हमारे पास बचाने को कुछ नहीं था न हौसले, न हक, न हथियार हम किस के लिये मुगलों से लड़ते
हम शूद्र थे और हिंदू होने के बावजूद इस विपरीत समय में भी एक कट्टर हिंदू फरमान के शिकार थे
एक ऐसा फरमान जिसके चलते हमारे गांवों से गुजरतीं मुगल फौजों के हमारे गांवों के कुओं से पानी पीते ही हम मुसलमान हो जाते
पता नहीं तब हमारे गांवों से गुजरतीं मुगल फौजें, हमें मुसलमान बनाना, चाहती भी थीं या नहीं मगर इतना तय था कि फरमान जारी करने वाले जरूर छुटकारा पाना चाहते थे हमसे
यदि फरमानी ऐसा नहीं चाहते होते तो वे कभी जारी नहीं करते ऐसा फरमान और मुगलों के हमारे गांवों के कुओं से पानी पीकर गुजर जाने के बाद अपने बीच हमारे वापस लौटने के रास्ते रखते खुले
अब आप ही बतायें तब सैकड़ों गांवों में बसे हमें मुसलमान बनाने वाला कौन था कोई कट्टर मुसलमान या कट्टर हिंदू फरमान
राष्ट्रवाद
एक राष्ट्र के लिये राष्ट्रवाद से बुरा कुछ भी नहीं उन्नीस सौ चौरासी को ही लें जिसमें सिखों के विरूद्ध दंगों में ''हम सब'' राष्ट्रवादी थे
एक बड़े राष्ट्र के ऐसे राष्ट्रवादी जो राष्ट्र के भीतर उभर रहे एक छोटे राष्ट्रवाद के तथाकथित नागरिकों की निर्ममता से दाढिय़ां नोच रहे थे, जला रहे थे उनके घरों के साथ-साथ उन्हें भी जिंदा
बड़े राष्ट्रवाद के टूटने के डर से छोटे राष्ट्रवाद को सबक सिखाते हम राष्ट्रवादी घोंटने में जुटे थे उन ही की रंग-बिरंगी पगडिय़ों से उनके गले, उन्हीं की तलवारों से बेधने में मशगूल थे उनकी छातियां, भोंकने को थे तत्पर उन्हीं के पेटों में उनकी कृपाणें
उन्नीस सौ चौरासी को लेकर राष्ट्रवाद के इस हमाम में हम सब नंगों के मुंह अब तक बस इसीलिये सिले हैं क्योंकि तब सिखों को राष्ट्रवादियों के हाथों में ही सबसे ज्यादा हथियार मिले हैं
अपने ही पेट को चीरकर अपना ही खून पीना चाहता राष्ट्रवाद बड़ा हो या छोटा दोनों ही स्थितियों में उसके दांत और नाखून बहुत पैने होते हैं।
धन संसद का प्रधानमंत्री
धन संसद का प्रधानमंत्री सबसे उपर है
धन संसद का ताकतवर प्रधानमंत्री सरेआम हमारे प्रधानमंत्री की पीठ ठोकता है बदलकर जिसकी ठुकन हमारी कमर पर लात की तरह पड़ती है
धन संसद के अन्य मंत्री दफ्तर में तेज चलते पंखे के नीचे फाईलों में कागजों की तरह फडफ़ड़ाते हमारे मंत्रियों को जमीन और जंगल के उन कांटों के बार-बार उग आने और उनकी कमीजे फाड़ते जाने के लिये जमकर फटकार लगाते हैं
हमारे चुने हुए प्रधानमंत्री की अगुवाई में धन संसद के गले में हाथ डाले हमारी संसद हंसते हुए उससे कहती है बड़े भाई तुमने तो खदानें खोदने से पहले हमारीं जड़ें ही खोद डालीं
धन संसद देश की नदियों को अपनी जेब में बाद में भरती है उससे पहले हमारा प्रधानमंत्री धन संसद के प्रधानमंत्री के पीने के लिये पानी का ग्लास भरता है
धनसंसद में कोई विपक्ष नहीं है।
पहल में अनेक बार प्रकाशित। हिन्दी के जाने माने कवि, ग्वालियर में रहते हैं। संपर्क- 00425109430