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अक्टूबर 2015

टेबिल

तरुण भटनागर

डॉक्टर ने मर्चरी में पड़ी उस लाश के चेहरे पर से कपड़ा हटाया। खून से सने काले पड़ चुके उसके चेहरे को देखा। क्षण भर को अपनी आंखें बंद कीं। अंधेरे में उसे एक तस्वीर दिखाई दी। बचपन में पेपर में आई उस नाटे, गोरे, मोटे आदमी की तस्वीर। हाथ में जूता लहराते उस आदमी की तस्वीर जो उसके जेहन में न जाने कितनी बार उतरती रही है। बचपन के उन दिनों वह पेपर के मुख्य पृष्ठ पर आई थी। वह तस्वीर उसे बार-बार दिखती रही थी। अक्सर, अचानक कहीं भी। पर आज। आज उसने चौंककर अपनी आँखें खोल लीं। वह मर्चरी की खिड़की के बाहर देखने लगा। खिड़की के पार मेहतर खड़ा था। लाश की चीर-फाड़ कर लौटने को आतुर। डॉक्टर कुछ कहना चाहता था। उस एकांत में उस लाश से कुछ कहने के लिए वह शब्द टटोल रहा था। जानता था, कि यह देर बहुत पहले से होती आई है। बचपन से या फिर उससे भी पहले से। उन दिनों से होती देर जब वह इस दुनिया में नहीं था। पर वह कहना चाहता था। उस मृत चेहरे के सामने, उस मर्चरी में, उस एकांत में... वह कुछ कहना चाहता है। उसे लगता है, कि बचपन से, पेपर में देखे उस चित्र से आज तक जो समय बीता वह जाया नहीं जाना चाहिए। ठीक है कि, आज जो सामने है वह मृत है और वह मृत से ही कहकर मान लेना चाहता है, कि उसने कहा। वह कम से कम जान पाया कि वह क्या है, जो माना जाना चाहिए। माना जाना चाहिए कहने के लिए एक बिल्कुल सही बात की तरह।

उसने आज की दिन भर की बातों को सिलसिलेवार याद करने की कोशिश की।
आज दोपहर हमेशा की तरह मिस्टर राजन डॉक्टर के पास टेबिल पर बैठा था। वह बीमार था। घातक रुप से बीमार। उसकी बीमारी बढ़ रही थी। लगातार। पर वह चुप था। यंत्रवत शांत। वह बेचैन हो रहा था। वह अनियंत्रित रुप से घबरा रहा था। फिर भी वह चुप था। वह चुप था क्योंकि वह टेबिल पर बैठा था। आसपास कुछ और लोग भी बैठे थे। परिचित। रोज के चेहरे। पर मिस्टर राजन कुछ कह नहीं सकता था। वह सिर झुकाये था। क्लांत। प्रतिक्रियाविहीन।
टेबिल के एक हिस्से में बॉस बैठा था। जहाँ बॉस बैटा था वहां सिर्फ बॉस था। उसके आसपास कोई नहीं था। वह अपने आसपास में अकेला था। टेबिल का वह हिस्सा बॉस के बैठने के लिये तय था। वहाँ एक अलग प्रकार की कुर्सी लगी थी। उसका वजूद अलग था। उसके पाये ऊँचे थे। हत्थे छोटे। पीठ टिकाने को पीछे लंबी, चौड़ी और ऊँची टेक थी। वह कुर्सी बहुत वजनी थी। इतनी कि उसे हिलाना आसान न था। वह अपने वजन से जमीन पर बेसाख्ता जमा थी। मजबूती से, पूरे भार के साथ, न सरकने को, फिक्स...। वह आरामदेयक पर भव्य थी। खूबसूरत पर बड़ी। पहले यहाँ दूसरी कुर्सी थी। पर बॉस को वह थोड़ी छोटी लगती थी। बॉस बड़ी और भव्य कुर्सी चाहता था। इस तरह यह यहाँ लाई गई थी। ढूंढ़कर। नाप जोखकर। सूत दर सूत मिलाकर। बॉस का आदेश था कि कुर्सी वजनी हो। बहुत वजनी। सबसे वजनी लकड़ी याने शीशम से वह बनाई गई। उसके पाये, हत्थे, आधार और पीठ शीशम की मोटी लकड़ी के बने थे। वह ऊँची थी। अपनी ऊँचाई में वह जितनी वजनी हो सकती थी, वह उतनी वजनी थी। बॉस को पता था कि कुर्सी की ऊँचाई की भी एक सीमा है। फिर कुर्सी सिर्फ अपनी ऊँचाई और बनक से ही तो भव्य नहीं होती? वह एक हद तक ही ऊँची और बड़ी हो सकती है। बाकी सारी भव्यता कुर्सी को खुद अर्जित करनी पड़ती है। थोड़ा वक्त लगता है। उसकी भव्यता बढ़ती है। उसका वजूद बदलता है। उसकी विशिष्टता गहराती है। वह दूसरी कुर्सियों से अलहदा होती जाती है। उसके सामने बाकी कुर्सियाँ छोटी होती जाती हैं। उस कुर्सी की टेबिल पर सारी दुनिया इकट्ठा होने लगती है। टेबिल के सामने इकट्ठा होने वाली दुनिया छोटी से छोटी और कम से कमतर होती जाती है। फिर लगता है मानो कुर्सी बेजान नहीं है। सन्नाटे में भी बेजान कुर्सी फिर बेजान नहीं लगती। लोग उससे भय खाते हैं। उसके सामने घिघियाते हैं। उसकी रिक्तता में भी ढूँढ़ लेते हैं, उसके लिए सम्मान और डर।
बॅास बोल रहा था। टेबिल के चारों ओर बैठे लोग सुन रहे थे। बॉस बताता और लोग उसके बताये को तस्दीक करने अपनी गर्दन हिलाते। बॉस कोई अर्थहीन सी बात बताता। लोग उस बात को महत्वपूर्ण बात मानकर अपनी डायरी में नोट करते। उनका यह इल्म खत्म हो चुका था, कि बॉस की बातें अर्थहीन हैं। टेबिल का कायदा है, टेबिल की फितरत है, कि इसके चारों ओर बैठने वाले लोग लगभग एक ही तरह से ही सोचेंगे और एक ही तरह से प्रतिक्रिया देंगे। जब बॉस टेबिल पर आता सब एक ही तरह से झुककर उसका अभिवादन करते। जब कोई एक बॉस की बात नोट करने लगता तो बाकी सब भी वही करने लगते। जब कोई एक सिर हिलाता बाकी सब भी हिलाते। जब कोई एक गौर से बॉस को सुनता बाकी सब भी सुनते। जब कोई एक बॉस की मुस्कुराहट में अपनी मुस्कुराहट मिलाता बाकी सब भी मुस्कुराते। सब कुछ तय सा है कि बॉस की कौन सी बात नोट करनी है, किस पर सिर हिलाना है, किस को सुनना है, किस पर मुस्कुराना है, किस पर बेचारगी का भाव चेहरे पर लाना है, किस पर गंभीर हो जाना है, किस पर ऐसी मुद्रा बनाना है माने कुछ सोच रहे हों....।
बरसों से इस टेबिल के चारों ओर बैठते-बैठते यह सब वे लोग सीख चुके हैं। बॉस लगातार कहता है। वे यूँ प्रदर्शित करते हैं मानों लगातार सुन रहे हों। बॉस फाइल का कोई हिस्सा पलटता है। कोई कागज खोलता है। वे सब भी अपनी-अपनी फाइलों में कोई कागज ढूंढऩे लगते हैं। बॉस कहता है ऐजेन्डा नंबर ०३ और वे सब अपनी अपनी फाइलों का ऐजेण्डा नंबर ०३ खोल लेते हैं। बॉस उनसे पूछता है। वे जवाब देते हैं। उन्हें पता है कि बॉस क्या क्या पूछ सकता है? बॉस को पता है कि वे क्या-क्या जवाब देंगे? तय प्रश्न। तय जवाब। फिर भी बॉस पूछता है। पूरे दंभ से पूछता है। तय प्रश्न। लोग जवाब देते हैं। पूरी विनम्रता से झुककर। तय जवाब। वही जवाब तो बॉस आँखें बंद कर सुनना चाहता है। बॉस को पता होता है कि जो वह कह रहे हैं उनमें से क्या झूठ है और क्या सच? वे सच बात झुककर कहते हैं और झूठ और ज्यादा झुककर। वे कम लटके चेहरे के साथ सच कहते हैं और चहकते शब्दों के साथ झूठ। वे कम तैय्यारी के साथ छोटे सच और छोटे झूठ बोलते हैं। वे थोड़ी और ज्यादा तैय्यारी के साथ थोड़ा बड़ा सच और बड़ा झूठ कहते हैं। झूठ कहते हुए उनकी आँखें चमकती हैं। सच कहते हुए वे लजाते हैं, मानो कोई अपराध कर रहे हों। बॉस उन्हें उनके छोटे सच और छोटे झूठों पर डाँटता है। बॉस उनके बड़े झूठों पर शाबासी देता है। वे नहीं मानते कि यह सब बोगस है। बकवास है। ऐसा मानने की चेतना खत्म हो चुकी है। वे फख्र से झूठ पर झूठ कहते हैं। जब वे बॉस की कुर्सी को देखते हैं, तो कोई शक नहीं रह जाता कि इस तरह चहककर झूठ कहना कितना तो सार्थक काम है। बॉस इत्मिनान से इन सबको सुनता है। कुछ लोग जो अभी इन सब कामों में पारंगत नहीं हैं, बॉस उन पर भ्रुकुटी तान लेता है। आँखें तरेरता है। उन पर दाँत पीसता है। ऐसे लोग अपना छोटा झूठ बताते हुए डरते हैं। वे अपनी छोटी कुर्सी से उठकर टेबिल के किनारे खड़े हो जाते हैं। फिर घिघियाते हुए डरे सहमे सकुचाते अपना छोटा झूठ बताते हैं। धीरे-धीरे उस झूठ को कहते हैं, घिघयाते कनखियों से ताकते हैं। बॉस उन्हें डाँटता है। फब्तियाँ कसता है। वे सकुचाते हैं। उनका छोटा झूठ शब्दों में अटक जाता है।
टेबिल के कुछ कायदे हैं। कायदे तय हैं। वे अलिखित हैं पर हर किसी को उनका पालन करना है। करना ही है। कोई और चारा नहीं। किसी और चारे का खयाल भी नहीं। पर कुछ लोग टेबिल के कायदों में उतने परफेक्ट नहीं हो पाये हैं। कुछ बिल्कुल परफैक्ट हैं। जो परफैक्ट नहीं हैं, बॉस उन लोगों में कमियाँ ढूंढ़ता है। लोगों को अनुमान रहता है कि बॉस कौन कौन सी कमियाँ निकाल सकता है? वह झूठ को झूठ कह सकता है। वह सच पर मौन रह सकता है। वह सच के निहितार्थ ढूँढ़ सकता है। वह सच को कमतर सच बता सकता है। वह झूठ को बेदर्द और अमानवीय कह सकता है। वे कमियों का जवाब देते हैं। कमियाँ गहरे गड्ढों की तरह हैं। उनमें कितना भी कूड़ा कचरा भरो गड्ढा भरता ही नहीं है। दफ्तर में कमियाँ सबसे ज्यादा कागज खा जाती हैं। कमियों का पेट बहुत बड़ा है। उनमें कई फाइलें और कई रिम कागज समा सकते हैं। कई बोतल स्याही और हजारों शब्द उसके पेट में भरे जाते हैं, फिर भी सुरसा की तरह कमियों का मुँह खुला रहता है। कमियों के जवाब भी एक सीमा हैं। सीमा के आगे कमियों का जवाब नहीं हो सकता है। बॉस जवाब की सीमा पार कर गई कमियों को ढूंढता है। इस प्रकार बॉस द्वारा पकड़ी गयी कमी अनुत्तरित रह जाती है। अनुत्तरित कमी वाला आदमी सिर झुका लेता है। एक तरह से  हार मान लेता है। वैसे बॉस से कैसी हार। बॉस की जीत में ही सब की जीत है। जो बार  बार हारता है वो बार-बार बॉस को जीतने का सौभाग्य भी तो देता है। टेबिल के उसूलों में जीतना सिर्फ बॉस को ही है। दूसरे की जीत भी अंतत: बॉस की ही जीत होती है। दूसरे की हार तो बॉस की जीत है ही।
टेबिल का कायदा है, कि बॉस कहेगा बाकी सब सुनेंगे। बाकी सब तस्दीक करेंगे। गर्दन हिलायेंगे। सिर झुकाकर नोट करेंगे। टेबिल पर हर कोई चुप रहता है। जब बॉस उससे कुछ पूछता है, तभी वह कहता है। वह सिर्फ वही बात कहता है जो बात बॉस सुनना चाहता है। बॉस का कहना तय है। बॉस का सुनना तय है। शब्द दर शब्द। इस प्रकार टेबिल पर हर बात बॉस की बात है। कहना भी बॉस का है। शब्द दर शब्द। सुनना भी बॉस का है। शब्द दर शब्द। इसके अलावा कोई कुछ और कह नहीं सकता। कुछ और कहना टेबिल के कायदे के सख्त खिलाफ है और उसका दण्ड बेहत कठोर है। कुछ और कहना पर बॉस की डांट से लेकर नौकरी गँवाने तक कुछ भी हो सकता है। टेबिल से कोई उठकर तो जा ही नहीं सकता। यह एकदम गलत और बेहूदा है।
कहते हैं एक दिन टेबिल पर एक आदमी को जोर का पेशाब आ गया। वह काफी देर तक टाँगें सिकोडकर बैठा रहा। बॉस लगातार बोल रहा था। सब यंत्रवत बॉस की बात नोट कर रहे थे। उस आदमी के पेट में तेज दर्द हो रहा था। जब असह्य हो गया तब वह धीरे से अपना पेट पकड़कर खड़ा हुआ और सिर झुकाकर कहा - एक्सक्यूज मी और धीरे से कमरे के बाहर चला गया। टेबिल के चारों ओर सनाका खिंच गया। यह अपमान था। कुर्सी का अपमान। टेबिल का अपमान। कहते हैं बॉस ने बाद में उस आदमी की इतनी कमियाँ निकाल दीं कि वह सबसे नकारा आदमी हो गया। इस तरह पहले तो उसे सस्पैण्ड कर दिया गया और फिर बाद में उसकी नौकरी चली गई। वह नया था। उसे टेबिल के कायदे का ठीक-ठीक पता नहीं था। पेट में पेशाब और दर्द दबाये वह भूल गया कि कायदा सर्वोपरी है। बाद में उसकी बीवी बॉस के सामने बहुत गिड़गिड़ाई। बॉस ने इतना ही कहा कि वह बेहद अभद्र और स्वेच्छाचारी था... टेबिल वाले एक आदमी ने बॉस की बात को कृपापूर्वक आगे बढ़ाते हुए कहा कि सर वह तो फासिस्ट था... वन हू डोण्ट बिलीव इन सिस्टम। कहते हैं उसका परिवार दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो गया। बॉस अभी भी पीछे पड़ा हुआ है। उसका मानना है कि उस आदमी में इतनी कमियाँ थीं और वह इतना बेहूदा था, कि उस पर मुकदमा भी चलना चाहिए।
तो, हुआ यूँ कि उसी टेबिल पर मिस्टर राजन की तबियत खराब हो रही थी। वह सोच रहा था कि वह कह दे कि उसकी तबियत खराब है। मिस्टर राजन को पेशाब रोकने वाले आदमी का किस्सा पता था। वह डर रहा था। उसे पता था कि पेशाब और बीमारी दो अलग-अलग चीजें हैं। बीमारी की बात पर अगल तरह से कार्यवाही का कायदा है। गंभीर बीमारी के मामले पर बात बन सकती है। यूँ तो टेबिल के कायदे के हिसाब से बीमारी एक  बहाना है। गंभीर बीमारी भी। बीमारी की बात पर बॉस मुस्कुराता है। मुस्कुराने का मतलब होता है कि बहाना बना रहे हो। लगता है मीटिंग की तैयारी से नहीं आये। आसपास बैठे लोग भी बॉस की मुस्कान में अपनी मुकान मिलाने के लिए मुस्कुराते हैं। उपहास मिश्रित मुस्कान। इस तरह उसकी घातक बीमारी हँसने-हँसाने की चीज हो जायेगी। वह कहेगा कि वह सच में बीमार है। बॉस के चेहरे पर मुस्कुराहट की जगह एक ऐसा भाव उतर आयेगा। माने वह कोई बेअदबी कर रहा हो। कोई बदत्तमीजी। बॉस गंभीर हो जायेगा। उसे घूरेगा। फिर उसे इग्नोर करके अपनी बात चालू कर देगा। गंभीर बीमारी की बात को लात मार दी जायेगी। लोग सोचेंगे। वह कितना बेशर्म है टेबिल पर अपनी बीमारी की बात ले बैठा। कितना अगंभीर और उच्श्रृंखल। टेबिल का उसूल है कि कोई बीमार नहीं पड़ता। हर इंसान उस मशीन की तरह है, जो लगातार चलती है बरसों तक। जो कोई शिकायत नहीं करती। जो बस एक दिन अयोग्य हो जाती है। राइट ऑफ कर दी जाती है। बीमारी बहाने से ज्यादा कुछ नहीं। एक अलिखित उसूल। बीमार पडऩा याने अयोग्य हो जाना। टेबिल पर बीमारी याने झूठ।
पर तभी उसको खयाल आया कि जो उसके पास बैठा है वह एक डॉक्टर है। बॉस की टेबिल पर हर कोई आता है। हर पेशे हर कार्य क्षेत्र के लोग। यह बात अजीब लग सकती है पर सत्य है। वे लोग जो कभी बॉस की टेबिल तक पहुंचे हैं जानते हैं कि वहाँ तमाम पेशे के लोग होते हैं। वहाँ डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, पुलिस, शिक्षक, अफसर आदि होते हैं। बॉस एक साथ सब से बात करता है। उसकी एक ही बात को सब सुनते हैं। एक ही बात को डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, पुलिस, शिक्षक, अफसर आदि एक साथ सुनते, नोट करते और गुनते हैं। बॉस एक एक ही बात से डॉक्टर, इंजीनियर और शिक्षक तीनों को निर्देश दे देता है। बॉस का एक ही निर्देश एक साथ वकीलों, अफसरों और पुलिस के लोगों के लिए होता है। तमाम पेशों के लोग बॉस को एक साथ सुनते हैं। एक साथ सिर हिलाते हैं। एक साथ नोट करते हैं। एक साथ पहली कक्षा के बच्चों की तरह हामी भरते हैं- यस सर।
संयोग ही था कि उसके पास डॉक्टर बैठा था।
उसने लोगों से नजर चुराकर डॉक्टर के कान में धीरे से कहा।
''मैं बीमार हूँ।''
डॉक्टर ने उस पर उड़ती नजर डाली।
''सच में बहुत बीमार हूँ।''
वह फुसफुसाया। डॉक्टर ने टेबिल के नीचे अपना दायां हाथ उसकी नब्ज़ पर रखा और घड़ी वाला अपना बायां हाथ टेबिल के ऊपर। वह मन ही मन नब्ज़ गिनता एक, दो, तीन, चार.... अरे अरे यह क्या? इसकी नब्ज़ तो बुरी तरह से ड्रॉप हो रही है। सीधे एक के बाद चार और चार के बाद सात, बीच की तीन से चार धकडऩे गायब। इतनी तेज कि एक मिनट में दो सौ दस तक। डॉक्टर ने क्षण भर को उसे देखा। उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। उसके माथे और गर्दन पर पसीना आ रहा था। टेबिल पर ऐसा कोई वाकया पहले नहीं हुआ था। उसे लगा था मानो वह बेहोश हो जायेगा। डॉक्टर अगर क्लीनिक में होता तो तत्काल उसे लिटाता। दवा देता और अस्पताल के आई.सी.सी.यू. में एडमिट कर देता। पर टेबिल पर। यूँ अचानक। डाक्टर को अहसास था कि वह टेबल पर है। उसने आहिस्ते से कहा। कह ही दिया। कोई और उपाय न था।
'सर इनकी तबियत बहुत खराब है। इनको कार्डियक अटैक आ सकता है।'
बॉस की आँखें डॉक्टर की ओर उठ गईं। टेबिल की और आँखें भी डॉक्टर पर टिक गईं। बॉस एकदम से नाराज हो गया। लोग भी डाक्टर को इस तरह देख रहे थे मानो उसने कितना बड़ा अपराध कर दिया है। वह आदमी हांफ रहा था। उसकी शर्ट पसीने से तर हो गई थी।
बॉस की भ्रुकुटियाँ तनी थीं। उसके संकरे गोरे सपाट माथे पर भौंहों के बीचों बीच दो सीधी लकीरें बन आईं थीं। माथे पर लाल रंग का टीका और टीके पर अक्षत के दो दाने चिपके थे। भ्रुकुटियों के बीच आड़ा टेढ़ा टीका बॉस की पहचान थी। वह रोज तीन घण्टे पूजा करता था। धोती-बनियान और जनेऊ धरे वह बहुत एकांत में देर तक मंत्रोचार करता। उसके बंगले पर दुनिया जहान के लोग उससे मिलने इकट्ठा होते... डॉक्टर, वकील, जमीन के कारोबारी, रेत-पत्थर के ठेकेदार, मीडिया के लोग, बुद्धिजीवी, प्राइवेट स्कूलों के मालिक, सरकारी अधिकारी, राजनेता.... आदि, आदि। वे इंतजार करते बॉस की पूजा के खत्म होने का। हर किसी की जुबान पर बस एक ही बात कि बॉस जैसा धार्मिक आदमी नहीं देखा। भक्त और भगवान को समर्पित।
मिस्टर राजन कांप रहा था। उसका चेहरा लाल पड़ गया था। दिल बेतरह धड़क रहा था। घबराहट और दर्द के मारे उसकी घिग्घी बंध गई थी। बॉस ने डॉटते हुए कहा-
'डॉक्टर विश्वास। इट इज़ ए मीटिंग।'
'सर इनको तो हार्ट अटैक आया लगता है तत्काल अस्पताल ले जाना पड़ेगा।'
डॉक्टर कह गया, थोडी विनम्रता से और थोड़े इस तरह माने अर्ज कर रहा हो। टेबिल के चारों ओर सन्नाटा पसर गया था। टेबिल के अनुशासन का ऐसा अचानक भंग पहली बार हुआ था। यह डॉक्टर था, जो बीमारी को तस्दीक कर रहा था पर टेबिल पर यह सिर्फ अनुशासन भंग था। बॉस की आँखें गुस्से से फैल गईं।
'तो आप बतायेंगे, कि किसको क्या बीमारी है और हमें क्या करना है?'
'सच में कार्डियेक अटैक है सर। ऐसे अटैक में इंसान मर भी सकता है।'
'देखो भई। निबटाओ मामला।'
बॉस ने अपने एक मातहत को कहा। बॉस बुरी तरह से चिढ़ गया था। मातहत डॉक्टर के पास गया। उसके कान में कुछ बुदबुदाया। मिस्टर राजन का चेहरा लाल हो गया था। उसकी गर्दन की नसें उभर आई थीं। वह जानवरों की तरह मुँह खोलकर साँस ले रहा था। बॉस मिस्टर राजन को इस तरह घूर रहा था मानो अभी उसे गोली मार देगा। मातहत ने उस आदमी को उठाया और बाहर ले गया।
'डाक्टर विश्वास आप चाहे तो अस्पताल को बता सकते हैं।'
'थैंक्यू सर।'
डॉक्टर विश्वास ने सिर झुकाकर कहा। बॉस की इस दयालुता पर मातहतों का दिल भर आया। तमाम अनुशासन और कायदों को दरकिनार करते हुए बॉस ने मिस्टर राजन को अस्पताल ले जाने की बात जो कह दी थी। एक ने बड़ी विनम्रता से कहा- 'सो काइंड ऑफ यू सर।'
'पर जल्दी। वी कांट वेट।'
डॉक्टर विश्वास फोन लगाने लगे।
'और हाँ एक बात और... हमें यह बताने की जरुरत नहीं है, कि किस बीमारी में इंसान मर सकता है और किसमें नहीं...।'
बास ने चिढ़ते हुए कहा। डॉक्टर फोन पर बात कर पाता उससे पहले ही मीटिंग चालू हो गई।
'सारी फ्रैंड्स।'
बॉस ने डॉक्टर विश्वास को घूरते हुये इस तरह कहा कि मानो कितना बड़ा पाप हो गया है।
'तो मैं बता रहा था।'
'सर यू.एन.ओ. की जनरल असेम्बली की टेबिल के बारे में।'
'हॉ वही।'
'सर, उस टेबिल के कायदों के बारे में।'
'वेरी गुड वही।'
कुछ लोगों ने अपनी-अपनी डायरियाँ खोल लीं। हिन्दुस्तान के उस दफ्तर में यू.एन.ओ. की जनरल असेम्बली की टेबिल पर बात चल रही थी। वह बहुत बेतुका था, पर जैसा कि लोगों का इल्म खत्म हो चुका था और यह बात बॉस की बात थी इसलिए सबके लिये अहम थी। बॉस अक्सर इस तरह की बातें शुरू कर देता था, कभी अपने यूरोप दौरे के बारे में जो उसने यूरोप के किसानों के अध्ययन के लिए सरकार के खर्चों पर की थी, कभी लंदन स्कूल ऑफ इकानामिक्स के बारे में जहाँ वह कुछ दिन पढ़ा था, कभी पेरिस के आलीशान म्यूजियम और गैलरीज के बारे में जहाँ वह संस्कृति के अध्ययन के सिलसिले में गया था और कभी कुछ और। आज बॉस यू.एन.ओ. की जनरल असेम्बली की टेबिल के बारे में बात कर रहा था।
डाक्टर विश्वास ने लगभग फुसुसाते हुये फोन पर अस्पताल को बता दिया। दो तीन बार यह भी कहा कि - 'अरे भाई मैं मीटिंग में हूँ'। उसके इस फुसफुसाने पर कुछ लोगों ने उसे घूरा। फोन पर बताने के बाद थोड़ा शर्मिंदा होते हुए उसने धीरे से कहा - सॉरी.... सॉरी सर। उसे थोड़ा कोफ्त भी हुई कि क्यों खामखाँ उस आदमी की बीमारी में पड़ गया। बिना बात ही बॉस की झुंझलाहट झेलनी पड़ी। वैसे भी जाने आजकल क्या हो रहा है, कि टेबिल के कायदों में हर रोज कुछ न कुछ चूक हो ही जाती है। कल की ही बात है। बॉस अस्पताल आया था। इंस्पेक्शन के लिए। बॉस किसी भी दफ्तर का इंस्पेक्शन कर सकता है। वह अस्पताल, थाना, स्कूल, तहसील, राशन दुकान, कॉलेज, पंचायत, मुनिस्पालिटी... किसी का भी इंस्पेक्शन कर सकता है। वह हर चीज का एक्सपर्ट माना गया है। कुछ-कुछ भगवान की तरह। उस दिन उसका मूड अस्पताल इंस्पेक्शन का था, सो वह अस्पताल चला आया। अस्पताल में डॉक्टर जिस कमरे में मरीजों को देखता था, उस कमरे की खिड़की का पर्दा हटा हुआ था। खिडकी के पास उसका घर दिख रहा था। घर के बाहर एक मरीज खड़ा था। बॉस ने खिड़की के पार उसके घर के सामने खड़े मरीज को देख लिया था। फिर उसको देखकर लगभग क्रोधित होते हुए कहने लगा- 'क्यों डॉक्टर प्राइवेट प्रेक्टिस करते हो।'
उसे खुद पर कोफत हुई। काश दफ्तर के कमरे की खिड़की का पर्दा बंद होता और उसका घर बॉस की नजर से छिप जाता। अब बॉस को एक और मौका मिल गया था- 'तुम जानते हो मैं तुम्हें सस्पैण्ड कर सकता हूँ। तुम्हें शर्म नहीं आती प्रायवेट प्रेक्टिस करते हुए।'
यू.एन.ओ. की जनरल एसेंबली की टेबिल और इस दफ्तर की टेबल के अंतर पर बोलने से पहले बॉस थोड़ा रूका। डॉक्टर विश्वास को घूरा। तनि हुई भ्रुकुटियों के साथ मुस्कुराया। बॉस को मुस्कुराते हुए देखकर बाकी सब भी मुस्कुरा दिये। बॉस ने मुस्कुराते हुए कहा -
'क्यों डॉक्टर, कहीं भी अपना अस्पताल खोल लेते हो?'
सब खिलखिलाकर हँस दिये। डॉक्टर विश्वास झैंप गया। वह सिर्फ इतना ही कह पाया- 'सॉरी सर। आई एम रियली सॉरी।'
डॉक्टर की सॉरी पर बॉस खिलखिलाकर हँस दिया। बॉस को हँसता देख टेबिल पर बैठे और लोग भी खिलखिलाकर हँस दिये। बॉस की हँसी में सबकी हँसी मिली थी। जैसे बॉस की चुप्पी और गुस्से में सबकी चुप्पी और गुस्सा मिला होता है, ठीक उसी तरह।  डॉक्टर विश्वास लज्जित हो गया। टेबिल पर उसका इतना मजाक पहले कभी नहीं उड़ा था। वह मन ही मन पश्चाताप भी कर रहा था कि पता नहीं मिस्टर राजन कैसे उसके पास आकर बैठ गया। फिर वे भी तो कितने मूर्ख हैं कि उसकी नब्ज़ देखने लगे। सच में वे निरे मूर्ख ही हैं कि कहीं भी किसी का भी इलाज शुरू कर देते हैं। घर, नुक्कड़, चौराहे, पेड की छॉँव, चौराहों, गली-कूचों तक की तो बात ठीक है, पर टेबिल पर, टेबिल पर इलाज, सच में आज तो उन्होंने हद ही कर दी।
न जाने कितनी बात उन्होंने राह चलते लोगों को देखकर उनको उनकी बीमारी और दवायें बताई थीं। बताते ही रहते हैं। जहाँ भी जाते हैं, अपनी गर्दन में स्टैथेस्कोप डाले रहते हैं। लोगों को सिगरेट की पन्नियों, पान लपेटने के कागज के टुकड़ों, परचून की पुडिय़ा, पेपर के टुकड़े आदि आदि में नुस्खे लिखकर दे देते हैं। इलाज के लिए कोई जगह तय नहीं है। हर जगह लोग हैं और हर जगह बीमारियाँ हैं और इस तरह हर जगह वे भी हैं। नब्ज देखना, बी.पी. नापना, नपना लगाकर धडकन सुनना, आँखों की निचली पलकों की खाल को नीचे खींचकर सफेद पुतली के रंग को ध्यान से देखना, मुँह के भीतर टॉर्च की रौशनी  डालकर जीभ, तालू, गले का मुआयना करना... यह सब वे कहीं भी कर लेते हैं। जरुरी नहीं कि मरीज घर या अस्पताल में आये ही। रास्तों, चौराहों और फुटपाथों पर अक्सर उन्हें मरीज मिल जाते हैं। वे मरीज न तो अस्पताल आते हैं और न डॉक्टर के घर। वे शायद ठीक-ठीक नहीं जानते कि वे बीमार हैं। डॉक्टर को उनकी चिंता रहती है। अक्सर सुबह शाम वह उन्हें देखने सड़कों और चौराहों पर निकल आता है। उन्हें देखता है। दवा देता है। दवा खाने का समय और तरीका बताता है। फिर बाद में यह भी पूछता है, कि उन्होंने दवा खाई या नहीं। कभी अपने सामने खिलवाता भी है। वह चिंतित रहता है, उसके शहर में बढ़ते इन मरीजों को लेकर। पर जब भी वह इस टेबल पर आता है, अपना स्टेथेस्कोप उतारकर आता है। टेबिल पर स्टेथेस्कोप वर्जित है। कभी तो लगता है, हर जगह लोगों को देखते फिरने की इस आदत ने ही उसे गड़बड़ा दिया है। कहीं भी मरीज देखने को आतुर और बीमारी के लिए उसकी चिंता ने ही उसे ऐसा बना दिया है। पर आज। आज तो उन्होंने हद ही कर दी। टेबिल पर ही मरीज चैक कर डाला।
लोग हँस चुके थे। बस बॉस की मुस्कान बची थी।
तभी डॉक्टर विश्वास का मोबाइल बज उठा। उसने बड़े आहिस्ते से फोन पर कह दिया कि वे टेबिल पर हैं, बाद में फोन लगाओ। पर बॉस उसकी इस हरकत पर फिर बिगड़ गया।
'डॉक्टर विश्वास। लगता है आपको कोई कायदा नहीं मालूम। टेबिल के उसूलों के पालन में आप निहायत ही लापरवाह हैं। उधर देखिए। अरे देखिये उधर...।'
बॉस ने जिस ओर इशारा किया वहाँ दीवार पर एक सूचना चिपकी थी- कृपया अपना मोबाइल बंद रखें या सिर्फ वाइब्रेशन मोड में रखें। डॉक्टर विश्वास ने घबराकर अपना मोबाइल वाइब्रेशन मोड में कर लिया। मोबाइल के बटनों को छूती उसकी उंगलियाँ कांप रही थी। वह डर गया था। उसकी इस हरकत पर बॉस मुस्कुराया। बॉस को फॉलो करते हुये बाकी सब भी मुस्कुराये।
'वैसे तो संसार के सबसे महत्वपूर्ण निर्णय जिस टेबिल पर लिये जाते हैं, वह यू.एन.ओ. की सिक्योरिटी कांउसिल की टेबिल है, पर उसके बाद दूसरी महत्वपूर्ण टेबल जनरल एसेंबली की ही है।'
बॉस मीटिंग में लौट आया. उसने डॉक्टर विश्वास की तरफ देखना बंद कर दिया। सब ने बॉस को फालो किया। कुछ लोग बॉस की बातों को अपनी डायरी में उतार रहे थे। बॉस अक्सर ऐसी ही बातें किया करता था। किसी बहुत दूर के देश की। किसी ऐसी चीज की जिसे लोगों ने जाना समझा न होता। जो लोगों को चौंका देती। ऐसी बात जिससे पता चलता कि बॉस कितना बड़ा और अल्हदा है। उस बात का किसी और चीज से मतलब  नहीं होता था। टेबिल पर बात सिर्फ और सिर्फ बॉस की बात थी, उसकी चौंकाने वाली विशिष्टता की बात।
'जनरल एसेंबली में कोई एक टेबिल नहीं है। टेबिलें एक सिरीज में हैं। छह सीटों की सिरीज। हर छह सीटों की सिरीज के सामने एक डैस्क। फिर छह सीटें उनके सामने उनका डैस्क। इस तरह से पूरी सिरीज पीछे से आगे की ओर मेन पोडियम की तरफ...।'
'डैस्क... सर।'
'हाँ। सबके लिए उसकी अपनी जगह। वह टेबिल इसी तरह की है। एक नहीं बहुत सारी टेबिलें। एक दूसरे से पर्याप्त दूरी पर। हर डेस्क पर बोलने का माइक, पानी, पेन, पेंसिल.... सबकुछ यहाँ तक कि आप खाने पीने का कुछ मंगवाना चाहें तो वह भी एक बटन पर हाजिर। मैं वहाँ जा चुका हूँ। उस टेबिल पर बैठा हूँ।'
'अरे वाह सर।'
'कितनी अच्छी बात है... सर। ग्रेट सर।'
चापलूसों के चेहरे पर असीम आनंद का भाव अतर आया था। बॉस गदगद हो गया।
'हर टेबिल पर उस देस का नाम जिस देश का प्रतिनिधि वहाँ बैठेगा। नफासत और कितने गुरुर से भरी वह जगह। कितनी भव्य, कितनी सुंदर। संसार की सबसे अप्रतिम टेबिल वह।'
बॉस का गोरा गुलाबी चेहरा दमक उठा। उसके सपाट माथे के बीच लगा महावर का पतला टीका खिलखिलाया। गोरी मोटी उंगलियों में पडीं सोने और रत्नों से जडित अंगूठियों को बॉस ने दो तीन बार घुमाया। रत्नों की एक अंगूठी को उंगली के बाहर तक निकाला और फिर उंगली में धंसा कर फंसा दिया।
'सच में उससे बेहतर और नफासत भरी कोई टेबिल और कहीं कहाँ हो सकती है?'
बॉस ने टेबिल के चारों ओर निगाह दौड़ाई। टेबिल पर बैठे लोगों को एक सिरे से दूसरे सिरे तक देखा। टेबिल के एक कोने से दूसरे कोने तक दुबारा नजरों से एक-एक चीज को टटोला। बॉस के चेहरे पर वितृष्णा का भाव उतर गया। टेबिल पर बैठे लोगों ने अपनी गर्दनें झुका लीं। सच में उनकी टेबिल कितनी छोटी, कितनी कमतर, कितनी बौड़म, कितनी बेतरतीब, कितनी कमजोर है...। उनमें से एक ने धीरे से अपनी नजरें उठाते हुए कहा- 'सर हम इस टेबिल को और बेहतर बनायेंगे। आपके मार्गदर्शन में इसे सर्वश्रेष्ठ बनायेंगे।' उस आदमी को देखकर बॉस चुप रहा, प्रतिक्रियाविहीन। वह बस याद करता रहा। लोग समझ गये कि बॉस चाहता है, कि वह कहता जाये... कहता जाये लगातार और टेबिल पर बैठे लोग उसके कहे को लिखते जायें लगातार...।
डॉक्टर विश्वास ने देखा उसके मोबाइल पर सात मिस्ड कॉल पड़े थे। कोई और जगह होती तो वह बात करता। कर ही लेता। वह रात के दो बजे भी अपना मोबाइल उठा लेता है। अनजान फोन नंबरों को वह आतुरता के साथ उठाता है। उसे पता होता है, कि दूसरी तरफ मरीज है। वह अपने मातहतों को बताता है कि डॉक्टर का मोबाइल सबसे महत्वपूर्ण होता है। डॉक्टर का मोबाइल हमेशा आन होना चाहिए। हमेशा फुल बैटरी। वह हर कॉल पर उठना चाहिए। डॉक्टर का मोबाइल जिस पर आती हैं, आतुर बेचैन बातें, जिन्हें वह टटोलता है शब्द दर शब्द। निकालता है उनके मायने। बताता है मर्ज और इलाज और अस्पताल तक का रास्ता। डॉक्टर का मोबाइल जो तैय्यार रहता है, कई-कई बार कई-कई जीवन बचाने को। एक बेहतरीन डॉक्टर वह है, जो हर वक्त अपना मोबाइल सुनने को तैयार हो...। पर अभी वह ऐसा नहीं कर सकता है। वह टेबल पर बैठा है और वह और बेइज्जत नहीं होना चाहता है। मामला सिर्फ बेइज्जत भर होने का नहीं है। उसकी नौकरी भी जा सकती है। वह क्रोधित है। हताश भी। वह खुद से पूछ रहा है, कि क्यों, क्यों माने वह टेबिल के कायदे... उसका फोन बार-बार वाइब्रेट कर रहा है और वह लगातार हताश होता जा रहा है, इस खयाल के साथ कि क्यों न तोड़ ही दे टेबिल का कायदा। पर वह टेबिल के कायदे को तोडऩे की सजा भी जानता है। डरता है। उसे टेबिल के कायदे मानने ही होंगे। जब वह नौकरी में आया था, उसने शपथ ली थी कि वह टेबिल के कायदे मानेगा... रहेगा समर्पित टेबिल के प्रति।
'...संसार की वह बेहद महत्वपूर्ण टेबिल... जिस कमरे में है वह, वह एक बेहद खूब सूरत और भव्य कमरा है।'
कहते कहते बॉस ने कमरे पर नज़र हो गई। एक अजीब की वितृष्णा का भाव उसके चेहरे पर उतर आया।
डॉक्टर विश्वास का मोबाइल वाइब्रेट होना बंद हो गया। अगले ही पल उस पर एक मैसेज आया।
बॉस को न्यूयार्क के इस विशाल इमारत के एक खूबसूरत हाल में रखी वे कुर्सियाँ और वे डेस्क क्षण भर को दीख गए। 'सच में कितनी खूबसूरत। भव्य। विशाल। संसार की वह कितनी महत्वपूर्ण टेबल।' बॉस ने क्षण भर को सोचा।
डॉक्टर विश्वास ने झिझकते हुए मोबाइल के बटन को छुआ। मैसेज स्क्रीन पर खुल गया।
'उस दिन उस भव्य टेबिल पर संसार का एक महत्वपूर्ण निर्णय होना था। और मैं वहाँ पर था।'
बॉस क्षण भर को रूका। 'कौन सा निर्णय सर... कृपया बतायें। बतायें सर।' एक चापलूस ने बेहद उदारता से कहा। 'कृपया बतायें। बतायें सर।' कहते हुए उसके चेहरे पर दया का असीम भाव उतर आया था।
'...वहाँ यह प्रस्ताव तय होना था कि किस तरह इथोपिया और इरिट्रिया के बीच की सीमा तय हो। यह इतना महत्वपूर्ण निर्णय था, कि जरा सी भी गलती की गुंजाइश नहीं थी। जरा सी गलती का अर्थ था, फिर से गृहयुद्ध, फिर से हजारों हत्यायें, हजारों बलात्कार, हजारों मृत्यु...।'
बॉस लगातार कह रहा था।
'वह एक महत्वपूर्ण निर्णय था। बेहद महत्वपूर्ण। हजारों जीवनों की किस्मत उस निर्णय से तय होनी थी। उस टेबिल पर.... वह भव्य, विशाल और कितनी-कितनी नफासत भरी टेबिल पर...।'
बॉस की नज़र डॉक्टर विश्वास पर पड़ी।
डॉक्टर विश्वास मोबाइल पर आये उस मैसेज को अब भी पढ़ रहा था-
'सर आपने जिस आदमी को अस्पताल भेजा था वह बेहद क्रिटिकल है। आप आ जायें।'
'डॉक्टर विश्वास व्हॉट द हैल यू आर डुइंग। मैं यहाँ इंपॉर्टेंट इंस्ट्रक्शन दे रहा हूँ और आप मोबाइल में मैसेज देख रहे हैं।'
बॉस ने गुर्राते हुए कहा।
'सर गलती हो गई।'
'कितनी देर से आपको समझा रहा हूँ। आप तो बहुत बेशरम हैं।'
'सॉरी सर।'
'यू आर ए क्लॉन। अ स्पॉइल स्पोर्ट। बताइये आपने क्या समझा, बोलिये।'
डॉ विश्वास घबरा गया। मोबाइल पर फिर एक मैसेज आया। मोबाइल पर मैसेज जिसे डॉक्टर विश्वास देखते थे, हमेशा। कभी रुके ही नहीं।
'सर। मैं सुन नहीं पाया सर।'
'गो टू हैल.... यू ईडियट।'
बॉस चीख पड़ा। उसने टेबिल पर बैठे एक दूसरे आदमी को कहा कि वह बतायें कि उसने क्या कहा है। वह आदमी रट्टू तोते के मानिंद कहने लगा-
'सर आपने कहा हजारों लोगों के जीवन का निर्णय लेने वाली टेबिल जो निश्चय ही मान्य होगी, होगी नफासत से भरी, करीने कायदे वाली। जो होती है किसी बेहद खुबसूरत और पॉश जगह पर। सात समुद्र पार। जहाँ होता है निर्णय, हजारों हजार जीवनों का...।'
डॉक्टर विश्वास ने भी याद करने की कोशिश की कि बॉस ने क्या कहा। पर कुछ याद नहीं आया। यू.एन.ओ. की जनरल ऐसेंबली की उस टेबिल की जो बात उन्हें याद आ रही थी वह एक बिल्कुल अलहदा बात थी। बचपन में कभी उस टेबिल की फोटो पेपर में आई थी। ब्लैक एण्ड व्हाइट फोटो। एक गोल मटोल, गोरा चिट्टा, कम कद का आदमी जो उन टेबिलों के सामने डायस पर खड़ा भाषण दे रहा है। उग्र और बेखौफ। उसके एक हाथ में जूता है और दूसरा हाथ हवा में मुट्ठी ताने है। बॉस जब-तब उस महान टेबिल का किस्सा ले बैठता। गर्व से बताता कि वह वहाँ था, उस महान टेबिल पर एक दिन। डॉक्टर को बचपन की वह स्मृति उकसाती। एक दिन उसने नैट पर उस वाकये को सर्च किया था, दो शब्द 'जनरल असेंबली एण्ड शू' और कम्प्यूटर पर वह पूरा वाकया निकल आया था।
डॉक्टर विश्वास ने बॉस से नजर बचाकर उस मैसेज को खोल लिया-
''सर, आपने जिस आदमी को भेजा था, वह मर गया।''
बॉस ने डॉक्टर विश्वास को मैसेज पढ़ते देख लिया। टेबिल पर बैठा वह आदमी अब भी बॉस की कही रटी-रटाई बात को कहता जा रहा था।
डॉक्टर ने नैट पर वह वाकया पूरा पढ़ा था। सोवियत संघ का वह दमदार नेता जिसका नाम ख्रुश्चैव था, फिलिपिंस के प्रतिनिधि के प्रस्ताव पर उग्र हो गया था। उसने जनरल एसेंबली की उसी टेबिल के सामने बहुत शालीनता से अपनी बात कहनी शुरु की थी, पर धीरे-धीरे वह उग्र होता गया था। फिर उसने अपना एक जूता निकाल लिया। पहले उसने हाथ में लेकर उस जूते को ऊपर उठाया और फिर डायस पर उसे पटकने लगा लगातार एक के बाद दुबारा, फिर तिबारा। टेबिल पर बैठे लोगों के बीच सनाका खिंच गया। जनरल असेंबली के उस कमरे में हर तरफ चुप्पी छा गई। वह रुसी भाषा में लगातार बोल रहा था। डॉक्टर ने नैट पर उस भाषण का अनुवाद पढ़ा, शब्द-दर-शब्द... 'अमेरिका के चमचे... जमीन में दफन कर दूँगा...'
डॉक्टर विश्वास खड़ा हो गया। बिना कुछ कहे वह टेबिल से उठकर जाने लगे। टेबिल पर बैठे लोग उसे हक्के बक्के से देखते रहे। लाल पीला होता बॉस क्रोध से अनियंत्रित हो गया था। वह लगातार टेबिल पर अपनी मुट्ठियाँ पटक रहा था। टेबिल पर बैठे एक आदमी ने डॉक्टर के कंधे पर हाथ रखकर उसे समझाना चाहा, पर डॉक्टर ने उसका हाथ झटक दिया। डॉक्टर को  बॉस का गुर्राना, चीखना-चिल्लाना बाहर तक सुनाई देता रहा- 'इडियट। हरामी। आज ही... आज ही इसे नौकरी से निकालो... आज ही।'
बॉस ने टेबिल पर मुक्का जड़ा और पागलों की तरह चीखने लगा-
'टेबिल के खिलाफ मैं कुछ भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। समझे तुम। नालायक।'
मर्चरी में डॉक्टर ने इस लाश के ऊपर से कपड़ा हटाया। उसके शाँत, भावहीन चेहरे को देखा। नाक और मुँह से निकला रक्त उसके चेहरे पर जम गया था। उसकी पुतलियों की सफेद फाँक पलकों के नीचे से दिख रही थी, जड़वत। उसके चेहरे के पास पोस्टमार्टम के औजार रखे थे, चाकू, हथौडा, सुई, टाँका, आयोडीन...। बाहर मेहतर खड़ा था, उसकी चीरफाड़ कर जल्द घर लौटने को उतावला। डॉक्टर को वे शब्द पल भर को याद आये... बचपन की स्मृति के रास्ते जो आज उसके भीतर थे...' अमेरिका के चमचे... जमीन में दफन कर दूँगा...'
डॉक्टर को कुछ बोलना था। सचमुच बोलना था। उस लाश से जो उसे सुन नहीं सकती थी। उसने उस काले पड़ते रक्त रंजित चेहरे को देखकर बहुत धीरे से कहा-
'माफ करना दोस्त। सिर्फ एक अच्छा डॉक्टर होना ही तो पर्याप्त नहीं होता है...न।'


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