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जनवरी 2016

केशव तिवारी की कवितायें

केशव तिवारी

 

कितने बड़ोखर बुजुर्ग

यह पूरब से जो चईत की
हवायें आ रही है
अब उनमें पके गेहूं की बालियों की
खनक है न लचक
ऐसे मनहूस समय को
बस चैईता ही संभाल सकता है।

एक सन्नाटा एक दहशत
लेकर बह रही है हवायें।
धीरे धीरे निकल रहे हैं लोग
अमृतसर, जालंधर
अपने उजाड़ खेतों को
देखते बिसूरते

कितने बडोखर बुजुर्ग, कितने महोखर
एक जालंधर के पेटे में समा जाते हैं।
बचे हैं ये कि बचा है अमृतसर
ये शहर कितने लोगों को
जिंदा रहने का आश्वासन है

और वो चईता का लरजता सुर भी
जो उन्हें यहाँ से बांधकर रखता है

नदी का मरसिया तो पानी ही गायेगा

आज फिर महसूस हो रहा है।
कठुवा के पुल पर नंगे तलुवों का स्पर्श
छिले बदन सरपत के जंगलों में
खरगोश पकड़ता एक बच्चा
कितना सयाना हो गया।

यह सरपतो से
नहीं छिलवाना चाहता अपना बदन
सिर्फ अनुभूतियों को सहला रहा है।

उसके बचपन की उजली गोरी नदी सई
आज काली पड़ चुकी है।

वो मनिहारपुर के घाट के पत्थरों पर
उन औरतों की
बिवांई फटी ऐडिय़ों के
घिसने के निशान खोज रहा है
जिनसे हाथ छुड़ाकर
वह अक्सर दहान में उतर जाता था।

लंगड़ाती कलझती दम तोड़ती सई
का दर्द न तो बेल्हा माई की
मंदिर की घंटियों में है
न सांई की कुटी से
उठती चि़लम की लपट में दिखता है उसका चेहरा

नदी का मरसिया तो
पानी ही गायेगा
चतुर कवि तो कविता में
गाल बजायेगा।

हो सकता है

हो सकता है उस पच्छू के
कोने तक भी न जा पाऊं
जहां माई को, हडिय़ा में हाथ डालते
डस लिया था करिया नाग

हो सकता है
उस कोने तक भी न जा पाऊ
जहां मूसर, कांडी, चकिया पड़े है।

जाना तो बहुत बहुत कोने अतरे था
उस परछाई तक भी
जो कब से भटक रही है
इन माटी की दीवारों पर

पर ये घर है कि खभार
कहीं चीजें अंधेरे में पड़ी हैं कहीं चेहरे।

बुद्ध सुन रहे हो

पूष की कोहरे
मैं केन के छुलछुलिया घाट पर
भोर का सूरज देखने बैठा हूँ।
बस पांव पांव आ गयी है नदी
उस पार से सुनाई पड़ रही है हलचल
बीच नदी तक आते आते
दिखी एक औरत

गोद में लिये बकरी का बच्चा
और अपने बच्चे की उंगली पकड़े
पार कर रही थी नदी।

एक अद्भुत दृश्य था मेरे सामने
किनारे आते ही पूछ बैठा मैं
कि बकरी के बच्चे को भी तो
वो पैदल पार करा सकती थी नदी

समेटते हुये अपने चादर वो बोली
साहब बकरी का बच्चा अभी गमुहार है
मैं सन्न था सुनकर
गंछा गांव की उस औरत का जवाब

बुद्ध तुम भी सुन रहे हो ना
क्या कह रही है ये औरत



लोक लहर और भाषा के धनी केशव तिवारी बांदा में रहते है। 'पहल' में पहली बार।


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