तीन संक्षिप्त हिस्से
एक
यह महाराजा रन्तिदेव के अग्निहोत्र में काटी गयी सहस्त्रों गायों और बछड़ों के बहे खून से बनी नदी यह वेद व्यास के शान्तिपर्व से निकली एक अशान्त नदी
बेईमान शकुनी ने अपने पांसे फेंके यहीं सम्पत्ति और सिक्कों के बदले पत्नी हारी गयी यहीं फिर पाँचो पतियों और पितामह की सहमति से सबने उसके वस्त्र उतरते देखे यह उसके आहत वचनों से अभिशप्त नदी
चम्बल के तट तीर्थ नहीं, प्राचीन सभ्यताओं का कोई नगर न मेले पर्व तीज त्योहार न पूजन हवन न मंत्रोच्चार भयानक भायं भायं सन्नाटा भरी कटी फटी विकराल कन्दराएं चम्बल के आर-पार क्षत विक्षत कर डाली हो जैसे खुद अपनी ही देह किसी विक्षिप्त स्त्री ने सहसा धीरज खो कर, टेंटी, करील, झरबेरी और बबूलों के जंगल में उड़ती हू-हू करती रेत और सदियों का हाहाकार
चम्बल के तट तीर्थ नहीं हैं उसके बारे में प्रसिद्ध है
दरस करे तो रागी होय परस करे तो बागी होय करे आचमन मूड़ सिराये चम्बल तो बड़ भागी होय
दो
यमुना, गंगा, कृष्णा, कावेरी, गोमती, अलकनन्दा यह तो लड़कियों के नाम हैं चम्बल नही है किसी लड़की का नाम
जबकि, चम्बल वह अकेली और अभागी नदी है जो पुराणों में वर्णित अपने स्वरूप को आज तक कर रही है सार्थक, चम्बल में पानी नहीं खून बहता है, चम्बल में मछलियाँ नहीं लाशें तैरती हैं चम्बल प्रतिशोध की नदी है और वह कौन सी लड़की है जो प्रतिशोध और खून से भरी नहीं है और जिसमें लाशें नहीं तैरतीं, फिर भी शारदा, सई क्षिप्रा, कालिन्दी तो -लड़कियों के नाम हैं चम्बल नही है किसी लड़की का नाम
और वे नदियाँ जिनके नामों पर रखे गये लड़कियों के नाम और जो स्वर्ग से उतरीं थीं, धरती पर हमें तारनें आज़ खुद अपने तारे जाने के लिए तरस रही हैं भक्तों के मलमूत्र से वमन और विष्ठा और बलग़म से भर कर वे हो गयी है कुम्भी पाक, लेकिन उसी मलमूत्र और वमन और विष्ठा से दिया जा रहा सूर्य को अर्ध्य ओम् भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर वरेण्यम...।
चम्बल पर कब्ज़े के लिए हुए देंवों और दानवों में युद्ध इस कदर कि रक्त और चर्म से भर कर वह कहलाई चर्मणवती, चर्मवती यानि चाम वाली चम्बल आज जबकि बाजार आमादा है, हर माता को चर्मवती बना देने के लिए और कुछ अभागिनों को तो बना ही दिया जाता है चर्मवती
फिर भी कल्याणी, सिन्धु और जान्हवी भागीरथी, सोन रेखा, नर्मदा, सरयू-मन्दाकिनी तो लड़कियों के नाम हैं, चम्बल नही है किसी लड़की का नाम
देखो कितनी सारी नदियों के तो नाम ही नहीं आये उन करोड़ो करोड़ नदियों के नाम जो सुखा दी गई स्रोत पर ही, रह गयी अनाम
याद करो वह नदी जो इतिहास में तो है, भूगोल में नहीं है वह विद्या और बुद्धि की नदी, सरस्वती तो शायद शर्म से ही धरती में समा गयी वह गोया, अब अपनी कब्र में ही बहती है चम्बल की बेटियों के नाम हुए, फूलन देवी, कुसुमा नाइन, गुल्लो बेडिऩ फूल, कुसुम और गुल, लेकिन फूलों के नाम वाली ये बेटियां फूल नहीं थीं फूलो को नंगा नहीं किया जाता, झोटा पकड़ कर घसीटा नहीं जाता फूलों को जलती हुई बीडिय़ों से दागा नहीं जाता
कोमल अंगों में मिर्चिं भर कर कबुलवाया नहीं जाता कि वे डायनें हैं शिशुओं के नर्म कलेजे चाट-चाट कर खाती हैं वे ही लाती हैं बाढ़ महामारी, अकाल, दुर्भाग्य मुकदमें वे ही हरवाती हैं
हाथ डुबोये गये खौलते हुए तेल में और फफोले पड़ते ही अपराध सिद्ध हो गये गिद्ध हो गये पंच परमेश्वर और सभी जन कांकर, पाथर, चिरई, कूकुर, भेड़ हो गये घास हो गये, पेड़ हो गये फूलों के मुंह से निकली कुछ बुदबुद पर चिल्लाया ओझा लो सुनलो, इसने स्वयं कुबूला अपना डायन होना अब ये मेरे हाथों मुक्ति चाहती हैं
चौदह की या पन्द्रह की, गुल्लो बेडिऩ ने जब देखा पूरी पंचायत हत्यारी है और अगली उसकी बारी है तो जान बचा कर भागी
कुछ कहते गुल्लो नागिन थी कुछ कहते बस, नचने वाली बैरागिन थी कैसी दागी, कैसी बागी कहते हैं डाकू लाखन ने पीछे से और पुलिस ने उसके सीने पर गोली दागी
उस पर ना कोई लेख न ही अभिलेखों में उल्लेख पुलिस का कहना है, किंवदन्ती है आज भी किन्तु, गोहद बेसली नदी वाली राहों से राही बचते हैं कहते हैं सारी रात वहां गुल्लो के घुंगरु बजते हैं
धूप में पजर कर जब फूलों के तलवों में पड़ गयीं बिवाइयां ओठों पर पपडिय़ाँ, चेहरों पर झाइयां बाल जटा जूट, सूजी हुई पलकें, सूजी हुए पांव नींद से भरी आखें लाल और झुलसी हुई खाल इस तरह जब उनकी सारी कोमलता को कर दिया नष्ट और रुह को कुरुप तब कहा ''ये हैं दस्यु सुन्दरियाँ''
कुत्तों और सियारों के रोने की आवाजों में उनके रोने की आवाज तेज आंधियों में चट्टानों से टकरा बहते पानी में होती उनके होने की आवाज़
पछुआ चले तो पच्छिम से आती है उनके रोने की आवाज़ और पुरवा चले तो पूरब से आती है उनके रोने की आवाज़ और जब किसी दिशा में चलती नहीं हवायें होती है सायं सायं तब लोग समझ लेते हैं यह उनकी बेहोशी की आवाज़ गर्दन तक चलती हुई छुरी की खिस्स खिस्स शामिल होती कीर्तन के ढोल धमाकों में
कहते हैं एक दिन उन फूलों ने अपनी पन्हइयों में भर कर पेशाब पिलायी अपने बलात्कारियों को और पेड़ों से बांध कर उनके प्रजनन अंगों के चिथड़े उड़ा दिये
फूल कैसे हुए पत्थर और पत्थर कैसे हुए रेत यह फूलों के रेत हो जाने की कथा है यह फूलों के खेत हो जाने की कथा है यह फूलों के प्रेत हो जाने की कथा है,
तीन
चम्बल का स्रोत खोजने मत जाना स्रोत खोजते हुए कहीं तुम अपने घर तक ही न पहुंच जाओ और देखो कि चम्बल वहीं से निकल रही है निकल चुकी है या बस, निकलने वाली है।
सूर्य डूबने के साथ ही जैसे लड़कियों का आकाश भी डूब जाता है जैसे जैसे छायाएं सिमटती हैं लड़कियों की जगहे भी सिमटना शुरू हो जाती हैं अंधेरा दाखिल हो उससे पहले ही उन्हें दाख़िल हो जाना चाहिये अपने घरों के प्राचीन अन्धकार में
लेकिन एक शाम जब गायें खूंटों की तरफ बकरियां बाड़ों की तरफ और मुर्गियां दड़बों की तरफ हांकी जा रही थीं तीन बहने निकलीं घर के बाहर तालाब में डूबने बड़की बोली पहले मैं डूबूंगी क्योंकि छुटकी को डूबते हुए देख नहीं पाऊंगी तो छुटकी बोली जिज्जी, तुम नही रहोगी तो अकेले मुझे डूबते हुए कितना डर लगेगा सुनकर मझली ने छुटकी को चिपटा लिया और बोली-हम तीनों बहनें एक साथ डूबेंगी
छुटकी बोली, मझली, जब तेरी कमर तक पानी आयेगा तो मेरे सिर तक आ जायेगा एक साथ कैसे डूबेंगी मझली के आंसू आ गये उसने छुटकी को गोद में उठा लिया
छुटकी बोली मझली तुम्हें तो तैरना आता तुम कैसे डूबोगी
मैं गले में पत्थर बांध लूंगी लेकिन रस्सी तो अपन लाये नहीं मैं चुनरी से बांध लूंगी पत्थर लेकिन चुनरी हट जायेगी तो तुम्हे शर्म नहीं आयेगी नहीं- मझली ने कहा लाशों को कोई शर्म नही आती |