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जून 2014

तीन कविताएं

नित्यानन्द गायेन


राजद्रोही

कागज़ पर लिखा
सम्राट,
सेना,
फिर लिखा -
गुलाम,
दासता,
जय-जयकार,
सम्राट प्रसन्न हुए...

अब लिखा मैंने
तानाशाह
निरंकुश
विद्रोह
और कारागार

इस बार
राजा के आदेश पर
खंजर से मेरे सीने पर लिखा गया
राजद्रोही...!!

जो महान हैं आज

जो महान रहे
अपने-अपने काल में
सम्मान में
लोगों ने खुद बनाईं
उनकी प्रतिमाएं
फिर...
लिखी गईं उनकी
महान गाथाएं
इतिहास पुस्तकों में।

आने वाली पीढ़ी के लिए
सुकरात, नानक, कबीर
आज़ाद, भगत सिंह, गांधी
और न जाने कितने नाम
यहीं मिले हमें...

आज हवा बदल गई है
सभी स्वघोषित महान
खुद ही बनवा रहे हैं
अपनी-अपनी मूर्तियां
और चापलूस लिख रहे हैं
उनका इतिहास
अबूझ बच्चों की किताबों में
यह सोचे बिना
कि काल परिवर्तन
एक निरंतर प्रक्रिया है

आज के बच्चे
कल बड़े और समझदार बनेंगे
तब वे करेंगे
सत्य की पड़ताल...
तब कैसे बचा पाएंगे ये सभी
अपनी-अपनी 'महानता'...?

एक साज़िश मेरे सपनों में

अब मैंने तय किया है
अपने सपनों को ढंक कर रखने का
जब-जब पहुंची उन तक मेरे सपनों की बात
उन्होंने साज़िश की
मेरे सपनों को तोडऩे की
आज मैं जान चुका हूँ
सपनों का खुलासा करना भी जुर्म है।

मेरे सपने, जो -
पीले लहलहाते सरसों की फूलों की तरह थे,
कुछ सुबह की मीठी धूप की तरह थे,
जिन्हें देखे थे मैंने खुली आँखों से।
ये सपने मैंने देखे थे
उन माताओं के लिए जिनकी बूढ़ी आँखें
आज भी देख रही हैं
अपने बच्चों की राह
ये सपने उन बच्चों के लिए थे
कई सदियों से जिनके चेहरे पर
उदासी का कब्ज़ा है
मैंने ये सपने देखे थे
उस बूढ़े किसान के लिए
जो निराश होकर करना चाहता है आत्महत्या,
उन शहीदों के लिए जो
लड़ते रहे मजदूरों के अधिकारों के लिए।
पर तोड़ा गया बार-बार इन सपनों को
मेरी आँखों के सामने
तब हर बार खुली ही रह गई
मेरी आँखें हताशा में।
कोई गुनाह नहीं था
मेरे सपनों में
था केवल एक उज्जवल भविष्य
और शांति का एक पैगाम,
जिन्हें खुशी-खुशी बाँट दिया
मैंने अपने समाज के
दबे-कुचले साथियों में
सत्ता को आई एक षड्यंत्र की 'बू'
मेरे सपनों में...।।


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