका दूसरा हिस्सा कहीं खोया हुआ है

याकि बस ये विकल ही थे

विकल ही होंगे हमेशा

 

आह तुम पढ़ते हो वो सब जो नहीं लिखा कहीं

जो किसी न किसी से,

इस राह से बोला नहीं

 

तुम्हारी रौशनी भी पास है मेरे

तुम्हारी खुशबुएं भी बस गयीं

मेरे मुहल्ले में

और तुम्हारे साथ की बातें गगन भर

 

सब सहेजा है

 

मेरा मन म्यूज़ियम है

सब सुरक्षित है

तुम्हारी नर भी, जो फिर गई है

तुम्हारे शब्द भी, दूरी भी, नीयत भी, भरोसा भी

सब सुरक्षित है

तुम्हारी जगमगाती हँसी

सब रोशन किये है

जग रोशन किये है।

 

एनीस्थीसिया

 

सुनो जोगी

 

जब तुम प्रेम तोडऩा

धीरे धीरे तोडऩा

 

भरोसा तोडऩा तो

पहले एक छोटा एनीस्थीसिया देना

जोखिम भरे ऑपरेशन में भी मरी को कहा जाता है

चिंता की कोई बात नहीं

हर भी मीठी खीर में देने का आत्मीय रिवा है

 

मर रहे व्यक्ति के मुँह में जल दिया जाता हैं

यह जानते हुए भी जल अब जीवन नहीं दे पाएगा

 

हम मृत्युभोज करने और खाने वाली जमात हैं

कठिन और अधूरी चढ़ाइयों में कहते हैं बस रा और

अपने युद्ध हारे हुए वीरों की शौर्य गाथाएं गाते हैं

 

वैसे मुझे आज ही पता चला कि

दिल टूटने के लिए होता है

भरोसा एक किताबी बात है

धोखे पर टीवी सीरियलों और फिल्मों का एकमात्र कॉपी राइट नहीं है

 

और इस पूरे वाकये में तुम्हारा नाम महज एक इत्तेफाक है।

 

एक दिन अलग होंगे हम

 

सुनो जोगी

एक दिन अलग होंगे हम

 

जैसे छाल अलग होती है वृक्ष से

वृक्ष अलग होता है धरती से

धरती विलगती है अपनी गति से

 

हम अलग होंगे

जैसे चेतना अलग होती है मस्तिष्क से

नरम दूब अलग होती है मिट्टी से

 

जैसे फूल अलग होते हैं अपनी डाल से

झील अलग होती है पानी से

समंदर अलग होता है लहरों से

आँखें अलग होती हैं प्रिय से

चमक अलग होती है तारों से

सूर्य अलग होता है अपने ताप से

$खुशी अलग होती है उत्सव से

 

जैसे पानी अलग होता है अपनी मीठेपन से

जैसे आस अलग होती है हृदय से

हृदय अलग होता है सम्वेदना से

 

उसी तरह जोगी

हम होंगे अलग

 

जैसे जुबान रह जाए और बोल चले जाएँ

उँगलियाँ रहें और तुम्हारा हाथ न थाम पायें

रें उठें और तुम्हें कहीं देख न पायें

 

अब यह पीड़ा की नदी है जोगी

जिसे कभी किसी समन्दर में नहीं मिलना

 

अब मैं जीवन पैक करती हूँ

 

सुनो जोगी,

अब मैं जीवन पैक करती हूँ

 

एक छोटे झोले में बंद करती हूँ इच्छाएं

एक में भविष्य

एक में अतीत और वर्तमान

 

गले में धड़कता हृदय

आँखों में उतरता अँधेरा

हाथों से छूटती गरमाहट

 

बहुत बहुत सारी बातें

जिनसे भर जाएं ब्रह्मांड

पर खाली कोना एक न भर पाए

सागर भर नमकीन पानी

काले टापुओं को डुबाए

कभी न भर पाने वाले घाव

सब समेटती हूँ

 

वक्त अँधेरे का गुलाम हुआ है

अँधेरे हमेशा ऊपर से ही उतरते आए हैं

नीचे जला है जंगल सारा

यह बेतरतीब यादों का ईंधन है

जिनसे रा सी रौशनी बची है

 

जीवन

एक बेहद सुंदर शब्द है जोगी

जीवन एक मधुर स्वप्न है

 

अब मैं सोती हूँ

 

मेरे पास एक उदास कथा है

 

सुनो जोगी

मेरे पास एक उदास कथा है

कमलासुरैय्या के बारिशों में भीगते पुराने घर जैसी

 

मैं धरती की तरह घूम रही हूँ इतना तेज

कि चक्कर आ रहा है

मितली फँसी है हर वक्त गले में

 

जबकि करने को हजार बातें हैं

देखने को हजार रंग

लेकिन काली गुफा खत्म ही नहीं होती

 

जीवन मृत्यु के बीच का छोटा समय

मेरा इंतजार करता है

मैं तुम्हारा

 

तुम खड़े हो वहाँ जहाँ सितारों की चमकीली नदियां बहती हैं

दुखों और सुखों से परे

आहों कराहों की परिधि से बाहर

 

आँख बंद करना सुख है जोगी

आँख खोलना सब से बड़ा दु:ख

वीरता अब सुरक्षित बच निकलने में है

 

प्रेम दरअसल अस्वाभाविक मृत्यु का दूसरा नाम है

मैं चिल्लाती हूँ बार-बार

मेरी आवाज निर्वात में बेचैनी से छटपटाती है

 

और मैंने तय किया है

जीने के लिए दुनिया की सारी उदास कथाएं पढ़ लेनी चाहिए

 

 

 

वीरेन डंगवाल और सुधीर विद्यार्थी के शहर बरेली की बाशिंदा संध्या नवोदिता ने विज्ञान और कानून की पढ़ाई पूरी करके शहर इलाहाबाद का रुख किया है। गंगा तीर पर घर है। पहल में पहली बार। मो. 9839721868

 

 

 


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