मैंने हर जगह तुम्हें तलाशा मैंने हर किसी से पूछा अंतत: जिस जवाब की तलाश थी मिल गया है मुझे
दफ्न तुम्हारे साथ तुम्हारी कब्र में जहां तुम पड़े हो मार दिये गए वे तमाम स्त्री और पुरुष जिनसे मैं पूछती रही थी तुम्हारी बाबत पहले कभी सभी पड़े हैं कतार में आज एक के बाद एक
देखते देखते यह जगह किसी विशाल कब्रगाह सी हो गई है जहां जीवितों से कहीं ज्यादा कब्रें हैं जहां हाथों से ज्यादा बंदूकें हैं
जहां बचे खुचे हाथ रह गए हैं जहां गुलाब की पंखुडिय़ों से कहीं ज्यादा कांटें हैं जहां नदियां लाल हो चुकी है जहां सिर्फ खून बहता है जहां सूर्य तक उगना नहीं चाहता जहां पक्षी कलरव नहीं करते जहां लोग भूल चुके हैं कौन सा रंग दिखता है कैसा जहां उन्हें सिर्फ खाकी पोशाकें दिखती हैं
यहां कुछ नहीं बस यही दिखता है चारों तरफ खाकी पोशाकें और हाथ में बंदूकें लिए घूमते आदमी राज्य प्रायोजित कत्लेआम संदिग्धों की तलाश
आफ्सपा लागू करने से विश्वशांति नहीं आती आज सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वाला देश कल की महाशक्ति बनने की चाहत रखता है यह धोखा खड़ा करते हुए कि यह काम वह रक्तपात के जरिये नहीं बल्कि 'शांति' का निर्यात कर करेगा
नजर जितनी भी दूर तलक जाए बस बंदूकें ही यहां हैं जो दिखती हैं हवा में बारूदी धुएं की गंध इस कदर भरी हुई है कि सांस लेते दम घुटता है
अब जब मैं यहां तुम्हारी कब्र के बगल में बैठी हूं और रो रही हूं और तुम आखिरकार सुकून भरी नींद में सो रहे हो शांति से अपनी कब्र में मेरी इच्छा है कि तुम एक बार मेरा नाम पुकार लो बस एक बार और बस एक बार मुझसे बात कर लो मुझे बताओ कुछ अपनी उस जिंदगी के बारे में जो तुमसे छीन ली गई और उस जिंदगी के बारे में जो इस जिंदगी के बाद है
मेरे पास आ जाओ वापस और बताओ मुझे बंदूकें कैसे दागी जाती हैं।
दादी के गांव का नाम जरूरी नहीं
उसने मुझसे पूछा तुम किस घर से आती हो भ्रमित हो मैं उसे अपने दादा और दादी के गांव के नाम बताने लगी तभी उसने टोकते हुए कहा दादी के गांव का नाम जरूरी नहीं
तुम्हारा संबंध तुम्हारी पहचान तुम्हारा पिंड तुम्हारे पिता के पिंड उनके पिता के पिंड और उनके पिता के पिंड वगैरह से खोजा जाता है
मैं कुछ नहीं बोली सिर्फ सिर हिलाकर रह गई किस तरह पलक झपकने भर के समय में मेरी दादी का इतिहास अप्रासंगिक हो चुका था उसे मिटाया जा चुका था
वे कहते हैं इतिहास विजेताओं का होता है मेरी दादी हार चुकी थी
उसका अतीत इतिहास के किसी किताब के अनचाहे पन्नों की तरह फाड़कर अलगाया जा चुका था
उनका अतीत और उनकी स्मृति के तमाम हिस्से को कूड़ेदान में फेंका जा चुका था जैसे कंघी के दांतों में फंसे टूटे बालों का गुच्छा हो
आखिर क्या था उनका पिंड? कोई घुमक्कड़ सूफी?
एक भगोड़ा सैनिक या फरार अपराधी?
क्या वे कैदखाने से भागी हुई कोई युद्धबंदी थीं या कोई शरणार्थी?
जब उनके पास कोई घर था ही नहीं दावा करने को तब उन्होंने किस सीमा रेखा को पार किया था?
किस हद तक उन्होंने सीमा रेखा पार की थी अगर कर भी ली थी तो? कौन सा था उनका कथित घर? या कोई था ही नहीं ?
गोल रोटी
जबतक कि मैं बड़ी नहीं हो गई मुझसे कहा जाता रहा कि रोटी गोल बनाना कितने महत्व की चीज है। निपुणता से गढ़ी गई मुलायम और गोल रोटियां।
उनकी इस अपेक्षित निपुणता की चाहत से मैं नफरत करती थी एक ऐसे संसार में जहां निपुणता से कोई वास्ता नहीं रखने वाले भरे पड़े लोग स्त्रियों के महत्व को आंकने का काम स्त्री की इस योग्यता पर करते हों कि वह रोटी कितना गोल बना लेती है मैं सच में नफरत करती थी
मैं नफरत करती थी उनसे अनगिनत स्त्रियों को जिन्होंने रसोईघर में इस थकाने वाले काम में ढकेल दिया था जहां स्त्रियां उलाहनाओं से बचने के लिए आटा गूंथने लोइयां बेलने और लोगों की उस अपेक्षित निपुणता वाली गोल रोटी बनाने ठीक न बनने पर फिर से बनाने के काम में जुट जाती थीं केवल इसलिए कि उन्हें गोल रोटी मिल सके
नहीं मुझे नहीं पसंद है उसका गोल होना मुझे टेढ़ी मेढ़ी रोटी ही पसंद है जी धन्यवाद आपको! मैं जानती हूं यह भले ही निपुणता से लैस न हो उत्तम न हो लेकिन यह तो है ही कि इस तरह ये रोटियां हमारी जिंदगी से मेल खाती लगती हैं स्त्रियों की जिंदगी से जिंदगी जो उत्तमता से बहुत दूर है बहुत दूर
दोषों से भरी ये अनगढ़ रोटियां चाहे जो हो पर मुझे ज्यादा वास्तविक लगती हैं क्या आपको ऐसा नहीं लगता?
प्यास
मेरे बाबा बुदबुदाते हैं अक्सर बँटवारे की कहानी वे कहते हैं कि तब बेचैन हवा में बँटवारा इस कदर समाया हुआ था कि लगता ही नहीं था कि उसकी जद से कुछ भी बाहर है लगता था हर चीज का बँटवारा हो चुका है यहां तक कि पानी का भी
रेलवे प्लेटफॉर्म पर सुनाई पड़ती थी आवाज हिन्दु पानी हिन्दु पानी मुस्लिम पानी मुस्लिम पानी भागते हुए शरणार्थी तब अपनी फटी जेबों में हाथ डालते थे सिक्के तलाशते थे ताकि पानी खरीद सकें सफर बहुत लंबा था आसान नहीं था सबके लिए दूसरी तरफ जिंदा पहुंच पाना
जो जिंदा पहुंच गए उनकी प्यास तो बुझ गई लेकिन पानी का क्या? उसकी प्यास कौन बुझाए? अगर पानी बोल पाता तो अपनी प्यास की बात जरूर बताता प्यास शांति के लिए प्यास इस बात के लिए कि भाड़ में जाए बँटवारा उसे बस अकेला छोड़ दिया जाए।
सवाल
सड़क पर पड़ा कांच की टूटी चूड़ी का टुकड़ा जवाब देने से ज्यादा सवाल खड़े करता है
मोहल्ले के ठीक बीचों बीच छोड़ दिया गया सूना पड़ा खाली मकान जवाब देने से कहीं ज्यादा सवाल खड़े करता है
नंगी आंखों के सामने होते हुए भी नहीं दिखता हुआ हमारा बँटा मुहल्ला जवाब देने से कहीं ज्यादा सवाक खड़े करता है
कांच की चूड़ी के टुकड़े खाली पड़े मकान बंटे हुए मोहल्ले ये सब बंटवारे की विरासत हैं बंटवारा खुद जवाब देने से कहीं ज्यादा सवाल खड़े करता है।
प्रेरणा बख्शी अंग्रेजी में लिखती हैं। वे चीन के मकाऊ शहर में रहती हैं। उनका एक कविता संग्रह Burnt Rotis, with love हाल ही में छपकर आया है। यहां प्रकाशित प्रारंभिक दो कविताएं पूर्वोत्तर भारत की याद दिलाती हैं। अनुवाद रंजीत वर्मा को हमने अभी पिछले 106 अंक में ही प्रकाशित किया था। premabakshi 84@gmail.com