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जनवरी 2018

इरशाद कामिल की कविताएं

इरशाद कामिल




जूते

जूते से मेरी औकात
महत्व या ज़ात
मत आंको।

ये बहुत चले हैं
पड़े पड़े नहीं गले हैं
इन्हें पता है देश में
बहुत बड़ा खड्डा है हर मोड़ पर
बदमाशी का अड्डा है।

मैं जूतों पर पॉलिश नहीं करता
फटे जूते पर पॉलिश का काम
सरकारी है।

मैं तसमें कस के बांधने की
किवायत सीख रहा हूँ
तलवे पर
नया नक्शा उलीक रहा हूँ।

सुविधा नहीं संयोजन है
इस जूते का एक प्रयोजन है
जब इसे मोक्ष मिल जायेगा
फेंक दूंगा, विश्वास है
एक दिन असल खड्डे का
पिछवाड़ा सेंक दूंगा।

तुम मुझे तनाव दो

मैं सह लेता हूँ तुम्हारी नाराज़गी
एक तनाव की उम्मीद में

यह तनाव ही तो है
जिसके सिरों से झूल रहे हैं हम
जो •िांदा रखे है बहुत कुछ

दो पत्थरों की टकराहट
पाषाण युग से आग ही पैदा करती है
आग ही चाहिये हमें
आलस की बस्तियों से
स्वच्छ झरना नहीं फूटता
भारत को हर बार अंग्रेज़ नहीं लूटता

पस्त और तनावग्रस्त
दिमागों का ईलाज
न वार न इतवार
सिर्फ साड़ी या सलवार

आबादी शौक से नहीं बढ़ी है
हर कलम और दवात
तनाव लिखी तनाव पढ़ी है

तन है तो तनाव भी होगा
पथराव होगा
घाव भी होगा

तुम मुझे तनाव दो
मैं तुम्हें खादी दूँगा
तुम मुझे खून दो
मैं तुम्हें आबादी दूँगा।



देखना न भूलिये

भेडिय़ा
हमे खा रहा है
हम चर्चा कर रहे हैं उसके
'टेबिल मैनर्ज़' पर
टीवी पर नौ बजे
(देखना न भूलिये)
जो अफीम बांटी जाती है
जो जागने नहीं देगी
मोबाइल का नम्बर हो चुकी पीढ़ी को

अपने बारे में
जितने भ्रम हैं
उन सबसे कहीं खूबसूरत है भेडिय़ा

मित्रों, आप विश्वास करो
उसकी शक्ल हू-ब-हू
इंसान से मिलती है

लगभग उसी इन्सान से जो
'टेबल मैनर्ज़' पर चर्चा करेगा
अफीम बांटेगा
रात नौ बजे
(देखना ना भूलिये)



जॉकी की चड्डी में

सफेद रंग
पहिये पर चल है
जैसे तैसे

केसरी और हरा रंग
सट रहे हैं उससे
दे रहे हैं घर्षण
रोक रहे हैं उसकी रफ्तार

तीन रंगों में सिमट गया
पूरा देश अचानक

सारे जहाँ से अच्छा
जय हिन्द
पंचवर्षीय योजना
बीस सूत्री कार्यक्रम
मंदिर वहीं बनाएंगे
कश्मीर हमारा है
मेरे भारत महान
भारत खुला बाज़ार
इंडिया शाइनिंग
तेल भी हमारा खटिया भी
तुम बस जॉकी की चड्डी में
आओ
कर लो पूँजी मुट्ठी में
सबका साथ सबका विकास
गाय का शुद्ध गोबर यहाँ मिलता है
जनता घास है, घास कटेगा
गाय घास खायेगी तब फिर होगा
गाय का शुद्ध गोबर।

गोलियां

कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलती
जैसे बसों में बिकने वाली
संतरे की फांक सी संतरी गोलियां

मेरे बाप-दादा के ज़माने से चली आ रही हैं
रहेंगी मेरे बच्चों के -बच्चों के बच्चों तक
पाँच पैसे की पाँच से चवन्नी
अठन्नी एक रुपया और
पाँच रुपए की पाँच तक
कितना सफर तय किया है गोलियों ने

कीमत बदल जाती है
बदल जाती है बेचने वालों की बोली ठोली
समय और शासन बदल जाता है
गोलियाँ नहीं बदलती

किसी नियम से उबकाई आते ही
गोली मुँह में
बच्चा बहल जाता है
बुढिय़ा गोली देने वाले को दुआ देती है
पिता सोचता है
सस्ते में छूट गया

भक्त तारीफ करता है
जवान मर जाता है
खाली रैपर पर
कमीशन बैठ जाता है
बैठक में आती हैं उबासियां
पता नहीं आदमी पहले हुआ या नियम
उबासी पहले हुई या बस का सफर
सदियों से सबकुछ वैसा ही है
हम सदियों से बस में हैं
बाबन की बस में एक सौ बाबन
गोलियां चूसते हुये

एक गोली खत्म तो
नई गोली
वाह! कितनी गोलियां मिलीं हमें
कहते हैं अभी और मिलेंगी
देश तरक्की कर रहा है।

काम की भावना

मैंने धनुष नहीं तोड़ा
मुझे वनवास नहीं हुआ
मैंने अपनी पत्नी की
अग्निपरीक्षा भी नहीं ली
मैं लड़ा नहीं अपनी संतान के विरुद्ध
मर्यादा नहीं निभाई कोई
मैंने अमर्यादित काम किया

मेरे आस पास न कुंज विहार थे
न गोपियां, न ग्वाल बाल
गाय बहुत थी शहर भर में
चलते वाहनों से टकराती हुईं
मेरी साईकल के गज तोड़ती हुईं
मरती हुईं, कटती हुईं
डिब्बों में बन्द होती हुईं
कसाई की दुकान पर लटकती हुईं
कसाई को भीड़ से पिटवाती हुईं
आदमी के बाद
राजनीति का मूक मोहरा बनने का
श्रेय प्राप्त करती हुईं
परन्तु मैंने उन पर ध्यान नहीं दिया
बस अपना काम किया

मैंने पांसा नहीं फेंका
मैंने द्रौपदी नहीं जीती
मैं हस्तीनापुर नहीं हारा
मैं अज्ञातवास में नहीं रहा
दो कमरों के घर में रहते हुये
मैंने मन से अपना काम किया
मैंने सुन्नत नहीं रखी
टकनों के ऊपर पैजामा नहीं पहना
रोनी सूरत बना कर दुआ नहीं मांगी
खिड़की के बाहर देखा देर तक
दूर तक सोचा
चुपचाप अपना काम किया

मैंने वृक्ष के नीचे मोक्ष नहीं पाया
किसी को अमृत नहीं छकाया
मैं सूली पर नहीं चढ़ा

बहुत मौके थे मेरे पास
भगवान या उसका भरम होने के
मैं इन्सान बनके ही जिया
पत्नी को दुख नहीं दिया
बच्चे पर अपने सपने नहीं थोपे
आँगन की क्यारी में
नये पौधे रोंपे
मैंने अपना काम किया।



संपर्क : मो. 09820220599, मुम्बई


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