कविता
देवेश एक स्वतंत्र पत्रकार और अनुवादक हैं। किसान आत्महत्याओं पर काम कर रहे हैं। विदर्भ से लेकर देशभर के किसान आंदोलनों में सक्रिय वे रंगकर्मी और गायक भी हैं।
मैं घूम-घूम कर लाशें देखता हूँ
1. कौन-सा होता है वह क्षण जब तुम महसूसते हो अपना इत्यादि होना? वक्त के किस पहर तुम्हारे पाँव कांपते हैं किसी आशंका से? किस घड़ी में तुम तय करते हो अपने जीवन का अंत? कब तुम्हारी रीढ़ में उठता है तेज़ दर्द?
ठीक उसी क्षण, वक्त के उसी पहर-उसी घड़ी जन्मता है कुछ मृत्यु जितना भव्य, मृत्यु जितना शांत
2. बच्ची पहेलियों के साथ बरामदे में खेलती है घर के पिछवाड़े से भर लाती है पीने का पानी झूला झूलती सुनाती है चुटकुला और खुद ही हंस पड़ती है माँ और भाई के साथ जाती है मजदूरी पर द्वार पर लगे तुलसी को पानी देती है माँ से बाप के फांसी लगाने की वजह पूछती है और फिर सोने के लिए सहेली के घर चली जाती है
बाप उसे रोज़ 2 रुपये देता था टॉफी $खाने को बाप अब उसे डराता है।
3. हाथ रखता हूँ अपने कान पर ठीक तभी कोई पटक देता है सामने रौशनी को, जिसकी परछाई के पीछे छिपने की कोशिश के बीच अचानक फूटता है पानी का सोता, लाल, रक्त-रंजित पाँव बचाते आगे बढ़ता हूँ किसी कुँए से रस्सी खींचती मिल जाती हैं कुछ औरतें जिनके पति मुँह-अँधेरे कूद गए थे कुँए में मैं फुसफुसाता हूँ 'जहाँ से कोई आवाज़ नहीं आती घर होता है वही शोर का'
4. मैं घूम-घूम कर लाशें देखता हूँ लाश के घरवालों से पूछता हूँ तरह-तरह के सवाल ढूंढता हूँ वजहें, परखता हूँ स्थितियां, कुँए पर बैठ बीड़ी पीता हूँ ब्रह्मभोज की पूरियाँ जीमता हूँ शाम को लौटता हूँ डेरे पर आँखों के बिना।
हत्यारा कौन-से रंग का है?
1. जिन हाथों में होना था हल उन हाथों में है रस्सी जिन हाथों में होना था चाकू उन हाथों में है कलम
किसी का मरा मुंह देख कर समझ पाया का$गज़ पर कविता ही नहीं लिखी जाती! फल ही नहीं लटकते पेड़ पर बस! 'किसान होने की इच्छा पालने वाले शख्स की नियति में है कवि की मौत मरना'
2. भूख की उम्र हो चली है हत्यायें तो सदाबहार हैं
भूख बूढ़ी है हत्याओं को तो प्राप्त है अमरत्व
जिसकी मौत हुई पानी की टंकी में डूबकर उसके फेंफड़ों में पानी का एक कतरा नहीं
जिसकी मौत हुई फांसी लगाकर उसके गरदन पर रस्सी का कोई निशान नहीं
मरा कौन और मारा किसने? यह जानने के लिए कानून जानना गैरज़रूरी है
3. धरती के कैनवास पर आसमान करता है पेंटिंग बिना जल बिना कूची बिना रंग
पेंटिंग में हैं दरारें पेड़, रस्सी, इंसान भी कुंआ और साहूकार भी दुनिया की सबसे महँगी पड़ती इन पेंटिंग्स को कोई देखने भी नहीं आता...
एक सवाल पूछता हूँ... पेंटर की औकात छोटी या पेंटिंग की?
4. यह जो आदमी है जिसकी जीभ बाहर लटक रही है लोहे का स्वाद चखा था इसने जिसकी आँखें बाहर आने को परेशान हैं देखा था अँधेरे को यह आदमी काला था हत्यारा कौन से रंग का है?
5. मेरे पास घर है घर में कुंआ नहीं है
घर से निकला बाहर कुंए ही कुंए मिले
मुझे कोई दिलचस्पी नहीं अपने देश का पता ढूँढने में कि देश कोई ज़मीन का टुकड़ा नहीं कि मुझे इंसानों पर भरोसा है
कि अभी 'भरोसा' कत्ल से बड़ा शब्द है! कि अभी मुझे शब्दों पर भरोसा है!
खैर...
एक ऊब जो शाया हर तरफ, एक मिजाज जो किसी मौज में न बहा, एक तबीयत जो उदास ही नहीं फकत... खैर
एक पेट जो कभी भरा नहीं, एक नींद जो अभी आई नहीं, एक सपना जिसकी किरचें धंस गईं आँखों में... खैर
एक कलम जो रकम करे बस सच, एक कागज़ जो गुदवाये मर्सिया, एक ज़बान जिसमें कोई नुक्ता नहीं... खैर
एक बचपन जिसमें धब्बे के निशान भर, एक होना जो माँ न हो सकने का होना, एक प्रेम जिसकी सलीब तय मालूम... खैर
यूटोपिया
सबसे प्यारा है वह चाँद तो सारी रात बैठ करता है अँधेरे की रखवाली सबसे प्यारी है वह बरसाती नदी जो दौड़ती है धरती के सूखे होंठों पर और बुझाती है वर्षों की प्यास सबसे प्यारा वह घर है जिसमें दीवारें हैं न दरवाजे, खिड़कियाँ हैं बस सबसे प्यारी वह लड़की है जिसके पाँव लहू से लिथड़े हैं पर गाती है आज़ादी के गीत सबसे प्यारी है वह दुनिया जिसके भीतर रहते हैं अलग-अलग लोग खुशी-खुशी
कश्मीर पर कविता एक शायर दिल्ली में बैठा लिख रहा है कश्मीर पर कविता...
सोचता हूँ, कश्मीर में बैठा मुज़दिक हुसैन क्या कर रहा होगा इस वक्त? क्या वह दिल्ली पर कविता लिख रहा होगा? या फिर चला रहा होगा पत्थर? पेलेट गन से छलनी हो रहा होगा?
'मैं उसे लिखता देखना चाहता हूँ' क्या ऐसा हो पायेगा? 'उसे कोई गोली पार नहीं करेगी' दिला सकता है क्या कोई ये भरोसा मुझे? 'उसके हाथ में कलम बरकरार रहेगी' दिला सकता है क्या कोई ये भरोसा मुझे?
मुझे बाज सा जीवन नहीं चाहिए
बहुत दूर तक चलने के बाद ठहरता हूँ खीझता हूँ कि मेरे पाँव निशान नहीं छोड़ते खीझता हूँ कि मैं जूते नहीं पहनता
मुझे आगे निकल गए लोगों से जलन नहीं होती मैं झरता हूँ थककर बैठ गए लोगों से मैं बीड़ी के धुंए के साथ उड़ा देना चाहता हूँ अपनी इच्छाएँ सोख लेना चाहता हूँ दुनिया भर की ज़लालत मुझे थूकने के लिए आईने की तलाश है
मैं बींध दिया गया हूँ आरोपों से मेरे पास सवाल हैं जवाबों के मैं प्रेम में हूँ मेरे पास तस्वीर नहीं है मैं प्रेम में हूँ मेरे पास पासपोर्ट नहीं है गांधी को मेरी जेब के भीतर भी घुसकर मार दिया जाता है फिर-फिर मैं गोडसे को फांसी नहीं देना चाहता मगर मेरे पास मेरी कलम है मुझे लिखने को स्याही चाहिए मुझे मरने को गोरैया सी मौत चाहिए मुझे बाज सा जीवन नहीं चाहिए
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