अनिरूद्ध उमट अब पचास वर्ष के हैं, बीकानेर में रहते हैं। दो उपन्यास और एक कविता संग्रह प्रकाशित। उनकी कृति 'अंधेरी खिड़कियां' एक प्रतिष्ठित फेलोशिप के अन्तर्गत लिखी गई है। स्व. ज्योत्सना मिलन ने उमट के लेखन पर कभी टिप्पणी की थी कि वे कलात्मक जोखिम उठाने में शुरू से आगे हैं।
तुम्हारा तकिया मैं चुरा न लूँ
बादल जब आकाश से चले जायेंगे तब तुम किसी को याद करोगे
किस तरह उसे तुम सांत्वना दे पाओ
हम अब तभी मिलेंगे अपनी मच्छरदानियों से बाहर एक दूजे को देनी होगी जब एक दूसरे के आसपास के किसी मरण की सूचना
ये ख्याल रखते कि मेरा तकिया तुम तुम्हारा तकिया मैं चुरा न लूँ ये भी एहतियात बरतना होगा कि कन्धों पर शव हो बंदूक कुछ देर को न सही
किसी के तकिये पर जागना
हथेली पर किसी की रेखाओं पर पीपल का पत्ता
जिस पर एक बूँद ठिठकी चाँद उसी में उगना था
रात किसी के तकिये पर था उसे जागना
रात ही किसी की देह पर चहल कदमी थी होनी
किन्ही हथेलियों पर रखी जानी थी अज्ञात अदृश्य हथेलियाँ जिन्हें फिर अपने अपने चेहरों पर रख लेनी थी
तलवार की धार पर सपनों को था आना
स्मृति एक कपाल क्रिया
जिस टेबल पर मैं झुका था उस टेबल पर मैं लेटा था
हमारे बीच आत्मा किसी चाकू सी
मृत चीजें ही दूसरो को मारती हैं
फिर मैं उठूँगा तो मेरी छाया कतरनों में मेरा गला घोंटने लगेगी जिस कागज को घूर रहा हूँ वह मुझे अपना अंधापन देने को आतुर है
तुम्हारी आवाज अभी सुनाई दी जब बगल के तारे ने बगल के तारे को टूट मुँह के बल गिरते देखा
स्मृति एक कपाल क्रिया है जिसे विस्मृति प्रतिपल किया करती है
क्या उसे पता है वह किसका साया है?
क्या उसे पता है कि उसे क्या पता है? क्या उसे पता है वह किसका साया है क्या उसे पता है रास्तों में रास्ते खोते है कि प्यास और आस अंतिम कलप है
दोपहर के वीराने में कोई आएगा और खुद को चुरा ले जाएगा मैंने जब उससे पूछा तो उसने कहा 'हाँ मुझे पता है!' ये सुनते ही मैंने देखा मैं कहीं नहीं था
अब हम वहाँ थे जहाँ हम कहीं न थे
उसने मेरे भीतर अपनी विस्मृत हँसी की रेत पसार दी अचानक टीले ने जैसे मेरा भक्षण कर लिया हो मैं उसके बिसारने में यँू धँसा
मेरे होने का कोई निशान अब वहाँ न था केवल टीला था
जिस पर कभी बैठ कोई विक्रमादित्य बन गया था
आज मेरा दम घुटता जा रहा था कोई कहीं न था
मेरे ये शब्द नहीं चिता पर रखी जानी वाली लकडिय़ाँ है
उसकी आंखे हरे कंचों सी चमकी जब उसने मुझे अपनी बुझती डूबती सांसों की लहरों में अपने सीने से लगाया कि मैं उससे दूर रहा जीवन भर तब मैंने देखा उसने अंतिम यात्रा की तैयारी कर ली है
मैंने तब से देखा मेरे ये शब्द नहीं चिता पर रखी जानी वाली लकडिय़ाँ है
जिसकी ठंडी राख में से मैं दाँत ढूँढता उसके पैर में लगी लोहे की रॉड को पाऊंगा और तब से मेरे दोनों घुटने टूट जाएंगे और मैं मध्य रात्री में टूटते तारे की राख अपनी आत्मा पर बरसती पाऊँगा अभी चूल्हा ठंडा है रसोई में हम माँ बेटा उसमें फूँक मारेंगे तो कटोरदान में तीन दिन पुरानी रोटी फूल जाएगी अभी उसके गहनों में देवता अपना श्रृंगार करेंगे अभी उसकी चप्पलों में मेरी बेटी की नीद का पैर है
अभी बीस साल पहले मरा बेटा और चालीस साल पहले लापता उसका भाई उसे थाली परोसने का कहेंगे
अभी अभी अभी अभी अभी ... थाली पर बैठे मेरे पिता थाली पर लुढक जाएंगे अभी अभी अभी अभी अभी ...पत्नी से बाते करता मैं अंधेरे आँगन में छाती के बल जा गिरूँगा अभी अभी अभी अभी अभी ...नहीं ...अब कुछ नहीं
वह क्या था वह कौन था यह पूछते मैंने पाया कि मैं क्या था मैं कौन था
जहाँ तुमने पिछले जन्म में मुझे जिस पेड़ के नीचे खड़ा कर कहा कहीं जाना मत अभी आता हूँ मैंने इस जन्म में पाया वहाँ तो पेड़ था ही नहीं और तुम कौन थे अब मैं किसी ऐसे पेड़ को ढूँढ रहा हूँ जिसे अपने साथ चलने का कहूँ
मेरी छाया उस पेड़ सी गायब है
कंठ में जड़ें उलझती आँखों से प्रवाहित है
वह क्या था वह कौन था यह पूछते मैंने पाया कि मैं क्या था मैं कौन था
उदास प्रथम तारा रात के कच्चे सीने पर पहला नमकीन आँसू गिराता है तो सूरज की लौ बुझ जाती है समन्दर में उसका स्याह चेहरा यूँ डूबता है कि समन्दर भाप बन उडऩे लगता है उस भाप में कोई हाथ यूँ पसरता है जैसे गए प्राण लौट आयेंगे
प्रतीक्षा वह शब्द है जो प्रतीक्षा में हर जन्म में... मरण में यँू विलीन होता है कि फिर प्रतीक्षा की उम्र कैद में सर फोड़ता है
अंधे बिल में अजन्मे शिशु की पसली टूटती है तो ईश्वर की हिचकी में गर्दन गिरे पेड़ सी लटक जाती है
उस घर की सीढिय़ों पर मेरे आने से पहले मेरे चले जाने के निशान थे
जिस डायरी में वह हरी बेंच पर अल्मोड़ा में बैठा मिर्जा की काफी के भाप से अपना चेहरा ताप रहा था... उसी में किसी पन्ने पर एंडर्सन द्वारा अपनी इन स्विंगर से यूसु$फ योहाना को बोल्ड करना था
उसी वक्त गर्मी में तपते मुझे बियर का पहला सिप लेते पत्नी से सुनना था कि वह नही रहा उसी वक्त हरी बेंच के सूनेपन पर एक फटी तस्वीर को आ दम तोडऩा था
उसी वक्त नोएडा के टोल ब्रिज पर किसी का गुमनाम शव उठाया जाना था
डायरी के अंतिम पेज पर मुझे उसके घर जाना था जहाँ मेरे लिए अर्थी तैयार थी, उस घर की सीढिय़ों पर आने से पहले मेरे चले जाने के निशान थे
डायरी के किसी पन्ने पर हमें एक खूबसूरत चेहरा देख पान खा अपने लाल होंट देखने थे
अभी अल्मोड़ा में पहाड़ और यहाँ रेगिस्तान में एक धोरा दरक... ढह रहा है... पत्रों में कूकर की सीटी बज रही हैं आईने में एक अंधा मोड़ बल खा रहा हैं
उसकी तस्वीर देख तब की नन्ही बच्ची बीस साल बाद पूछती है ये मेरे सपनों में क्यों आता दरवाजे पर अभी आधी रात दस्तक है दूर पहाड़ पर कोई सिसकता दरवाजा खोल रहा है