कविता
यहां से इस तरह देखिए
आइए और यहां से हमलोगों को इस तरह देखिए यहां आराम से बैठकर या शीशे के हेलीकॉप्टर में उड़कर देखिए हम कितने साफ-सुथरे दीखते हैं कितने हरे-भरे।
परिवार के हरेक सदस्य के लिए अलग-अलग ब्रांड हैं चीजों के अलग-अलग कमरे और हरेक कमरे में हर काम होते हैं हमारा जीवन चलता है तेज रफ्तार, रंगीन और चमकता हुआ।
हर पुरानी चीज की जगह नई चीजें ले आने की होड़ में हमें दिखती है व्यावहारिकता आधुनिकता खराब समय आ गया है कहकर पल्ला झाड़ते हैं और चल पड़ते हैं चमकते बाजार की ओर।
यहां सौदा होता है खुले आम सुबह से शाम तक धरती से आसमान तक। सपनों का स्टॉक एक्सचेंज आवश्यकता का हर साजो-सामान साजो-सामान की आवश्यकता के आकर्षण पर टिका नींद की बिक्री का क्लासिफायड में छपा विज्ञापन सब चल रहे हैं - दौड़ रहे हैं। शिक्षा नौकरानी बनकर झाडू-पोछा कर रही है ज्ञान रुपया बटोर रहा है और हुनर का विदोहन चल रहा है भरपूर।
आइए बैठिए देखिए प्रसन्न होइए रिमोट कंट्रोल से ऑन होकर।
हम अब नीचे उतर लें अगर आपने देख लिया हो सबकुछ।
थोड़ा अलग होकर बैठिए कृपया अब क्योंकि हम बंद करने जा रहे हैं एक-दूसरे को छूना।
राम सजीवन का पुनर्जन्म
राम सजीवन का पुनर्जन्म हुआ पुनर्जन्म-विश्वासियों के बहुमत वाले कार्यकाल में एकदम नया था तरोताजा सुपर होशियार समझदार और देशप्रेमी पुन: जन्मा राम सजीवन। चमत्कार यह हुआ कि पच्चीस बसंत पार करते-करते वह सलाहकार बन गया देश के प्रधानमंत्री का।
यह चमत्कार अकारण नहीं था। वह समाजप्रेमी, विचारक, देशप्रेमी, भला मानुष तो था ही लैपटॉप-धारी, आई-पैड धारी और जेट में उडऩे वाला बन चुका था।
यह छोटी बात थी कि उसने बी.टेक., एम.बी.ए. और अर्थशास्त्र में एम.ए. भी कर लिया था। बड़ी बात यह थी कि राम सजीवन का पुनर्जन्म उत्तर प्रदेश के मध्यवर्ग परिवार में हुआ शिक्षा दिल्ली गुजरात और मुम्बई में मिली गोधरा बनारस इटावा बदायूं कलकत्ता के पार्क स्ट्रीट और जंतर-मंतर की घटनाओं से अनजान किन्हीं और उधेड़बुन में लगा-लगा इतनी कम उम्र में वह सलाहकार बन गया प्रधानमंत्री का और देश के परिपक्व विदेश मंत्री, वाणिज्य मंत्री, रेल मंत्री ध्यान से सुन रहे थे उसकी बातें।
राम सजीवन पैंतीस की उम्र तक फिर पैंतालीस की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते खुद किस ओहदे तक पहुंचेगा देश विकास के किस पायदान पर होगा यह तो भविष्य जब इतिहास बनेगा तभी आप जान पाएंगे।
लेकिन संतोष होता है कि यह वही राम सजीवन है जो रात-रात भर जागकर सोचता था जब वह अधिक पढ़ा-लिखा नहीं था दफ्तर के बड़े बाबू ही उसके लिए प्रधानमंत्री थे वही राम सजीवन जो रविवार को मछुआरा बन जाता था आज सलाहकार है देश के प्रधानमंत्री का तो कुछ गलत नहीं करेगा।
देश में जीवित बचे प्रबुद्ध नागरिकों को जो भी दो-चार आए गिनती में बड़ी उम्मीदें हैं पुनर्जन्म के बाद के राम सजीवन से पर बेचारे डरते हैं बहुमत के साथ जाने से।
अपना-अपना जीवन
मेड़ों पर उगी घास काटने जाती हैं तो अपने बच्चों के लिए दूध लेकर आती हैं, खेतों में जाती हैं रोटी कमाकर लौटने के लिए। हाट जाती हैं, नाव से, तो नमक और कपड़े लेकर लौटती हैं बिना सोचे कि फिर कब जा पाएंगी।
नदी के उस पार एक गांव है वहीं की हैं वे।
सुर में सुर मिलाकर गाती हैं। गर्भ से बाहर आने पर भी अलग नहीं होने देतीं अपने बच्चों को। आस-पास ही रहेंगी उनकी बेटियां दो-चार घरों में बर्तन मांज आएंगी। बेटे सुबह कहीं दूध दुह कर, कहीं किसी के गौओं को चारा खिला कर, सेवा टहल करके खाने के वक्त साथ में होंगे।
आधा खूराक खाकर पूरे खूराख भर के बराबर प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट्स का संचय कर लेती हैं अपनी देह में जिसका कुछ हिस्सा मरद की थकान उतारने के लिए बचा कर रखती हैं वे।
जहां भी जाती हैं साथ जाती हैं अपनी मेहनतकश काया की ओर उठती विशेष प्रशंसा भरी नजरों से निडर। नदी पर नहाने के लिए अकेली किसी को नहीं जाने देतीं 'बेचारी घसियारिन' कहलाने के लिए।
अपना-अपना जीवन एक साथ जीती हैं।
एक सबसे अच्छा गाती है, दूसरी मर्दों जितना भार उठा लेती है, तीसरी घड़े पर थाप देती है लय में। एक पेड़ पर चढ़ जाती है किसी भी, दूसरी बालों की चोटी गूंथ देती है पल भर में, वो तीसरी - जब भी हंसती, लोट-पोट, गिरा लेती दो-चार को ऊपर ही अपने।
इतनी-सी ही गुणी हैं वे लेकिन खिलखिलाकर हंसती हुई आपस में जब वे अपने साझा किए दुखों को झुठला रही होती हैं तो लोक संगीत सुनाई देता है जो नदी की धार पर सदियों तक गूंजता है।
भोपाल में रहते हैं। पहला कविता संग्रह शीघ्र प्रकाश्य। संपर्क - मो. 08989792778 |