कविता
बियाबान... सरेराह
मरना ठीक होता है या नहीं लेकिन मरना पड़ता है कि जैसे शराब पीनी ठीक है या नहीं लेकिन पीनी पड़ती है प्रेम करना पड़ता है और कविता लिखनी पड़ती है।
जिस कवि के बारे में कहा जा रहा है कि वह मर गया और जिन बंद आँखों के बारे में पता नहीं क्या-क्या सियापा किया जा रहा है उसमें अमर्त्य रहने की गहरी शरारत है। देह कितनी जल्दी बर्बाद और खत्म हो जाती है इच्छाएँ बरसों बात भी 19 वें जन्मदिन की तारीखें बनी रहती हैं। मृत्यु की भी मुक्ति नहीं उसे पुरानी प्रेमिकाओं के टॉप्स पहनकर मंडराना पड़ता है कवि की अमरता के हठ के इर्दगिर्द।
क्रांतियाँ कविताओं में उत्पाद करती रहती हैं लेकिन बस का टिकट और नौकरी की तनख्वाहें पूंजीवाद के टिकटघरों और दफ्तरों से मिलती है और कौन फुटपाथ पर रहेगा और कौन मकान में और किस मकान में और कौन-कौन अस्पताल में भर्ती होगा और किस ये नियम फासीवादी बनाते हैं या अपराधी या सट्टेबाज़ या सामंत या माफिया जो अमूमन जनप्रतिनिधि भी होते हैं। बलाओं का पता नहीं कि उन्हें पूंजीवाद ने बनाया या माक्र्सवाद ने लेकिन वे कविताओं पर कब्ज़ा कर लेती हैं और उसे सत्रह साल की छोकरी की तरह भटकाती रहती हैं जिसे न राह मिलती है न मकान।
कविता तमाम तरह के रसायनों और मोहब्बत और खून में लिथड़ती रहती है और पता नहीं कि वर्जनाओं के नियम तोड़ती है और कहीं भी भाग जाने के लिए उतावली रहती है कहीं भी आग लगा देती है किसी पर भी गोली चला देती है और पता नहीं कहां कहां जली मिलती है नीली और स्याह और रुआंसी और बियाबान में सरे राह हाथ देती रहती है बस उसे वह खड़ खड़ करता ट्रक दिख भर जाये जिसके पीछे लिखा हो स्वतंत्रता।
तीन जने
जहाँ दिल्ली और गाजियाबाद की सरहदें मिलती हैं वहां तीन लड़कियां एक मोटरसाइकिल पर लद कर आई हैं - अभी केवल यह तय है कि वे ई.डी.एम. में प्यार का पंचनामा देखेंगी।
उसके बाद का कार्यक्रम तय नहीं है। भागकर फिल्म देखना और हॉल में बकर बकर इतना बोलना कि आसपास वाले को फिल्म न देखने देना - स्वतंत्रताओं के इनसे ज्यादा बड़े प्रतीक उनके पास नहीं हैं।
फिल्म के बाद वे मॉल के अन्दर घूमती हैं लेकिन खाती हैं बाहर एक ठेले पर।
मोमो अच्छा नहीं लगता। अब कभी न खाओंगो - एक लड़की कहती है।
वे लिमका, कोला फैंटा आपस में बांटती हैं पीती हैं खांसती हैं थूकती हैं और साथ आये लड़कवा से कहती हैं कि ए मेंटल, अगली बार ये जहर मत पिलाना अपनी अम्मां से आम का पना बनवा के लाना। फिर वे दहाड़कर हंसती हैं कि जैसे वो कभी रोई न हों। इस बीच एक लड़की के पास मोबाइल पर फोन आता है भाई का। कि उसके दोस्त ने उसे ई.डी.एम. के सामने हरे रंग की दारू पीते देखा लड़की जवाब देती है - कहाँ की बात कर रहा है कमीने? कौन सा चस्मा लगाता है तेरा दोस्त? मैं तो फैक्टरी की नौकरी बजाके निकल रही हूँ। तीनों लड़कियां लद जाती हैं मोटरसाइकल पर।
पता नहीं किस हरामी ने सिकायत की - एक लड़की कहती है। कि भगा के ले चल रे। कि जैसे किसी और ग्रह में चलने के लिए कह रही हो।
भाई का फोन फिर आता है लड़की काट देती है और चिल्लाती है हरामी भगा हरामी भगाता है और एक ट्रक के नीचे आ जाता है। लड़का नहीं रहा लेकिन वे तीनों बच गईं - थाने के वहशीपन और अफवाहों और अस्पतालों की अमानवीयताओं के बावजूद।
इस तरह छापामार पद्धित के तीन नमूने और इच्छाओं की राजनीति की तीन प्रविधियाँ और स्वतंत्रता आयत्त करने के तीन नायाब उदाहरण बच गए।
मुसलमान होने में इसलिए हिंदू होने में थोड़ा दिक्कत तो है
अब जिन दिन ऑरलैंडो में कइयों को उमर सादिक मतीन ने मार दिया तो दफ्तर में काम करने वाले नोमान खान अचानक क्षमा प्रार्थी दिखने लगे।
कि जैसे उसमें उनकी भी कोई भूमिका हो कि जैसे तमाम इस्लामी राष्ट्र राज्यों में जम्हूरियत का टोटा क्यों है इसकी कोई न कोई जिम्मेदारी उनकी भी बनती हो कि जैसे नाइजीरिया में बोकोहराम की हैवानियत को वे प्रभावित कर सकते हों।
यह अमूमन होता है किसी भी आतंकवादी घटना के बाद वह अचानक खिसियाये से दिखते हैं उन्होंने अपनी मेज पर छोटा सा तिरंगा झंडा लगा रखा है फेसबुक पर भी।
मैंने उनसे मजाक में कहा कि आप यह झंडा लगाकर भारत का ज्यादा अधिक नागरिक होने की कोशिश में हैं।
उन्होंने सूनी आँखों से कहा कि इस समय मुसलमान होने में थोड़ा दिक्कत तो है।
मैंने कहा कि वह तो हर सदी में थी मतलब कि मुसलमान होने की दिक्कत और ईसाई होने की दिक्कत और यहूदी होने की दिक्कत।
मैंने कहा कि सदियों से ज्यादा हिंदू होना कम मनुष्य होने की दिक्कत है।
मैंने उनसे केवल मनुष्य होने की काफी कम दिक्कतों पर बात कभी और करने का प्रस्ताव किया।
स्मार्ट सिटी
एक ऐसा शहर तो चाहिए ही कि जहाँ एक छोटा ही सही अस्पताल हो जिसमें पिता की तानाशाही का इलाज मुफ्त हो और बहन के डिप्रेशन का।
एक ऐसा शहर चाहिये कि जिसमें एक सड़क पर कम्युनिस्ट पार्टी का दफ्तर हो दूसरा भी खुलने वाला हो उन लोगों का जो पहली पार्टी से असहमत थे और तीसरा भी जो इस मत के हों कि जो असंतुष्ट हैं वे बहुत कम असंतुष्ट हैं।
एक ऐसा शहर तो चाहिए ही कि आँख तरेरने वाली लापरवाह छात्राओं का विद्यालय मुख्य सड़क पर हो।
कि जिसमें बहुत सारी साइकिलें हों और बहुत सारी साइकिलों को टिकाने के लिए बहुत सारे पेड़ और बहुत सारे पेड़ों के बहुत सारे पत्ते जो बहुत सारे विरोध के झंडों की तरह बहुत सारा फड़ फड़ करें और सड़क पर अगर ह्यून्दाई दिखे तो पान की दुकान पर चर्चा शुरु हो जाय कि इस तिकड़मी के पास इतने पैसे कहां से आ गये। किसको लूटा इसने।
कि एक धूल भरी सड़क पर जिस पर कम आवाजाही हो वहां कोने में काफी छोटा तिकोना पार्क हो जहाँ प्यार किया जा सके और जिसे राष्ट्रीय या क्षेत्रीय या जिला या मोहल्ले स्तर तक का भी भाजपा अध्यक्ष अपनी किसी सभा के लिए बुक न करवा सके।
एक ऐसा शहर तो चाहिये ही कि जहां मर्दाना कमजोरी के इलाज की एक भी दुकान न हो कि जिसकी किसी भी सड़क पर खिलौने मिलें ही - स्त्रियों के सेक्स टॉय की कम से कम एक दुकान तो होनी ही चाहिये स्मार्ट सिटी में।
भूखे मनुष्य को न खिलाने का फैसला
गोरक्षा ग्रास समिति की गाड़ी गायों का खाना लेकर गायों का इंतज़ार कर रही थी गाय आस पास नहीं दिख रही थी वे आस पास से दूर गू वगैरह की तलाश में घूम रही थीं लोक अलबत्ता गोरक्षा समिति की गाड़ी को घेर कर खड़े हो गए
वे शर्माए हुए थे कि वे भूखे थे और मनुष्य थे और यह सन्देश देने की कोसिश कर रहे थे कि जो खाना गाय को खिलाने के लिए लाया गया था वो उन्हें ही खिला दिया जाये लेकिन गाड़ी में बैठे कार्याधिकारियों ने कहा कि गायों का खाना मनुष्यों को नहीं दिया जा सकता।
उन्होंने यह भी कहा कि िफलहाल मनुष्य रक्षा ग्रास समिति गठित नहीं की गयी है और भूखी गायों का खाना भूखे मनुष्य को खिला देने का फैसला हिंदुत्व की कैबिनेट की मीटिंग में नहीं लिया गया है
सत्ता का विकेंद्रीकरण
गृहमंत्री इस बात से खुश थे कि पुलिस प्रमुख ने बहुत नावाजिब किस्म की क्रूरता दिखाई जो इस बात से प्रसन्न था कि एस.पी. ने कम क्रूरता नहीं दिखाई जो इस बात से खुश था कि डी.एस.पी. ने अप्रतिम संवेदनहीनता दिखाई जो इस बात से भरा भरा था कि इंस्पेक्टर ने शर्मिंदा कर देने वाला वहशीपन दिखाया जो इस बात से मुतमइन था कि सब इंस्पेक्टर ने दिल दहला देने वाली हिंसा का मुज़ाहिरा किया जो कांस्टेबल की क्रूरता से अत्यंत संतुष्ट था
तो इस पहेली का जवाब मिलता दिख रहा है कि चौराहे पर हिलते नामामूलम सिपाही में गृहमंत्रियों के चातुर्य उनकी अपारदर्शिताएं, आत्ममुग्धताएँ, दबंगई, क्रूरताएं, मक्कारियाँ एक साथ क्यों पाए जाते हैं
जनप्रतिनिधियों के पास
सारे जनप्रतिनिधि सफेद पहनते थे- लकदक कुर्ते। जनप्रतिनिधियों के पास बूचड़ खाने थे बसें चलती थीं ट्रक चलते थे उनके इंजीनियरिंग कॉलेज और मेडिकल कॉलेज थे उनके बेटे लास वेगस में जुआ खेलते थे और एमस्टरडम के वेश्यालयों में घूमते थे उनके पास सैकड़ों बीघे खेत थे और ट्रैक्टर और थ्रेशर और आलू के गोदाम और बीज भंडार और तेल मिलें और चीनी मिलें और मॉल उनकी रसोइयों में सात-आठ लोग मिलकर खाना बनाते थे जहाँ सात आठ चार तरह की तो चटनियाँ ही होती थीं
कोयला खदानों दुकानों सिनेमा घरों और शेयरों की तरह जनप्रतिनिधियों के पास जन थे सचल और अचल परिसंपत्ति की तरह
संपर्क - देवीप्रसाद मिश्र (दिल्ली) - 09250791030 |